Sunday 25 December 2016

राजस्थान से जग मोहन ठाकन
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तो क्या फिर भड़केगी गुर्जर आरक्षण की आग ?
---------------------------------------------------गुर्जर फिर स्तब्ध हैं और नौ  साल की लंबी अवधि की लड़ाई के बाद पुनः जहां से चले थे वहीं पहुँच गए हैं । राजस्थान हाई कोर्ट ने गुर्जर सहित पाँच जातियों को   एसबीसी में पाँच प्रतिशत आरक्षण देने के अधिनियम -2015 को रद्द कर गुर्जर आरक्षण पर खुशियाँ मना रहे गुर्जर नेताओं को एक ज़ोर का झटका धीरे से दे दिया है ।  हाल में नौ  दिसम्बर ,2016 को दिये गए एक अहम फैसले में राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा गुर्जर सहित पाँच जातियों  गाड़िया लोहार , बंजारा , रेबारी तथा राईका को एसबीसी ( विशेष पिछड़ा वर्ग ) में अधिनियम -2015 के तहत पाँच प्रतिशत का अलग से आरक्षण देने के फैसले को रद्द कर दिया है । हाई कोर्ट ने ओ बी सी  कमिशन की रिपोर्ट को भी अपर्याप्त बताया । पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट पर गंभीर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा कि आयोग ने बिना पूरे आंकड़े जुटाये ही सिफारिस कर दी । रिपोर्ट के अनुसार 82 में से 25 जातियों के बारे में आंकड़े ही नहीं थे और बाकी जातियों के लिए भी विकास अध्ययन संस्थान (आई डी एस ) ने जो आंकड़े जुटाये वे भी वैज्ञानिक तरीके से नहीं जुटाये गए ।
  कोर्ट ने यह आदेश कैप्टन गुर्विन्दर सिंह तथा अन्य की याचिकायों का निपटारा करते हुए दिया है । ओ बी सी कमिशन की रिपोर्ट को गलत करार देते हुए कोर्ट ने कहा कि इस रिपोर्ट में खामी है और उसके आधार पर आरक्षण देना न्याय संगत नहीं है । कोर्ट ने निर्णय दिया कि आरक्षण  में पचास फीसदी सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता और न ही राज्य सरकार पचास फीसदी से ज्यादा आरक्षण दे सकती है । याचिका कर्ताओं ने गुर्जर समेत पाँच जातियों को विशेष पिछड़ा वर्ग के तहत अलग से पाँच प्रतिशत आरक्षण देने के राज्य सरकार के अधिनियम -2015 को इस आधार पर चुनौती दी थी कि इस फैसले से राज्य में आरक्षण की सीमा पचास प्रतिशत से अधिक हो गई है । उधर राज्य सरकार ने अपनी पैरवी मे तर्क दिया कि सरकार ने आई डी एस से सर्वे करवा कर ओ बी सी आयोग के समक्ष तथ्य रखे थे , जिसके आधार पर ही ओ बी सी आयोग ने इस विशेष पाँच प्रतिशत के आरक्षण की सिफारिस की थी । सरकार का तर्क था कि विशेष परिस्थितियों में राज्य सरकार पचास फीसदी से अधिक आरक्षण दे सकती है । परंतु कोर्ट  ने सरकार के इन तर्कों के विरुद्ध एस बी सी के पाँच प्रतिशत आरक्षण को खारिज कर दिया । प्राप्त संकेतों के अनुसार राज्य सरकार हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रही है ।
 क्या है मामला ?
गुर्जर जाति पहले से ही राजस्थान में पिछड़ा वर्ग में शामिल है और वहाँ  21 प्रतिशत के ओ बी सी वर्ग में आरक्षके  तहत लाभ ले रही थी । परंतु गुर्जरों को लगा कि उन्हें अन्य जिन जातियों से ओ बी सी श्रेणी में प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है , वे उसमे पिछड़ रहे हैं तथा उन्हें उनके हक के अनुपात में राजकीय सेवाओं में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है । विशेष कर  जब से राज्य में जाटों को ओ बी सी में शामिल किया गया है तभी से ओ बी सी वर्ग की मेरिट ऊपर चढ़ने लगी है तथा समान्य श्रेणी व अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में मेरिट में कोई विशेष अंतर नहीं रह गया है । एक प्रकार से उन्हें सामान्य श्रेणी की बराबरी करनी पड़ रही है , जिसमे वे कहीं भी नहीं टिकते हैं । दूसरी तरफ अनुसूचित जन जाति संवर्ग में मीणा समुदाय द्वारा बहुतायत मे उठाए जा रहे आरक्षण लाभ ने भी गुर्जर समाज को अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल होने के लिए लालायित किया । और 2007 में उभरे गुर्जर समाज के आंदोलन में समाज को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में आरक्षण देने की मांग रखी गई । वॉशिंगटन पोस्ट को दिये गए एक इंटरव्यू में गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बेंसला ने अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में गुर्जर समाज को शामिल करने हेतु अपने तर्क में कहा था कि गुर्जर समाज के अधिकतर लोग अशिक्षित हैं तथा गरीबी में गुजर बसर कर रहे हैं । क्योंकि ओ बी सी श्रेणी के आरक्षण में उन्हें 123 जातियों के समूह  