राजस्थान से जग मोहन ठाकन
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तो क्या फिर भड़केगी गुर्जर आरक्षण की आग ?
---------------------------------------------------गुर्जर फिर स्तब्ध हैं और नौ साल की
लंबी अवधि की लड़ाई के बाद पुनः जहां से चले थे वहीं पहुँच गए हैं । राजस्थान हाई
कोर्ट ने गुर्जर सहित पाँच जातियों को
एसबीसी में पाँच प्रतिशत आरक्षण देने के अधिनियम -2015 को रद्द कर गुर्जर
आरक्षण पर खुशियाँ मना रहे गुर्जर नेताओं को एक ज़ोर का झटका धीरे से दे दिया है । हाल में नौ दिसम्बर ,2016 को दिये गए एक अहम फैसले में राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा गुर्जर
सहित पाँच जातियों गाड़िया लोहार , बंजारा , रेबारी तथा राईका को एसबीसी ( विशेष पिछड़ा वर्ग ) में अधिनियम -2015 के तहत
पाँच प्रतिशत का अलग से आरक्षण देने के फैसले को रद्द कर दिया है । हाई कोर्ट ने ओ
बी सी कमिशन की रिपोर्ट को भी अपर्याप्त
बताया । पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट पर
गंभीर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा कि आयोग ने बिना पूरे आंकड़े जुटाये ही सिफारिस
कर दी । रिपोर्ट के अनुसार 82 में से 25 जातियों के बारे में आंकड़े ही नहीं थे और
बाकी जातियों के लिए भी विकास अध्ययन संस्थान (आई डी एस ) ने जो आंकड़े जुटाये वे
भी वैज्ञानिक तरीके से नहीं जुटाये गए ।
कोर्ट ने यह आदेश कैप्टन गुर्विन्दर सिंह तथा अन्य की याचिकायों का निपटारा
करते हुए दिया है । ओ बी सी कमिशन की रिपोर्ट को गलत करार देते हुए कोर्ट ने कहा
कि इस रिपोर्ट में खामी है और उसके आधार पर आरक्षण देना न्याय संगत नहीं है ।
कोर्ट ने निर्णय दिया कि आरक्षण में पचास
फीसदी सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता और न ही राज्य सरकार पचास फीसदी से
ज्यादा आरक्षण दे सकती है । याचिका कर्ताओं ने गुर्जर समेत पाँच जातियों को विशेष
पिछड़ा वर्ग के तहत अलग से पाँच प्रतिशत आरक्षण देने के राज्य सरकार के अधिनियम
-2015 को इस आधार पर चुनौती दी थी कि इस फैसले से राज्य में आरक्षण की सीमा पचास
प्रतिशत से अधिक हो गई है । उधर राज्य सरकार ने अपनी पैरवी मे तर्क दिया कि सरकार
ने आई डी एस से सर्वे करवा कर ओ बी सी आयोग के समक्ष तथ्य रखे थे , जिसके आधार पर ही ओ बी सी आयोग ने इस विशेष पाँच प्रतिशत के आरक्षण की
सिफारिस की थी । सरकार का तर्क था कि विशेष परिस्थितियों में राज्य सरकार पचास
फीसदी से अधिक आरक्षण दे सकती है । परंतु कोर्ट ने सरकार के इन तर्कों के विरुद्ध एस बी सी के पाँच प्रतिशत आरक्षण को खारिज
कर दिया । प्राप्त संकेतों के अनुसार राज्य सरकार हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रही है ।
क्या है मामला ?
