Thursday 20 October 2016

क्या 28 मौतें दिला पाएंगी जाटों को आरक्षण?

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क्या 28 मौतें दिला पाएंगी जाटों को आरक्षण?

  Saturday February 27, 2016  

पैंतीस हज़ार करोड़ की संपत्ति स्वाहा , अठाइस जिंदगियाँ खाक ,200 से अधिक जखमी और सदा के लिए जातिगत विद्वेष | यही है हरियाणा में दस दिन चले जाट  आरक्षण आंदोलन का लेखा जोखा | आखिर क्यों सुलगा हरियाणा ? क्यों  सरकार  रही बेखबर  ? किसको क्या मिला ? ये वो तमाम प्रश्न हैं , जो हर  किसी मन को उद्वेलित करते हैं | इंनका उत्तर जानने के लिए हमे झांकना  होगा दो वर्ष पूर्व के घटनाक्रम के भीतर  | पिछले 2014 के लोकसभा  आम चुनाव से ठीक पहले काँग्रेस ने जाट वोटों को अपने पक्ष में लामबंध करने के लिए  मार्च , 2014 में हरियाणा समेत नो राज्यों के जाटों को ओ बी सी श्रेणी में शामिल किया था | हालांकि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी फरवरी 2014 की रिपोर्ट में जाटों को ओ बी सी श्रेणी में मानने से इंकार कर दिया था  , परंतु तत्कालीन  यू पी ए सरकार ने चार मार्च ,2014 को जाटों को ओ बी सी श्रेणी में सम्मिलित करने का नोटिफ़िकेशन जारी कर दिया | बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मार्च ,2015 में यू पी ए सरकार के इस  नोटिफ़िकेशन को निरस्त कर दिया |

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने जाटों के पैरों तले की जमीन खिसका दी | जाटों के जो बच्चे ओ बी सी श्रेणी के तहत 2014 के बाद विभिन्न सरकारी नौकरियों में चयनित हो चुके थे और नौकरी ग्रहण करने का इंतजार कर रहे थे , उनकी आशाओं पर बाढ़ की तरह पानी फिर गया |इस एक झटके ने बेरोजगार जाट  युवाओं की नौकरी की आस धूमिल कर दी |  इन्दिरा साहनी केस में 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार जो खुली प्रतियोगिता में सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के साथ मेरिट में बराबरी के रैंक  पर रहते हैं , उन्हें आरक्षित पदों की बजाय सामान्य श्रेणी में समायोजित किया जाए  | और  आरक्षित श्रेणी की सीटों को तो उन उम्मीदवारों से भरा जाना चाहिये जो आरक्षित वर्ग में हैं तथा जिनकी मेरिट सामान्य श्रेणी के कट आफ मार्क्स से नीचे प्रारम्भ होती है | सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आरक्षित श्रेणी के लोगों को डबल बेनीफिट  मिलने लगा | उस श्रेणी के होशियार बच्चे तो  जनरल श्रेणी में समायोजित होने लगे तथा निम्न मेरिट वाले बच्चे अपनी अपनी आरक्षित श्रेणी एस सी /एसटी /ओ बी सी में स्थान पाने लगे | इसका नुकसान सामान्य श्रेणी को सीधा यह हुआ कि  आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार अपनी आरक्षित सीटों से अधिक सीटों पर चयनित होने लगे और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों का दायरा सिमट गया | जब जाटों ने देखा कि उनके सम वर्गीय जातियाँ यथा यादव , गुर्जर ,सैनी आदि डबल फायदा उठा रहे हैं और सामान्य श्रेणी में अन्य उच्च जातियाँ जो आर्थिक , सामाजिक व शैक्षणिक रूप से जाटों से ऊपर एवं समृद्ध  हैं उन्हें मेरिट में नहीं आने दे रही हैं , तो बेरोजगार जाट  युवाओं के मन में   कुंठा घर कर गई | यही कुंठा ग्रस्त युवा येन केन प्रकारेण आरक्षण पाने को आतुर हो उठे |
    