से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है , जिसमे उनका नंबर नहीं पड़ता है । परंतु यदि उन्हे अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल कर लिया जाए तो उन्हे केवल 15 जातियों के समूह से ही प्रतिस्पर्धा करनी होगी । इसलिए उनकी अनुसूचित   जनजाति वर्ग में शामिल करने की मांग गुर्जर समाज के लिए लाभकारी रहेगी ,  हालांकि  अनुसूचित जनजाति में शामिल होने से उनका सामाजिक स्टेटस  नीचा हो जाएगा । परंतु गुर्जर समाज की अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल करने की इस मांग ने मीणा समाज के भी कान खड़े कर दिये तथा मीणा समाज ने अपने अधिकार क्षेत्र में सेंध लगते देख गुर्जर आंदोलन का पुरजोर विरोध किया , जिसमे हुए टकराव में दो दर्जन व्यक्तियों को जान से हाथ धोना पड़ा । तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जस्टिस चोपड़ा कमेटी का गठन कर गुर्जर आंदोलन को एकबारगी समाप्त करवाने में सफलता हासिल की ।   परंतु जब दिसम्बर , 2007  में जस्टिस चोपड़ा ने गुर्जरों को एस टी वर्ग में शामिल करने की मांग के पक्ष में फैसला  नहीं दिया , तो गुर्जर समाज ने 2008 में पुनः आंदोलन चलाया जो 2007 के मुक़ाबले अधिक उग्र था तथा इसे नियंत्रण में लाने के लिए सेना को बुलाना पड़ा था ।   परंतु इतने उग्र आंदोलन के बावजूद गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करवाने में गुर्जर नेताओं को सफलता नहीं मिली और 2008 का आंदोलन तभी शांत हुआ जब तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने गुर्जरों को पाँच प्रतिशत का  अलग से स्पेशल आरक्षण का कोटा देने की सहमति जताई । इस आंदोलन में लगभग तीन दर्जन लोगों को जान गंवानी पड़ी थी । इस पाँच प्रतिशत के स्पेशल कोटा में गुर्जरों के साथ गड़िया लोहार , रेबारी ,बंजारा आदि को भी शामिल करने की सहमति बनी थी । साल 2008 में गुर्जर कोटा बिल राजस्थान विधान सभा में पारित भी कर दिया था , परंतु अक्तूबर , 2009 में राज्य के हाई कोर्ट ने पाँच प्रतिशत के इस स्पेशल बैक्वार्ड क्लास आरक्षण को स्टे कर दिया , क्योंकि इस स्पेशल आरक्षण से राज्य में आरक्षित पदों का प्रतिशत 50 फीसदी से अधिक हो गया था । तब तक राज्य में बदल कर आई कोंग्रेसी सरकार के मुखिया अशोक गहलोत , जो स्वयं भी एक पिछड़ी जाति से थे , ने गुर्जरों को आश्वासन दिया था कि उनकी सरकार कोर्ट के समक्ष पुरजोर से ,गुर्जर समुदाय को आरक्षदिलाने  की पैरवी करेगी । परंतु कोर्ट में 22 दिसम्बर ,2010 को फैसला होने से पहले ही गुर्जर समाज को काँग्रेस सरकार की मंशा पर शक होने लगा तथा उन्होने 20 दिसम्बर , 2010 से ही पुनः अपने नेता किरोड़ी सिंह बेंसला , रिटायर्ड कर्नल , के नेतृत्व में आंदोलन का रुख अपना लिया , जो लगभग 15 दिन तक रेल मार्ग व अन्य व्यवस्थाओं को बाधित करने के बाद सरकार द्वारा अपनाए गए नर्म रुख व मांगें माने जाने के वचन के साथ थमाव में परिणत हुआ ।
   वर्ष 2010 में राज्य के हाई कोर्ट ने ओ बी सी आयोग को आरक्षण पर पुनर्विचार के निर्देश दिये । आयोग ने साल 2012 में गुर्जरों सहित पाँच जातियों को स्पेशल बैक्वार्ड क्लास में पाँच प्रतिशत आरक्षण की सिफ़ारिश की । राज्य सरकार ने भी उपरोक्त सिफ़ारिश के आधार  पर इन पाँच जातियों को एस बी सी श्रेणी के तहत पाँच प्रतिशत के आरक्षण की अधिसूचना जारी कर दी । परंतु जनवरी , 2013 में हाई कोर्ट ने फिर से 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण सीमा पर रोक लगाकर इस एस बी सी आरक्षण पर पानी फेर दिया । वर्ष 2013 में फिर सत्ता में आई भाजपा सरकार ने गुर्जरों को अपने हक में करने के लिए वर्ष 2015 में गुर्जर समेत इन पाँच जातियों को पुनः विशेष पिछड़ा वर्ग में पाँच प्रतिशत आरक्षण देने के लिए आरक्षण अधिनियम -2015 पारित करवा कर इस आरक्षण का रास्ता दोबारा खोल दिया । परंतु 2015 के इस कानून के खिलाफ कैप्टन गुर्विन्दर सिंह तथा अन्य ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया , जिसके परिणामस्वरूप दिसम्बर ,2016 में एक बार फिर 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण न दिये जा सकने के तर्क के आधार पर हाई कोर्ट ने गुर्जरों समेत पाँच जातियों को मिले इस एस बी सी श्रेणी के आरक्षण को रद्द कर दिया। 
   क्या करेंगें गुर्जर अब ?