गुर्जर जाति पहले से ही राजस्थान में पिछड़ा वर्ग में शामिल है और वहाँ 21 प्रतिशत के ओ बी सी वर्ग में आरक्षण के तहत लाभ ले रही
थी । परंतु गुर्जरों को लगा कि उन्हें अन्य जिन जातियों से ओ बी सी श्रेणी में
प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है , वे उसमे पिछड़ रहे हैं तथा उन्हें उनके हक के अनुपात में राजकीय सेवाओं में
उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है । विशेष कर जब से राज्य में जाटों को ओ बी सी में शामिल
किया गया है तभी से ओ बी सी वर्ग की मेरिट ऊपर चढ़ने लगी है तथा समान्य श्रेणी व
अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में मेरिट में कोई विशेष अंतर नहीं रह गया है । एक प्रकार
से उन्हें सामान्य श्रेणी की बराबरी करनी पड़ रही है , जिसमे वे कहीं भी नहीं टिकते हैं । दूसरी तरफ अनुसूचित जन जाति संवर्ग में
मीणा समुदाय द्वारा बहुतायत मे उठाए जा रहे आरक्षण लाभ ने भी गुर्जर समाज को
अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल होने के लिए लालायित किया । और 2007 में उभरे
गुर्जर समाज के आंदोलन में समाज को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में आरक्षण देने की
मांग रखी गई । वॉशिंगटन पोस्ट को दिये गए एक इंटरव्यू में गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह
बेंसला ने अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में गुर्जर समाज को शामिल करने हेतु अपने
तर्क में कहा था कि गुर्जर समाज के अधिकतर लोग अशिक्षित हैं तथा गरीबी में गुजर
बसर कर रहे हैं । क्योंकि ओ बी सी श्रेणी के आरक्षण में उन्हें 123 जातियों के
समूह से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है ,
जिसमे उनका नंबर नहीं पड़ता है । परंतु यदि उन्हे अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल
कर लिया जाए तो उन्हे केवल 15 जातियों के समूह से ही प्रतिस्पर्धा करनी होगी ।
इसलिए उनकी अनुसूचित जनजाति वर्ग में
शामिल करने की मांग गुर्जर समाज के लिए लाभकारी रहेगी , हालांकि
अनुसूचित जनजाति में शामिल होने से उनका सामाजिक स्टेटस नीचा हो जाएगा । परंतु गुर्जर समाज की अनुसूचित
जनजाति वर्ग में शामिल करने की इस मांग ने मीणा समाज के भी कान खड़े कर दिये तथा
मीणा समाज ने अपने अधिकार क्षेत्र में सेंध लगते देख गुर्जर आंदोलन का पुरजोर
विरोध किया , जिसमे हुए टकराव में दो दर्जन व्यक्तियों को जान से हाथ धोना पड़ा । तत्कालीन
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जस्टिस चोपड़ा कमेटी का गठन कर गुर्जर आंदोलन को
एकबारगी समाप्त करवाने में सफलता हासिल की । परंतु जब दिसम्बर , 2007 में जस्टिस चोपड़ा ने गुर्जरों
को एस टी वर्ग में शामिल करने की मांग के पक्ष में फैसला नहीं दिया , तो गुर्जर समाज
ने 2008 में पुनः आंदोलन चलाया जो 2007 के मुक़ाबले अधिक उग्र था तथा इसे नियंत्रण
में लाने के लिए सेना को बुलाना पड़ा था ।
परंतु इतने उग्र आंदोलन के बावजूद गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति में शामिल
करवाने में गुर्जर नेताओं को सफलता नहीं मिली और 2008 का आंदोलन तभी शांत हुआ जब
तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने गुर्जरों को पाँच प्रतिशत का अलग से स्पेशल आरक्षण का कोटा देने की सहमति जताई । इस आंदोलन में लगभग तीन दर्जन
लोगों को जान गंवानी पड़ी थी । इस पाँच प्रतिशत के स्पेशल कोटा में गुर्जरों के साथ
गड़िया लोहार , रेबारी ,बंजारा आदि को भी शामिल करने की सहमति बनी थी । साल 2008 में गुर्जर कोटा बिल
राजस्थान विधान सभा में पारित भी कर दिया था , परंतु अक्तूबर , 2009 में राज्य के हाई कोर्ट ने पाँच प्रतिशत के इस स्पेशल बैक्वार्ड क्लास