किसान नेता एवं हरियाणा राज्य पशु चिकित्सा सहायक संघ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डाक्टर बलबीर सिंह कहते हैं कि “भले ही जाटों की स्थिति आज से पचास वर्ष पूर्व कृषि जोत अधिक होने के कारण थोड़ी मजबूत रही हो , परंतु वर्तमान में कृषि जोत में हुए पीढ़ी  दर पीढ़ी बँटवारे के कारण आम जाट परिवार के लिए खेती घाटे का सौदा बन कर रह गई है |आज हरियाणा में प्रति परिवार औसतन छह एकड़ कृषि भूमि है , जिसमे सवा लाख से लेकर अधिकतम तीन लाख रुपये प्रतिवर्ष पैदावार ( बचत नहीं ) बड़ी मुश्किल से हो पा रही   है | खेती के इस  घाटे के कार्य ने जाटों  की आर्थिक स्थिति धराशायी कर दी है | डॉक्टर बलबीर सिंह  प्रश्न करते हैं कि जब ओ बी सी में आय की अधिकतम सीमा छह लाख रुपये प्रतिवर्ष कर के क्रीमी लेयर की ओ बी सी में प्रविष्टि पहले ही रोक दी गई है तो यह बात कहकर कि जाट समृद्ध जाति है , कैसे  छह लाख से कम आय वाले जाटों को ओ बी सी में शामिल करने से रोका जा रहा है ? अगर कोई जाट क्रीमी लेयर में आता है तो वो स्वतः ही ओ बी सी का हक खो देगा , फिर क्यों जाटों की  झूठी मजबूत आर्थिक स्थिति को बार बार  उछाल कर आरक्षण में  बाधा बनाया जा रहा है ?”
   
हालांकि पिछले बीस वर्षों में जाटों में शिक्षा का काफी प्रसार हुआ है , परंतु  अधिकतर जाट  विद्यार्थी बी ए /एम ए करके भी अनुपयोगी शिक्षा के कारण  बेरोजगारी के भँवर में फंस कर रह गए हैं | जाट युवा चाहे कितना भी शिक्षित क्यों न हो ,आज भी अन्य जातियों के लोग उन्हें सोलह दूनी आठ कहकर मज़ाक उड़ाते हैं |बढ़ती बेरोजगारी के कारण जाट युवाओं के रिश्ते तक नहीं हो पा  रहे हैं | जिसके कारण जाट युवाओं द्वारा दूसरे प्रदेशों बिहार ,आसाम , केरल आदि से अपने सामाजिक स्तर से भी कम स्तरीय समाज की लड़कियां खरीद फरोख्त करके शादी करने को बाध्य हो रहे हैं |आज हरियाणा के हर गाँव में पाँच से दस घरों में इस प्रकार के मामले मिल रहे हैं | नौकरी नहीं तो शादी नहीं , ने जाटों की सामाजिक व्यवस्था को तहस नहस कर दिया है | आर्थिक रूप से वर्तमान में जाटों की कमर टूट चुकी है , कृषि भूमि बैंकों के पास ऋण लेकर गिरवी रख दी गई है और आए दिन किसान आत्महत्त्या का सिलसिला आगे बढ़ता जा रहा है |
    
हालांकि आरक्षण में राजनीतिक स्थिति का आंकलन कहीं भी  अनिवार्य नहीं है , परंतु जाट आरक्षण न मिलने के पीछे जाटों को राजनीतिक रूप से सुदृढ़ दर्शाना भी एक महत्वपूर्ण कारक है | हरियाणा में अब तक बने  दस मुख्यमंत्रियों में से केवल पाँच व्यक्ति ही जाट जाति से रहे हैं |शेष पाँच अन्य जातियों से रहे हैं | जाटों में बंसीलाल , देवी लाल , ओमप्रकाश चौटाला , हुकम सिंह और भूपेंदर सिंह हुडा तथा गैर जाटों में भगवत दयाल शर्मा ( ब्राहमन ) , राव बीरेंन्दर सिंह ( यादव ) , बनारसी दास गुप्ता ( बनिया )  भजन लाल ( बिशनोई ) एवं वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ( पंजाबी ) |
   