हालांकि राजस्थान सरकार ने गुर्जर समाज को आश्वासन दिया है कि हाई कोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी और हर हालत में गुर्जर समाज को आरक्षण दिलाएगी । राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा है कि एस बी सी आरक्षण मामले मे राज्य सरकार ने जो निर्णय किया है उससे पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं है । मुख्यमंत्री ने कहा कि गुर्जरों सहित सभी संबन्धित समाज के लोग सरकार पर विश्वास रखें , उनके हितों पर कोई आंच नहीं आने दी जाएगी ।
   परंतु गुर्जर आरक्षण के पुरोधा रिटायर्ड कर्नल किरोड़ी सिंह बेंसला कहते हैं कि हम न्यायपालिका का सम्मान करते हैं , लेकिन हमारे साथ अन्याय हुआ है । सरकार ने लापरवाही बरती है , इस मुद्दे को नवीं सूची में नहीं डाला । हम  चुप नहीं बैठेंगे ,हमारे हक के लिए संघर्ष करेंगे ।
 उधर गुजरात में पटेल आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने हिंडोन में कर्नल बेंसला से मुलाक़ात के बाद कहा कि अगर गुर्जरों को आंदोलन करना पड़ा तो गुजरात इस लड़ाई में आगे बढ़कर साथ देगा । पटेल ने कहा कि इस मामले में वे गुर्जर समाज के साथ हैं , उनकी जो मांग है वो पूरी होनी चाहिए । उन्होने कहा कि सरकार ने गुर्जर आरक्षण बिल को नवी सूची में डालने का आश्वासन दिया था , यह सरकार की लापरवाही है । अब सरकार ही इसका कोई हल निकाले ।
आखिर क्यों नहीं होता स्थायी समाधान ?
बार बार राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु समाज के किसी एक वर्ग को किसी न किसी लाली पॉप के लोभ में अपनी तरफ लुभाने के कुचक्रों के परिणाम स्वरूप ऐसी असमंजस की स्थितियाँ पैदा होती हैं । कोई भी राजनैतिक पार्टी किसी भी समस्या का स्थायी हल नहीं निकालना चाहती । ये  पार्टियां इन मुद्दों को अपनी जरूरत के मुताबिक ढ़ोल पर खाल के रूप में मंढकर समय समय पर अपनी डफली के राग बजाती रहती हैं । समाज में भी कोई न कोई सामाजिक नेता इन पार्टियों के मक्कड़ जाल में आ ही फँसता है । कई बार राजनीतिक पार्टियों द्वारा स्वार्थ पूर्ति हेतु उछाला गया मुद्दा उनके अपने ही गले की फंस भी बन जाता है । वर्तमान गुर्जर आरक्षण का मामला भी अब राजस्थान सरकार के गले में हड्डी की तरह अटक गया है ।कोर्ट पचास फीसदी की सीमा को नहीं लांघने देना चाहते ,और सरकारें संविधान व सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की पूरी अनुपालना किए बिना  ही कागजी खाना पूर्ति करके काम चलाना चाहती हैं। वर्तमान मामले में गुर्जर नेताओं ने भी बिना सभी विकल्पों पर विचार किए ही केवल  आंदोलन की लाठी के सहारे लक्ष्य प्राप्ति के प्रयास किए लगते हैं । क्योंकि गुर्जर पहले से ही ओ बी सी श्रेणी के तहत 21 प्रतिशत के कोटे में शामिल थे ,यदि वो अपना आरक्षण का हिस्सा सुनिश्चित ही करना चाहते थे तो वे हरियाणा की तर्ज पर अपने लिए ओ बी सी के 21 प्रतिशत कोटे में ही 5 प्रतिशत का अलग से कोटा राज्य में निर्धारित करवाने हेतु सरकारों पर दबाब डालते तो उनका अलग से 5 प्रतिशत का कोटा भी निर्धारित हो जाता और 50 प्रतिशत से अधिक के आरक्षण की कोर्ट की बाधाएँ भी उनके सामने नहीं आती । उल्लेखनीए है कि हरियाणा में 27 प्रतिशत के ओ बी सी कोटे में बी सी(ए ) श्रेणी 16 प्रतिशत  तथा बी सी (बी )श्रेणी11 प्रतिशत की दो उपश्रेणियाँ बना कर बैक्वार्ड जतियों का आरक्षण सामंजस्य बनाया गया है । बी सी ब्लॉक ए (16%) में 72 जातियाँ तथा बी सी ब्लॉक बी (11%) में 6 जातियाँ राखी गई हैं । हरियाणा में भी जाटों को राजस्थान के  गुर्जरों  की तर्ज पर अलग से स्पेशल बैक्वार्ड आरक्षण का लाली पॉप दिया गया था ,  जो कोर्ट में धराशाही हो गया । और अब हरियाणा के जाट भी गुर्जरों की तरह मौसम के हिसाब से  यदा कदा आंदोलन की फटी बांसुरी बजाते रहते हैं , पर राजनैतिक पार्टियां तो वहाँ भी उसी तासीर की ही हैं ।
  अब गुर्जरों की मांग है कि उनके आरक्षण को नवीं सूची में रख कर पुख्ता किया जाये । क्या सरकार को पहले से नहीं पता था कि बिना नवीं सूची में आरक्षण को पारित करवाए गुर्जरों का एस बी सी का आरक्षण कोर्ट में जाते ही धराशाही हो जाएगा ? क्या सरकार के आला अधिकारी एवं कानूनविद इतनी सी बात को नहीं समझते हैं कि कैसे आरक्षण 50 फीसदी से ऊपर सही ठहराया जाएगा ?जब तक सरकारें साफ नीयत से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गए फैसलों  सुझावों को आधार मानकर आरक्षण का निर्धारण नहीं करेंगी , तब तक यों ही सरकारों का खोखला तर्क धराशाही होता रहेगा और आरक्षण की मांग करने वाले वर्ग ठगे जाते रहेंगे तथा देश की संपति एवं कानून व्यवस्था यों ही इन आरक्षण आंदोलनों में स्वाहा होती रहेंगी । पर सरकारें  तो वायदे करती हैं  , वायदे हैं वायदों का क्या ?  ।