आरक्षण को स्टे कर दिया , क्योंकि इस स्पेशल आरक्षण से राज्य में आरक्षित पदों का
प्रतिशत 50 फीसदी से अधिक हो गया था । तब तक राज्य में बदल कर आई कोंग्रेसी सरकार
के मुखिया अशोक गहलोत , जो स्वयं भी एक पिछड़ी जाति से थे , ने गुर्जरों को आश्वासन दिया था कि उनकी सरकार कोर्ट के समक्ष पुरजोर से ,गुर्जर समुदाय को आरक्षण दिलाने की पैरवी करेगी । परंतु कोर्ट में 22 दिसम्बर ,2010 को फैसला होने से पहले ही गुर्जर समाज को काँग्रेस सरकार की मंशा पर शक होने
लगा तथा उन्होने 20 दिसम्बर , 2010 से ही पुनः अपने नेता किरोड़ी सिंह
बेंसला , रिटायर्ड कर्नल , के नेतृत्व में आंदोलन का रुख अपना लिया , जो लगभग 15 दिन तक रेल मार्ग व अन्य व्यवस्थाओं को बाधित करने के बाद सरकार
द्वारा अपनाए गए नर्म रुख व मांगें माने जाने के वचन के साथ थमाव में परिणत हुआ ।
वर्ष 2010 में राज्य के हाई कोर्ट ने ओ बी सी आयोग को आरक्षण पर पुनर्विचार
के निर्देश दिये । आयोग ने साल 2012 में गुर्जरों सहित पाँच जातियों को स्पेशल
बैक्वार्ड क्लास में पाँच प्रतिशत आरक्षण की सिफ़ारिश की । राज्य सरकार ने भी
उपरोक्त सिफ़ारिश के आधार पर इन पाँच
जातियों को एस बी सी श्रेणी के तहत पाँच प्रतिशत के आरक्षण की अधिसूचना जारी कर दी
। परंतु जनवरी , 2013 में हाई कोर्ट ने फिर से 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण सीमा
पर रोक लगाकर इस एस बी सी आरक्षण पर पानी फेर दिया । वर्ष 2013 में फिर सत्ता में
आई भाजपा सरकार ने गुर्जरों को अपने हक में करने के लिए वर्ष 2015 में गुर्जर समेत
इन पाँच जातियों को पुनः विशेष पिछड़ा वर्ग में पाँच प्रतिशत आरक्षण देने के लिए
आरक्षण अधिनियम -2015 पारित करवा कर इस आरक्षण का रास्ता दोबारा खोल दिया । परंतु
2015 के इस कानून के खिलाफ कैप्टन गुर्विन्दर सिंह तथा अन्य ने हाई कोर्ट का
दरवाजा खटखटाया , जिसके परिणामस्वरूप दिसम्बर ,2016 में एक बार फिर 50 प्रतिशत से
अधिक आरक्षण न दिये जा सकने के तर्क के आधार पर हाई कोर्ट ने गुर्जरों समेत पाँच
जातियों को मिले इस एस बी सी श्रेणी के आरक्षण को रद्द कर दिया।
क्या करेंगें गुर्जर अब ?
हालांकि राजस्थान सरकार ने गुर्जर समाज को आश्वासन दिया है कि हाई कोर्ट के इस फैसले
के विरुद्ध सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी और हर हालत में गुर्जर समाज को आरक्षण
दिलाएगी । राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा है कि एस बी सी आरक्षण मामले
मे राज्य सरकार ने जो निर्णय किया है उससे पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं है । मुख्यमंत्री
ने कहा कि गुर्जरों सहित सभी संबन्धित समाज के लोग सरकार पर विश्वास रखें , उनके हितों पर कोई आंच नहीं आने दी
जाएगी ।
परंतु गुर्जर आरक्षण के पुरोधा रिटायर्ड कर्नल किरोड़ी सिंह बेंसला कहते हैं
कि हम न्यायपालिका का सम्मान करते हैं , लेकिन हमारे साथ
अन्याय हुआ है । सरकार ने लापरवाही बरती है , इस मुद्दे को
नवीं सूची में नहीं डाला । हम चुप नहीं
बैठेंगे ,हमारे हक के लिए संघर्ष करेंगे ।
उधर गुजरात में पटेल आरक्षण आंदोलन के नेता
हार्दिक पटेल ने हिंडोन में कर्नल बेंसला से मुलाक़ात के बाद कहा कि अगर गुर्जरों
को आंदोलन करना पड़ा तो गुजरात इस लड़ाई में आगे बढ़कर साथ देगा । पटेल ने कहा कि इस
मामले में वे गुर्जर समाज के साथ हैं , उनकी जो मांग है
वो पूरी होनी चाहिए । उन्होने कहा कि सरकार ने गुर्जर आरक्षण बिल को नवी सूची में
डालने का आश्वासन दिया था , यह सरकार की लापरवाही है । अब सरकार ही इसका कोई हल निकाले
।
आखिर क्यों नहीं होता स्थायी समाधान ?