जाटों की पिछड़ती अर्थव्यवस्था , डगमगाती सामाजिक स्थिति तथा बेरोजगारी के अलावा वर्तमान  हरियाणा जाट आरक्षण आंदोलन का ताज़ा एवं सबसे ज्यादा चुभने वाला कारण रहा है भाजपा के कुरुक्षेत्र से सांसद राज कुमार सैनी का जाटों के प्रति आए दिन जहर भरे बयान देना , बार बार जाटों के बारे में औछी बातें कहना तथा जाटों के खिलाफ अन्य ओ बी सी जातियों को उकसा कर प्रतिद्वंद्वी फोर्स के रूप में खड़ा कर देना | इसी जहरीले माहौल का ही नतीजा है वर्तमान उग्र जाट आंदोलन , जिसमे 28 लोगों की जान चली गई , 200 से अधिक व्यक्ति घायल हो गए , पैंतीस हज़ार करोड़ से अधिक संपति जलकर राख़  हो गई तथा सदा के लिए शांत हरियाणा में विभिन्न जातियों में विद्वेष के बीज अंकुरित हो गए |
        
सैनी के इस आचरण पर जाट विचारक रमेश राठी का कहना है-
“क्या पिछले डेढ़ वर्ष से सैनी के जहरीले बयान भाजपा सरकार एवं नेतृत्व को सुनाई नहीं दे रहे थे ? क्यों हरियाणा एवं केंद्र सरकार चुप्पी साधे रही ? बार बार मीडिया में दिये गए विद्वेषात्मक बयानों पर क्यों नहीं भाजपा ने नोटिस लिया ? क्यों नहीं सैनी को ऐसी बयान बाजी से रोका गया ?” भाजपा की इसी सुनकर भी अनसुनी कर देने वाली नीति के कारण ही जाटों में यह संदेश गया कि भाजपा प्रदेश में जाट गैर जाट की राजनीति करके जातीय बंटवारा करना चाहती है ताकि हमेशा के लिए इस जातीय फूट का फायदा उठाकर सत्ता हथियाती रहे | अगर जाटों का यह शक सही है तो बड़ी ही चिंता की बात है | परंतु शायद भाजपा यह भूल रही है कि हरियाणा का भाईचारा भले ही कुछ समय के लिए खटास में पड़ जाए ,परंतु कुछ समय के अंतराल के बाद हरियाणा के मेल जोल पूर्ण ताने बाने में यह कूटनीतिक चाल ठप्प होकर रह जाएगी |
   
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का हरियाणा के जाटों को आरक्षण देने की मांग का समर्थन कर देने से हरियाणा की जाट गैर जाट विभक्तिकरण की इस तथाकथित चाल को गहरा  सदमा लगेगा | इससे जहां हरियाणा का दलित जाटों के पक्ष में खड़ा हो जाएगा , वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा के आगामी चुनाव में जाटों के घाव सहलाने का मायावती का प्रयास जाटों का विश्वास अर्जित करने में भी कामयाब रहेगा |
      
इसी मध्य हरियाणा के एक  पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्दर हुड्डा के राजनीतिक सलाहकार वीरेंदर सिंह का एक कथित आडियो टेप भी प्रकाश में आया है , जिसमे वीरेंदर सिंह की आवाज़ में यह कहा बताया जा रहा है कि हमने रोहतक क्षेत्र में तो आंदोलन को ठीक चला दिया है , पर चौटाला के क्षेत्र में आंदोलन क्यों नहीं गति पकड़ रहा है ? अगर यह बात सही है कि जाटों के कंधों पर बंदूक रखकर कुछ राजनीतिज्ञ हरियाणा का माहौल खराब कर रहे हैं तो बहुत चिंता का विषय है और जाटों को भी किसी के बहकावे में आकर आंदोलन को अपने हाथों से निकालकर दूसरे के हाथों में नहीं जाने देना चाहिए था | जाटों के आंदोलन ने इतना उग्र रूप धारण  किया वह भी निंदा  करने लायक है | जाटों को भी अपना आंदोलन शांति पूर्वक ढंग से संचालित करना चाहिए था | इस आंदोलन में एक बात यह भी दिखलाई दी कि आंदोलन का संचालन किसी एक के नेतृत्व में नहीं चलाया गया | अपनी अपनी डफड़ी , अपना अपना राग दिखलाई पड़ रहा था |जिन अन्य जातियों ने जाटों का उग्र विरोध कर आग में घी डालने का काम किया वह भी किसी भी  ढंग से उचित नहीं ठहराया जा सकता | भले ही कोई समाज अपनी जायज बात को उठाने के लिए संवैधानिक ढंग से आंदोलन करे ,परंतु आंदोलनकरियों को सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हिंसा व उग्रवाद किसी भी व्यक्ति व समाज को नुकसान के सिवाय कुछ नहीं दे सकता |
  