    



     

Saturday 24 December 2016

क्या अतृप्त रह जाएगी प्यास


क्या हुड्डा भी होंगे सलाखों के पीछे?



बेटी के यौन उत्तपीडन विवाद में घिरे मुख्य सचिव मीणा



गुर्जर आंदोलन- थमता बवाल उठते सवाल




बॉडी बनी नहीं बसें रजिस्टर्ड- राजस्थान बस परमिट घोटाला




खान घोटाला- राजस्थान रिसरजेंट पर पड़ सकती है ग्रहण की छाया




मानवता रोती रही, सीकर पुलिस सोती रही



क्या लठ के बल पर आरक्षण ले पाएंगे जाट ?




ढ़ोल पीट बाज़ार में- टी आर पी हुआ किसान



राजस्थान काँग्रेस- तो क्या अब पुराने पत्तों को झाड़ा जाएगा ?




सिवानी केजरी ने दी हिन्द केसरी को पटकनी




'राजे' स्थान बना राजस्थान




यह कैसा महिला सशक्तिकरण- चलती बस में रेप




सिर्फ कानून नहीं रोक पाएगा बाल विवाह




Sunday 20 November 2016

राजस्थान
जग मोहन ठाकन
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क्या डिनर डिप्लोमेसी मिटा पाएगी कांग्रेसी दिग्गजों के मनभेद ?
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अखिल  भारतीय काँग्रेस कमेटी के महामंत्री एवं राजस्थान प्रदेश के प्रभारी गुरुदास कामत द्वारा राजस्थान काँग्रेस के शीर्ष नेताओं को एकजुट कर एक मंच पर लाकर आपसी मतभेदों को मिटाने हेतु इसी अक्तूबर माह से शुरू की गई डिनर डिप्लोमेसी क्या अपने उद्देश्य में सफल हो पाएगी  ?  यह यक्ष प्रश्न वर्तमान हालात में राजनैतिक गलियारों में मुख्य चर्चा का विषय बना हुआ है । उल्लेखनीय है कि इसी अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में काँग्रेस के प्रदेश प्रभारी कामत ने अपनी डिनर डिप्लोमसी की परिकल्पना को अमलीजामा पहनाने हेतु प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वयोवृद्ध नेता अशोक गहलोत के आवास पर काँग्रेस  के प्रमुख नेताओं को प्रथम  भोज पर आमंत्रित किया था  । तीन घंटे तक चली इस डिनर मीटिंग के बाद कामत ने कहा था कि पार्टी में कोई मतभेद नहीं है  और सभी नेताओं को साथ लेकर चलने की रणनीति के तहत इस प्रकार की डिनर बैठकें हर माह आयोजित की जाएंगी । परंतु पहली ही बैठक में पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं प्रभावी नेता सी पी जोशी की अनुपस्थिति डिनर डिप्लोमेसी की पोल खोल बैठी । हालांकि कामत ने इसे हल्के में लिया और अगली डिनर की मीटिंग नवम्बर के प्रथम सप्ताह में प्रदेश काँग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट के नाम लिख दी ।
  