बार बार राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने
राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु समाज के किसी एक वर्ग को किसी न किसी लाली पॉप
के लोभ में अपनी तरफ लुभाने के कुचक्रों के परिणाम स्वरूप ऐसी असमंजस की स्थितियाँ
पैदा होती हैं । कोई भी राजनैतिक पार्टी किसी भी समस्या का स्थायी हल नहीं निकालना
चाहती । ये पार्टियां इन मुद्दों को अपनी जरूरत के मुताबिक ढ़ोल
पर खाल के रूप में मंढकर समय समय पर अपनी डफली के राग बजाती रहती हैं । समाज में भी कोई न कोई सामाजिक नेता इन
पार्टियों के मक्कड़ जाल में आ ही फँसता है । कई बार राजनीतिक पार्टियों द्वारा स्वार्थ पूर्ति हेतु उछाला गया मुद्दा उनके
अपने ही गले की फंस भी बन जाता है । वर्तमान गुर्जर आरक्षण का मामला भी अब
राजस्थान सरकार के गले में हड्डी की तरह अटक गया है ।कोर्ट पचास फीसदी की सीमा को नहीं लांघने देना
चाहते ,और सरकारें संविधान व सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की पूरी अनुपालना किए बिना ही कागजी खाना पूर्ति करके काम चलाना चाहती
हैं। वर्तमान मामले में गुर्जर नेताओं ने भी बिना सभी विकल्पों पर विचार किए ही
केवल आंदोलन की लाठी के सहारे लक्ष्य
प्राप्ति के प्रयास किए लगते हैं । क्योंकि गुर्जर पहले से ही ओ बी सी श्रेणी के
तहत 21 प्रतिशत के कोटे में शामिल थे ,यदि वो अपना
आरक्षण का हिस्सा सुनिश्चित ही करना चाहते थे तो वे हरियाणा की तर्ज पर अपने लिए ओ
बी सी के 21 प्रतिशत कोटे में ही 5 प्रतिशत का अलग से कोटा राज्य में निर्धारित
करवाने हेतु सरकारों पर दबाब डालते तो उनका अलग से 5 प्रतिशत का कोटा भी निर्धारित
हो जाता और 50 प्रतिशत से अधिक के आरक्षण की कोर्ट की बाधाएँ भी उनके सामने नहीं आती । उल्लेखनीए है कि हरियाणा में 27
प्रतिशत के ओ बी सी कोटे में बी सी(ए ) श्रेणी 16 प्रतिशत तथा बी सी (बी )श्रेणी11 प्रतिशत की दो उपश्रेणियाँ बना कर बैक्वार्ड जतियों का आरक्षण सामंजस्य बनाया गया है ।
बी सी ब्लॉक ए (16%) में 72 जातियाँ तथा बी सी ब्लॉक बी
(11%) में 6 जातियाँ राखी गई हैं । हरियाणा में भी जाटों को राजस्थान के गुर्जरों
की तर्ज पर अलग से स्पेशल बैक्वार्ड आरक्षण का लाली पॉप दिया गया था , जो कोर्ट में धराशाही हो गया । और अब
हरियाणा के जाट भी गुर्जरों की तरह मौसम के हिसाब से यदा कदा आंदोलन की फटी बांसुरी बजाते रहते हैं , पर राजनैतिक पार्टियां तो वहाँ भी उसी तासीर की ही
हैं ।
अब गुर्जरों की मांग है कि उनके आरक्षण को नवीं सूची में रख कर पुख्ता किया
जाये । क्या सरकार को पहले से नहीं पता था कि बिना नवीं सूची में आरक्षण को पारित
करवाए गुर्जरों का एस बी सी का आरक्षण कोर्ट में जाते ही धराशाही हो जाएगा ? क्या सरकार के आला अधिकारी एवं कानूनविद इतनी सी बात को नहीं समझते हैं कि
कैसे आरक्षण 50 फीसदी से ऊपर सही ठहराया जाएगा ?जब तक सरकारें साफ
नीयत से सुप्रीम
कोर्ट द्वारा दिये गए फैसलों व सुझावों को आधार मानकर आरक्षण का निर्धारण नहीं
करेंगी , तब तक यों ही सरकारों का खोखला तर्क धराशाही होता रहेगा और आरक्षण की मांग
करने वाले वर्ग ठगे जाते रहेंगे तथा देश की संपति एवं कानून व्यवस्था यों ही इन
आरक्षण आंदोलनों में स्वाहा होती रहेंगी । पर सरकारें तो वायदे करती हैं , वायदे हैं वायदों का क्या ? ।