अब क्या होगा ?
जाट आरक्षण की आग की लपेटों से झुलसी  भाजपा सरकार ने भले ही जाटों को शांत करने हेतु एकबारगी उनकी आरक्षण की मांग को मान लिया हो , परंतु वास्तविक स्थिति जस की तस लगती है | आरक्षण जाटों को मिल पाएगा , इसमे अभी भी संदेह है | आंदोलन समाप्ती हेतु मुख्यमंत्री खट्टर ने भले ही घोषणा कर दी कि जाटों की आरक्षण की मांग मान ली है तथा केन्द्रीय मंत्री वेंकैया नायडू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन कर दिया गया है जो शीघ्रतम विभिन्न पक्षों को सुनकर जाट आरक्षण का फैसला देगी | हरियाणा विधान सभा में भी मार्च में होने वाले सत्र में हरियाणा सरकार जाटों को आरक्षण देने का बिल पारित करेगी |आंदोलन में मारे गए निर्दोष लोगों के परिवारों को दस दस लाख की वितीय सहायता तथा प्रत्येक परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी | परंतु क्या खट्टर सरकार जो इस मुद्दे पर पहले ही विभाजित नजर आ रही है , जाटों को आरक्षण दिला पाएगी ?इसमे संदेह के बादल तो पहले ही दिन से उमड़ पड़े हैं | आंदोलन वापिस लेते ही खट्टर सरकार के एक मंत्री अनिल विज  ने खट्टर के फैसलों के विरोध में इस्तीफा तक दे दिया | हालांकि बाद में मुख्यमंत्री के समझाने  पर वे राजी हो गए | आंदोलन समाप्ती के दूसरे ही दिन खट्टर ने  भी पैंतरा बदल कर यह बयान दे दिया कि जाटों को आरक्षण तो दिया जाएगा परंतु ओ बी सी के 27 प्रतिशत कोटे को नहीं छेड़ा जाएगा |

क्योंकि जाट  27 प्रतिशत ओ बी सी में ही  हिस्सा मांग रहे हैं जबकि मुख्यमंत्री खट्टर 27 प्रतिशत से इतर आरक्षण की बात कर रहे हैं , तो कैसे निकल पाएगा कोई बीच का रास्ता ? खट्टर सरकार के एक अन्य मंत्री करणदेव कंबोज  भी मुखर हो गए हैं –“ मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कि सरकार आरक्षण का यह विधेयक कैसे लाएगी और विधानसभा में कैसे पास कराएगी ? क्योंकि सुप्रीम कोर्ट दो बार मना कर चुका है | हम सुप्रीम कोर्ट से तो ऊपर नहीं हो सकते |”

इतना तो स्पष्ट हो गया है कि सरकार 27 प्रतिशत के भीतर तो जाटों को आरक्षण देना नहीं चाहती | अलग से 20 प्रतिशत का विशेष बैक्वार्ड श्रेणी के तहत आरक्षण देने का जो प्रस्ताव सरकार ने जाटों के सामने आंदोलन के दौरान ही रखा था उसे जाटों ने उसी समय अस्वीकार कर दिया था |क्योंकि पिछली काँग्रेस सरकार द्वारा 2014 में  दिया गया विशेष पिछड़े वर्ग में 10 प्रतिशत का आरक्षण का फैसला सुप्रीम कोर्ट में पहले ही 2015 में धराशायी हो चुका है | अब  हरियाणा में पहले ही 49 प्रतिशत आरक्षण है ,यदि अलग से 20 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है तो कैसे मान लिया जाए कि इस बार सुप्रीम कोर्ट उसे निरस्त नहीं करेगा ?