    परंतु प्रथम डिनर डिप्लोमेसी की मीटिंग को मात्र दस दिन ही हुए थे कि बीकानेर में  प्रदेश काँग्रेस कार्यकारिणी की तेरह अक्तूबर को आयोजित मीटिंग तथा अगले ही दिन काँग्रेस सेवा दल की सभा में काँग्रेस के दिग्गज नेताओं ने एक बार फिर इन दोनों ही दिनों में अनुपस्थित रहकर कामत की डिप्लोमेसी को ठेंगा दिखा दिया । पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री सी पी जोशी इन  मीटिंगों से दूरी बनाए रखे और एक बार फिर संदेश दे दिया कि वे अपनी मर्जी के अनुसार कार्यक्रम तय करते हैं न कि किसी डिप्लोमेसी के आधार पर । गहलोत ने तो यह ट्वीट – अपने मित्र के पारिवारिक कार्यक्रम में व्यस्तता की बदौलत मीटिंग में नहीं आ पाएंगे करके यह साफ संकेत भी दे दिया कि उनके लिए पार्टी के कार्यक्रमों की बजाय व्यक्तिगत व्यस्तता अधिक महत्व रखती है ।
 भले ही दिग्गज नेताओं ने बीकानेर के इस कार्यक्रम पर बेरुखी अपनाई हो ,परंतु  पार्टी कार्यकर्ताओं में दोनों ही दिन उत्साह था । पार्टी अध्यक्ष सचिन पायलट ने भी अपने आपको एक नेता की बजाय एक कार्यकर्ता के रूप में पेश कर आम कार्यकर्ता का दिल जीतने का प्रयास किया । उन्होने अपने आप को एक साधारण कार्यकर्ता बताते हुए स्पष्ट कर दिया कि राज्य में पार्टी नेतृत्व का फैसला चुनाव के बाद आलाकमान ही करेगा । पायलट ने कार्यकर्ताओं को कहा कि वे सबसे भाग्यशाली अध्यक्ष हैं क्योकि उन्हे सभी छोटे बड़े कार्यकर्ताओं का सहयोग प्राप्त है । जहां पायलट ने निचले स्तर के कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने का संकेत दिया वहीं उन्होने समूहिक नेतृत्व की तरफ इशारा करके सभी नेताओं को भी अपने साथ चलने का निमंत्रण दे दिया । जब उनसे पार्टी के आंतरिक मतभेद बारे पूछा गया तो पायलट ने बड़ी ही चतुराई से कहा कि उन्हे पार्टी अध्यक्ष के रूप में सभी नेताओं का सहयोग प्राप्त है । कॉंग्रेस पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर चंदर भान तथा विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता रामेश्वर डुड्डी भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे । क्योंकि बीकानेर व आसपास का क्षेत्र गंगानगर तथा हनुमानगढ़ किसान बाहुल्य क्षेत्र है , इसलिए उपरोक्त दोनों नेताओं को साथ लेकर पायलट ने किसानों को विशेषकर जाटों को  भी अपने साथ जोड़ने का प्रयास किया है । इसमे वे कितने सफल होते हैं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा । उल्लेखनीय है कि काँग्रेस के  पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सत्ता कार्यकाल में जाट उपेक्षित महसूस करने लगे थे , और इसी का खामियाजा काँग्रेस को 2013 के विधान सभा तथा 2014 के लोकसभा चुनावों में हार के रूप में भुगतना पड़ा था । अब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट इस बारे में काफी सजग हैं तथा अपनी हर मीटिंग में जाट नेताओं , विशेषकर विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता रामेश्वर डुड्डी को साथ लेकर चलते हैं । गत वर्ष धौलपुर तथा भरतपुर के जाटों के  आरक्षण को सबसे पहले समर्थन देने वाले सचिन पायलट ही थे । अभी इसी 19  अक्तूबर को राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा ओ बी सी कमिशन को भंग करने के आदेश पर काँग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने भाजपा सरकार को घेरना प्राम्भ कर दिया है । इस आदेश का असर राजस्थान के जाटों सहित पन्द्रह जातियों पर पड़ेगा । राजस्थान की जिन जातियों पर इसका असर पड़ेगा उन जातियों को काँग्रेस अपने पक्ष में करने के लिए इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने में जुट गई है । इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सचिन पायलट ने कहा है कि यह पहला अवसर है कि भारत में किसी ओ बी सी आयोग को अवैध घोषित किया गया है । सचिन ने सत्तारूढ़ भाजपा सरकार पर आरोप लगाते  हुए कहा कि यह सरकार की लापरवाही है और इससे साफ झलकता है कि जो वर्ग अपने हक की लड़ाई के लिए संघर्षरत हैं उनके प्रति सरकार गम्भीर नहीं है । इस मुद्दे पर प्रतिपक्ष नेता रामेश्वर डुड्डी ने भी पायलट के मत का समर्थन करते हुए भाजपा सरकार पर कटाक्ष किया है कि यदि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राज काज की चिंता करती तो ओ बी सी आयोग भंग होने की नौबत  ही नहीं आती ।
     जब भी किसी परिवार , संस्था या पार्टी के सदस्यों के बीच भीतरी कलह का धुआँ उठने लगता है तो समझदार मुखिया समझ जाता है कि अब उसकी पकड़ ढीली होती जा रही है । यदि मुखिया इस धुएँ के प्रति अज्ञानी व अनभिज्ञ रहता है या ऐसा बने रहने का उपक्रम करता है तो स्थिति कभी भी विष्फोटक हो सकती है और सर्वाधिक नुकसान मुखिया की साख को ही पहुंचता है । एक सजग मुखिया कभी ढिलाई बर्दास्त नहीं करता । क्योंकि –ढीलापन जब शुरू होता है , हर कोई अफजल गुरु होता है । आज काँग्रेस में आंतरिक गुटबाजी की प्रवृति खतरनाक स्तर तक पहुँच गई प्रतीत हो रही है । पड़ौसी राज्य हरियाणा की हाल की घटनाओं को देखें तो वहाँ के प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर तथा राज्य के पूर्व कोंग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेंदर हुड्डा के बीच मतभेद जूतम पजार तक पहुँच चुका दिख रहा है ।  गत दिनों राहुल गांधी के स्वागत को लेकर दोनों गुटों के कार्यकर्ताओं की भिड़ंत मारपीट स्तर पर पहुँच गई , जिसमे स्वयं प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को काफी चोट आई तथा उन्हें हॉस्पिटल में दाखिल होना पड़ा ।
  राजस्थान में भी आंतरिक फूट का धुआँ स्पष्ट दिख रहा है । प्रदेश में काँग्रेस पार्टी के तीन गुट साफ पनपते नज़र आ रहे हैं । एक गुट पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा पोषित है , दूसरा पूर्व केन्द्रीय मंत्री सी पी जोशी से जोश पा रहा है तो तीसरे गुट के पायलट स्वयं प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट हैं । किसी एक नेता द्वारा की जा रही सभा में अन्य दो नेताओं के समर्थक रुचि नहीं ले रहे हैं । इससे मूल कोंग्रेसी कार्यकर्ताओं में तो आक्रोश है ही , आम जन में भी काँग्रेस के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे हैं । हालांकि अभी आगामी विधान सभा चुनाओं में दो वर्ष का समय बाकी है परंतु अभी से ही तीनों नेताओं ने अपनी अपनी ताजपोशी के सपने लेने शुरू कर दिये हैं । निजी कार्यकर्ताओं की फौज तो जुटती है परंतु कोंग्रेसी नेताओं की सभाओं में कोंग्रेसी कार्यकताओं का अभाव स्पष्ट दिखता है । ऐसे में काँग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री एवं राजस्थान के प्रभारी गुरुदास कामत की डिनर डिप्लोमेसी कितनी सफल हो पाएगी यह तो वर्ष 2018 के नवम्बर में होने वाले राज्य विधान सभा चुनावों के नतीजे ही बेहतर  बता पाएंगे । हाँ इतना अवश्य है कि कलह वाले परिवार नुकसान में ही ज्यादा रहते हैं ।


Thursday 20 October 2016

क्या 28 मौतें दिला पाएंगी जाटों को आरक्षण?

http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/thaken-kee-thak-thak/tags/%E0%A4%9C%E0%A4%97-%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%A8-%E0%A4%A0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%A8

क्या 28 मौतें दिला पाएंगी जाटों को आरक्षण?