मामला जैसे थे की स्थिति में है तथा हालात  विकट हैं | जाटों के आरक्षण का सपना पूरा होता मुश्किल दिखाई  पड़ रहा है | अगर इस बार भी जाटों को ठगा गया तो हालात बिगड़ने की   काली रेखा किसी भी समय आकाश में दिखलाई दे सकती है | हाँ इतना अवश्य है कि राजनीति करने वालों ने तो अपना अपना वोट बैंक पुख्ता कर ही लिया है | आगे भविष्य के गर्भ में क्या निहित है , यह कोई नहीं जानता  |

जग मोहन ठाकन, स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक , सर्वोदय स्कूल के पीछे , सादुलपुर , चूरू, राजस्थान . पिन  ३३१०२३ .मोब .- ७६६५२६१९६३ .

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Wednesday 19 October 2016

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हाथ में झाड़ू
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 सिर पर टोपी लाल , हाथ में रेशम का रूमाल , होये तेरा क्या कहना । आम नत्थू की खास चाय की दुकान पर यह गाना बज रहा था । मोहल्ले में घर की चाय से असंतुष्ट प्रबुद्धजनों का जमावड़ा रोज  की तरह नत्थू की दुकान पर लगा हुआ था । चुनावों पर टिप्पणी पर टिप्पणी पान की बेगम पर हुकुम के बादशाह की तरह फटकारी जा रही थी । तभी मोहल्ला कवि रमलु प्रसाद भाष्कर ने कहा -‘‘ रूको रूको , मेरे दिमाग में इस गीत में कुछ तबदीली की कुलबुलाहट हो रही है । जरा ध्यान से सुनो ।’’ सभी चुप हो गये ं। रमलु प्रसाद ने अपनी फटे बांस सी रानी मुखर्जी टाइप आवाज में पैरोडी प्रस्तुत की । ‘‘ सिर पर टोपी सफेद , हाथ में झाड़ू का कमाल , होये तेरा क्या कहना । ’’ नगरपालिका में मुनादी करने वाले मसुदी लाल ने तुरन्त मुगलिया दाद दी । ‘‘ बहुत खूब , बहुत खूब । क्या पैरोडी मारी है । कमाल कर दिया , धोती का रूमाल कर दिया । बधाई हो रमलु प्रसाद जी । ’’
      तभी हिन्दी के अध्यापक पण्डित गणेशी लाल जी ने जोड़ा - ‘‘भई ,  हाथ और झाड़ू की इस डेढ इश्किया जोड़ी पर तो पूरा शोध ग्रंथ लिखा जा सकता है । दोनों में चोली दामन का संम्बंध नजर आता है। बिना ‘‘ हाथ ’’ के ‘‘  झाडू ’’ कुछ नहीं कर सकती । परन्तु  ‘‘हाथ ’’ की चतुराई देखिये कि जो  ‘‘ हाथ ’’ पहले ‘‘झाड़ू’’ को हाथ नहीं लगाता था , वही ‘‘हाथ ’’ अब उसी तिरष्कृत ‘‘झाड़ू ’’ को हाथ में चैकस पकड़े बैठा है । और उसी ‘‘हाथ ’’ की सफाई देखिये कि उसी ‘‘झाड़ू’’ को सहलाये भी जा रहा है ,और गंदगी की सफाई के बहाने ‘‘झाड़ू’’ को घिसाये भी जा रहा है । परन्तु ‘‘झाड़ू ’’ की मजबूरी है, जब तक उसे पकड़ने वाले ‘‘हाथ ’’ का संग ना हो वह कोई सफाई नहीं कर सकती ।
            ‘‘ हाथ ’’ का पुराना तजुर्बा है, उसने सदैव ‘‘ यूज , फयूज एण्ड रिफयूज ’’ थ्यौरी का प्रयोग किया है तथा वह इसमें कामयाब भी रहा है । यह इसी ‘‘हाथ ’’ की कलाकारी ही है कि वह कभी ‘‘लालटेन ’’ को पकड कर प्रकाश की व्यवस्था करता है, कभी ‘‘साइकिल ’’ के हैण्डल को अपनी सुविधा अनुसार घुमाता है , तो कभी भारी भरकम मदमस्त ‘‘ हाथी ’’ के मस्तक को सहलाकर तो कभी भाला मारकर काबू करता है । परन्तु समय गवाह है कि जिस किसी को भी ‘‘हाथ ’’ ने हाथ लगाया वो ‘‘ पिंजरे का तोता ’’ बनकर रह गया ।
        हमारे देश  के एक बहुत बड़े  नेता ने बहुत पहले टोपी और फूल को संग संग रखकर भारतीय राजनीति में अपनी अहम् पैठ जमाई थी । परन्तु उनकी  आने वाली पीढियों ने ‘‘टोपी ’’ औैर फूल  दोनों को भुला दिया  । जिसका फायदा अन्य लागों ने उठाया औैर वही ‘‘टोपी ’’ और ‘‘ फूल ’’ उसी बड़े नेता की वर्तमान पीढियों के गले की फॅंास  बनी हुई हैं। आज टोपी किसी के पास है तो फूल किसी के पास ।  ’’
 मास्टर गणेशी लाल के लम्बे भाषण से परिचर्चा में ठहराव सा आ गया । लोग उठ कर चलने लगें । परन्तु नत्थू चाय वाला सोच रहा है कि कहीं यही ‘‘हाथ ’’ इस बंधी ‘‘ झाड़ू ’’ को भी तिनका तिनका न कर दे । औैर ‘‘झाड़ू ’’ के मंसूबों पर झाड़ू न फेर दे । ।
    
   जग मोहन ठाकन



राजस्थान से   जग मोहन ठाकन

मानवता रोती रही सीकर  पुलिस सोती रही
शर्म मगर उनको क्यों नहीं आती ? क्यों नहीं दिखता निज दागदार चेहरा ? आखिर ऐसी कौन सी ट्रेनिंग दी जाती है कि पुलिस की वर्दी धारण करते ही मानवता एवं संवेदनशीलता विलुप्त हो जाती है ? क्यों नहीं सुनता उनको ममता का रुदन ? क्यों नहीं झकझोरती उन्हें एक माँ की मनुहार ?
  यह सब प्रश्न उठते हैं  सितम्बर  १० और ११ की मध्यरात्रि को राजस्थान के जिला मुख्यालय  सीकर में हुए मानवता को शर्मसार करने वाले एक चार वर्षीया बालिका के साथ बलात्कार की घटना पर | सीकर के कल्याण सर्किल पर अपने पांच बच्चों के साथ सो रही माँ को यह कभी सपने में भी ख्याल  नहीं आया होगा कि उसका कुछ मिनट का बच्चों से अलगाव उसे इतनी भारी विपदा में डाल  देगा | रात करीब एक बजे वह किसी काम से बच्चों को सोता छोड़ कहीं  चली गयी थी , परन्तु जब लौटी तो अपनी चार वर्षीय बालिका को वहां न पाकर वह  दंग रह गयी | उसने  चारों तरफ आसपास के क्षेत्र तथा रेलवे स्टेशन पर बालिका को  ढूँढा ,पर असफलता के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं लगा | थक हार कर वह अंततः रात को अढाई बजे पुलिस से मदद के लिए कल्याण  सर्किल चौकी गयी | यहाँ कार्यरत  पुलिस कर्मियों ने  अपने पुलिसिया  अंदाज में स्पष्ट  कह दिया  कि - बच्ची  यहीं कहीं गयी होगी , खुद ही ढूंढो | माँ रात  तीन बजे फिर  चौकी में  मनुहार करने गयी , पुनः वही जवाब मिला | सुबह  छः बजे तक वह तीन बार चौकी गयी , पर मानवता विहीन  वर्दीधारियों  को कहाँ सुनती  है एक माँ की वेदना  | चौकी  से निराश  हो लाचार  माँ   सदर थाने  गयी , पर यहाँ भी उसे केवल  आश्वासन  मिला कि शीघ्र तलाश के लिए पुलिस भेज रहे हैं | निराश  माँ  पुनः अपने स्तर पर ही पुत्री कि खोज में लग गयी |उसे सुबह  सात बजे रेलवे स्टेशन  पर  ही  कल्याण पुलिस चौकी  से मात्र पांच सौ  मीटर की  दूरी  पर लहूलुहान बच्ची   एक कूड़े के ढेर में  बेसुध मिली | बच्ची  की  माँ का आरोप है कि बच्ची के लापता  होने  के बाद वह चार घंटे तक चौकी और थाने   के चक्कर काटती  रही,   पर पुलिस ने बच्ची को ढूँढने  की कोशिश तक नहीं की  | वह खुद ही उसे एस के अस्पताल लेकर गयी | अस्पताल में भी सात बजे पहुँचने के बावजूद  इलाज शुरू नहीं  किया गया | पुलिस भी सुबह  दस   बजे अस्पताल  पहुंची|  जब दोपहर बारह बजे एस पी अखिलेश कुमार अस्पताल पहुंचे तब बालिका का उपचार शुरू हुआ  | परन्तु हालत ज्यादा नाजुक होने के कारण बच्ची को जयपुर के जे के  लोन  हॉस्पिटल  रेफेर कर दिया गया |