  Saturday February 27, 2016  

पैंतीस हज़ार करोड़ की संपत्ति स्वाहा , अठाइस जिंदगियाँ खाक ,200 से अधिक जखमी और सदा के लिए जातिगत विद्वेष | यही है हरियाणा में दस दिन चले जाट  आरक्षण आंदोलन का लेखा जोखा | आखिर क्यों सुलगा हरियाणा ? क्यों  सरकार  रही बेखबर  ? किसको क्या मिला ? ये वो तमाम प्रश्न हैं , जो हर  किसी मन को उद्वेलित करते हैं | इंनका उत्तर जानने के लिए हमे झांकना  होगा दो वर्ष पूर्व के घटनाक्रम के भीतर  | पिछले 2014 के लोकसभा  आम चुनाव से ठीक पहले काँग्रेस ने जाट वोटों को अपने पक्ष में लामबंध करने के लिए  मार्च , 2014 में हरियाणा समेत नो राज्यों के जाटों को ओ बी सी श्रेणी में शामिल किया था | हालांकि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी फरवरी 2014 की रिपोर्ट में जाटों को ओ बी सी श्रेणी में मानने से इंकार कर दिया था  , परंतु तत्कालीन  यू पी ए सरकार ने चार मार्च ,2014 को जाटों को ओ बी सी श्रेणी में सम्मिलित करने का नोटिफ़िकेशन जारी कर दिया | बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मार्च ,2015 में यू पी ए सरकार के इस  नोटिफ़िकेशन को निरस्त कर दिया |

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने जाटों के पैरों तले की जमीन खिसका दी | जाटों के जो बच्चे ओ बी सी श्रेणी के तहत 2014 के बाद विभिन्न सरकारी नौकरियों में चयनित हो चुके थे और नौकरी ग्रहण करने का इंतजार कर रहे थे , उनकी आशाओं पर बाढ़ की तरह पानी फिर गया |इस एक झटके ने बेरोजगार जाट  युवाओं की नौकरी की आस धूमिल कर दी |  इन्दिरा साहनी केस में 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार जो खुली प्रतियोगिता में सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के साथ मेरिट में बराबरी के रैंक  पर रहते हैं , उन्हें आरक्षित पदों की बजाय सामान्य श्रेणी में समायोजित किया जाए  | और  आरक्षित श्रेणी की सीटों को तो उन उम्मीदवारों से भरा जाना चाहिये जो आरक्षित वर्ग में हैं तथा जिनकी मेरिट सामान्य श्रेणी के कट आफ मार्क्स से नीचे प्रारम्भ होती है | सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आरक्षित श्रेणी के लोगों को डबल बेनीफिट  मिलने लगा | उस श्रेणी के होशियार बच्चे तो  जनरल श्रेणी में समायोजित होने लगे तथा निम्न मेरिट वाले बच्चे अपनी अपनी आरक्षित श्रेणी एस सी /एसटी /ओ बी सी में स्थान पाने लगे | इसका नुकसान सामान्य श्रेणी को सीधा यह हुआ कि  आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार अपनी आरक्षित सीटों से अधिक सीटों पर चयनित होने लगे और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों का दायरा सिमट गया | जब जाटों ने देखा कि उनके सम वर्गीय जातियाँ यथा यादव , गुर्जर ,सैनी आदि डबल फायदा उठा रहे हैं और सामान्य श्रेणी में अन्य उच्च जातियाँ जो आर्थिक , सामाजिक व शैक्षणिक रूप से जाटों से ऊपर एवं समृद्ध  हैं उन्हें मेरिट में नहीं आने दे रही हैं , तो बेरोजगार जाट  युवाओं के मन में   कुंठा घर कर गई | यही कुंठा ग्रस्त युवा येन केन प्रकारेण आरक्षण पाने को आतुर हो उठे |
    
किसान नेता एवं हरियाणा राज्य पशु चिकित्सा सहायक संघ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डाक्टर बलबीर सिंह कहते हैं कि “भले ही जाटों की स्थिति आज से पचास वर्ष पूर्व कृषि जोत अधिक होने के कारण थोड़ी मजबूत रही हो , परंतु वर्तमान में कृषि जोत में हुए पीढ़ी  दर पीढ़ी बँटवारे के कारण आम जाट परिवार के लिए खेती घाटे का सौदा बन कर रह गई है |आज हरियाणा में प्रति परिवार औसतन छह एकड़ कृषि भूमि है , जिसमे सवा लाख से लेकर अधिकतम तीन लाख रुपये प्रतिवर्ष पैदावार ( बचत नहीं ) बड़ी मुश्किल से हो पा रही   है | खेती के इस  घाटे के कार्य ने जाटों  की आर्थिक स्थिति धराशायी कर दी है | डॉक्टर बलबीर सिंह  प्रश्न करते हैं कि जब ओ बी सी में आय की अधिकतम सीमा छह लाख रुपये प्रतिवर्ष कर के क्रीमी लेयर की ओ बी सी में प्रविष्टि पहले ही रोक दी गई है तो यह बात कहकर कि जाट समृद्ध जाति है , कैसे  छह लाख से कम आय वाले जाटों को ओ बी सी में शामिल करने से रोका जा रहा है ? अगर कोई जाट क्रीमी लेयर में आता है तो वो स्वतः ही ओ बी सी का हक खो देगा , फिर क्यों जाटों की  झूठी मजबूत आर्थिक स्थिति को बार बार  उछाल कर आरक्षण में  बाधा बनाया जा रहा है ?”
   
हालांकि पिछले बीस वर्षों में जाटों में शिक्षा का काफी प्रसार हुआ है , परंतु  अधिकतर जाट  विद्यार्थी बी ए /एम ए करके भी अनुपयोगी शिक्षा के कारण  बेरोजगारी के भँवर में फंस कर रह गए हैं | जाट युवा चाहे कितना भी शिक्षित क्यों न हो ,आज भी अन्य जातियों के लोग उन्हें सोलह दूनी आठ कहकर मज़ाक उड़ाते हैं |बढ़ती बेरोजगारी के कारण जाट युवाओं के रिश्ते तक नहीं हो पा  रहे हैं | जिसके कारण जाट युवाओं द्वारा दूसरे प्रदेशों बिहार ,आसाम , केरल आदि से अपने सामाजिक स्तर से भी कम स्तरीय समाज की लड़कियां खरीद फरोख्त करके शादी करने को बाध्य हो रहे हैं |आज हरियाणा के हर गाँव में पाँच से दस घरों में इस प्रकार के मामले मिल रहे हैं | नौकरी नहीं तो शादी नहीं , ने जाटों की सामाजिक व्यवस्था को तहस नहस कर दिया है | आर्थिक रूप से वर्तमान में जाटों की कमर टूट चुकी है , कृषि भूमि बैंकों के पास ऋण लेकर गिरवी रख दी गई है और आए दिन किसान आत्महत्त्या का सिलसिला आगे बढ़ता जा रहा है |
    
हालांकि आरक्षण में राजनीतिक स्थिति का आंकलन कहीं भी  अनिवार्य नहीं है , परंतु जाट आरक्षण न मिलने के पीछे जाटों को राजनीतिक रूप से सुदृढ़ दर्शाना भी एक महत्वपूर्ण कारक है | हरियाणा में अब तक बने  दस मुख्यमंत्रियों में से केवल पाँच व्यक्ति ही जाट जाति से रहे हैं |शेष पाँच अन्य जातियों से रहे हैं | जाटों में बंसीलाल , देवी लाल , ओमप्रकाश चौटाला , हुकम सिंह और भूपेंदर सिंह हुडा तथा गैर जाटों में भगवत दयाल शर्मा ( ब्राहमन ) , राव बीरेंन्दर सिंह ( यादव ) , बनारसी दास गुप्ता ( बनिया )  भजन लाल ( बिशनोई ) एवं वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ( पंजाबी ) |
   
जाटों की पिछड़ती अर्थव्यवस्था , डगमगाती सामाजिक स्थिति तथा बेरोजगारी के अलावा वर्तमान  हरियाणा जाट आरक्षण आंदोलन का ताज़ा एवं सबसे ज्यादा चुभने वाला कारण रहा है भाजपा के कुरुक्षेत्र से सांसद राज कुमार सैनी का जाटों के प्रति आए दिन जहर भरे बयान देना , बार बार जाटों के बारे में औछी बातें कहना तथा जाटों के खिलाफ अन्य ओ बी सी जातियों को उकसा कर प्रतिद्वंद्वी फोर्स के रूप में खड़ा कर देना | इसी जहरीले माहौल का ही नतीजा है वर्तमान उग्र जाट आंदोलन , जिसमे 28 लोगों की जान चली गई , 200 से अधिक व्यक्ति घायल हो गए , पैंतीस हज़ार करोड़ से अधिक संपति जलकर राख़  हो गई तथा सदा के लिए शांत हरियाणा में विभिन्न जातियों में विद्वेष के बीज अंकुरित हो गए |
        
सैनी के इस आचरण पर जाट विचारक रमेश राठी का कहना है-
“क्या पिछले डेढ़ वर्ष से सैनी के जहरीले बयान भाजपा सरकार एवं नेतृत्व को सुनाई नहीं दे रहे थे ? क्यों हरियाणा एवं केंद्र सरकार चुप्पी साधे रही ? बार बार मीडिया में दिये गए विद्वेषात्मक बयानों पर क्यों नहीं भाजपा ने नोटिस लिया ? क्यों नहीं सैनी को ऐसी बयान बाजी से रोका गया ?” भाजपा की इसी सुनकर भी अनसुनी कर देने वाली नीति के कारण ही जाटों में यह संदेश गया कि भाजपा प्रदेश में जाट गैर जाट की राजनीति करके जातीय बंटवारा करना चाहती है ताकि हमेशा के लिए इस जातीय फूट का फायदा उठाकर सत्ता हथियाती रहे | अगर जाटों का यह शक सही है तो बड़ी ही चिंता की बात है | परंतु शायद भाजपा यह भूल रही है कि हरियाणा का भाईचारा भले ही कुछ समय के लिए खटास में पड़ जाए ,परंतु कुछ समय के अंतराल के बाद हरियाणा के मेल जोल पूर्ण ताने बाने में यह कूटनीतिक चाल ठप्प होकर रह जाएगी |
   
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का हरियाणा के जाटों को आरक्षण देने की मांग का समर्थन कर देने से हरियाणा की जाट गैर जाट विभक्तिकरण की इस तथाकथित चाल को गहरा  सदमा लगेगा | इससे जहां हरियाणा का दलित जाटों के पक्ष में खड़ा हो जाएगा , वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा के आगामी चुनाव में जाटों के घाव सहलाने का मायावती का प्रयास जाटों का विश्वास अर्जित करने में भी कामयाब रहेगा |
      
इसी मध्य हरियाणा के एक  पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्दर हुड्डा के राजनीतिक सलाहकार वीरेंदर सिंह का एक कथित आडियो टेप भी प्रकाश में आया है , जिसमे वीरेंदर सिंह की आवाज़ में यह कहा बताया जा रहा है कि हमने रोहतक क्षेत्र में तो आंदोलन को ठीक चला दिया है , पर चौटाला के क्षेत्र में आंदोलन क्यों नहीं गति पकड़ रहा है ? अगर यह बात सही है कि जाटों के कंधों पर बंदूक रखकर कुछ राजनीतिज्ञ हरियाणा का माहौल खराब कर रहे हैं तो बहुत चिंता का विषय है और जाटों को भी किसी के बहकावे में आकर आंदोलन को अपने हाथों से निकालकर दूसरे के हाथों में नहीं जाने देना चाहिए था | जाटों के आंदोलन ने इतना उग्र रूप धारण  किया वह भी निंदा  करने लायक है | जाटों को भी अपना आंदोलन शांति पूर्वक ढंग से संचालित करना चाहिए था | इस आंदोलन में एक बात यह भी दिखलाई दी कि आंदोलन का संचालन किसी एक के नेतृत्व में नहीं चलाया गया | अपनी अपनी डफड़ी , अपना अपना राग दिखलाई पड़ रहा था |जिन अन्य जातियों ने जाटों का उग्र विरोध कर आग में घी डालने का काम किया वह भी किसी भी  ढंग से उचित नहीं ठहराया जा सकता | भले ही कोई समाज अपनी जायज बात को उठाने के लिए संवैधानिक ढंग से आंदोलन करे ,परंतु आंदोलनकरियों को सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हिंसा व उग्रवाद किसी भी व्यक्ति व समाज को नुकसान के सिवाय कुछ नहीं दे सकता |
  
अब क्या होगा ?
जाट आरक्षण की आग की लपेटों से झुलसी  भाजपा सरकार ने भले ही जाटों को शांत करने हेतु एकबारगी उनकी आरक्षण की मांग को मान लिया हो , परंतु वास्तविक स्थिति जस की तस लगती है | आरक्षण जाटों को मिल पाएगा , इसमे अभी भी संदेह है | आंदोलन समाप्ती हेतु मुख्यमंत्री खट्टर ने भले ही घोषणा कर दी कि जाटों की आरक्षण की मांग मान ली है तथा केन्द्रीय मंत्री वेंकैया नायडू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन कर दिया गया है जो शीघ्रतम विभिन्न पक्षों को सुनकर जाट आरक्षण का फैसला देगी | हरियाणा विधान सभा में भी मार्च में होने वाले सत्र में हरियाणा सरकार जाटों को आरक्षण देने का बिल पारित करेगी |आंदोलन में मारे गए निर्दोष लोगों के परिवारों को दस दस लाख की वितीय सहायता तथा प्रत्येक परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी | परंतु क्या खट्टर सरकार जो इस मुद्दे पर पहले ही विभाजित नजर आ रही है , जाटों को आरक्षण दिला पाएगी ?इसमे संदेह के बादल तो पहले ही दिन से उमड़ पड़े हैं | आंदोलन वापिस लेते ही खट्टर सरकार के एक मंत्री अनिल विज  ने खट्टर के फैसलों के विरोध में इस्तीफा तक दे दिया | हालांकि बाद में मुख्यमंत्री के समझाने  पर वे राजी हो गए | आंदोलन समाप्ती के दूसरे ही दिन खट्टर ने  भी पैंतरा बदल कर यह बयान दे दिया कि जाटों को आरक्षण तो दिया जाएगा परंतु ओ बी सी के 27 प्रतिशत कोटे को नहीं छेड़ा जाएगा |

क्योंकि जाट  27 प्रतिशत ओ बी सी में ही  हिस्सा मांग रहे हैं जबकि मुख्यमंत्री खट्टर 27 प्रतिशत से इतर आरक्षण की बात कर रहे हैं , तो कैसे निकल पाएगा कोई बीच का रास्ता ? खट्टर सरकार के एक अन्य मंत्री करणदेव कंबोज  भी मुखर हो गए हैं –“ मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कि सरकार आरक्षण का यह विधेयक कैसे लाएगी और विधानसभा में कैसे पास कराएगी ? क्योंकि सुप्रीम कोर्ट दो बार मना कर चुका है | हम सुप्रीम कोर्ट से तो ऊपर नहीं हो सकते |”

इतना तो स्पष्ट हो गया है कि सरकार 27 प्रतिशत के भीतर तो जाटों को आरक्षण देना नहीं चाहती | अलग से 20 प्रतिशत का विशेष बैक्वार्ड श्रेणी के तहत आरक्षण देने का जो प्रस्ताव सरकार ने जाटों के सामने आंदोलन के दौरान ही रखा था उसे जाटों ने उसी समय अस्वीकार कर दिया था |क्योंकि पिछली काँग्रेस सरकार द्वारा 2014 में  दिया गया विशेष पिछड़े वर्ग में 10 प्रतिशत का आरक्षण का फैसला सुप्रीम कोर्ट में पहले ही 2015 में धराशायी हो चुका है | अब  हरियाणा में पहले ही 49 प्रतिशत आरक्षण है ,यदि अलग से 20 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है तो कैसे मान लिया जाए कि इस बार सुप्रीम कोर्ट उसे निरस्त नहीं करेगा ?

मामला जैसे थे की स्थिति में है तथा हालात  विकट हैं | जाटों के आरक्षण का सपना पूरा होता मुश्किल दिखाई  पड़ रहा है | अगर इस बार भी जाटों को ठगा गया तो हालात बिगड़ने की   काली रेखा किसी भी समय आकाश में दिखलाई दे सकती है | हाँ इतना अवश्य है कि राजनीति करने वालों ने तो अपना अपना वोट बैंक पुख्ता कर ही लिया है | आगे भविष्य के गर्भ में क्या निहित है , यह कोई नहीं जानता  |

जग मोहन ठाकन, स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक , सर्वोदय स्कूल के पीछे , सादुलपुर , चूरू, राजस्थान . पिन  ३३१०२३ .मोब .- ७६६५२६१९६३ .

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Wednesday 19 October 2016

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