       शुरूआती जांच में पुलिस  द्वारा बच्ची की माँ द्वारा शक के आधार पर दो व्यक्तियों राम सिंह और बाबु लाल के खिलाफ केस दायर कर पूछ ताछ प्राम्भ की गयी थी | परन्तु भारतीय पुलिस के बारे में रीछ के अपराध की बाबत बन्दर  से पीट पीट कर अपराध कबूल करवाने के कारनामे वाली   प्रचलित कहावत की तरह ही इन दोनों को भी राजस्थान पुलिस द्वारा अपराधी घोषित कर दिया जाता , अगर एक प्राइवेट सी सी टी वी की फुटेज में यह अपराध की घटना रिकॉर्ड नहीं हुई होती | पुलिस ने फुटेज के आधार पर बीकानेर जिले के नोखा निवासी पवन कुमार बिश्नोई को इस जघन्य दुष्कर्म प्रकरण के लिए गिरफ्तार कर लिया है | पुलिस के मुताबिक  पवन कुमार बच्ची के बरामदगी स्थल के नजदीक ही एक होटल में काम करता था तथा घटना के बाद से उसकी अचानक होटल छोड़ जाने की सूचना पर पुलिस ने संदेह के आधार पर उसे उसके घर नोखा से गिरफ्तार किया है |पुलिस के अनुसार पवन कुमार ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है | शुक्र है फुटेज का जिससे पुलिस हिरासत में लिए गए राम सिंह और बाबु लाल की  रिहाई हो सकी | वर्ना राजस्थान के बलात्कार के दर्ज मामलों में एक और मामला झूठा हो जाता | उल्लेखनीय है कि  नेशनल क्राइम  रिकॉर्ड ब्यूरो [ एनसीआरबी ] के मुताबिक देश में संगीन व महिला उत्पीडन सम्बन्धी अपराध में सबसे ज्यादा झूठे मामले राजस्थान में ही दर्ज होते हैं | वर्ष २०१४ में प्रदेश के ८६१ थानों में २१०४९८ हत्या , हत्या के प्रयास , डकैती ,लूट , दुष्कर्म , चोरी व नकबजनी सहित अन्य मामलों के प्रकरण दर्ज हुए थे , जिनमे से ४६७९४ मुकद्दमे पुलिस की जांच में झूठे पाए गए |  इन दर्ज मुकदमों में से प्रदेश में बाईस प्रतिशत से अधिक प्रकरण झूठे दर्ज  हुए हैं |
   राजस्थान में औसतन प्रतिदिन पांच हत्याएं और दस दुष्कर्म के मामले दर्ज होते हैं | राजस्थान का इसमे देश में दूसरा नंबर है | गत वर्ष राजस्थान में दुष्कर्म की ३७५९ घटनाएँ हुई थी | प्रथम स्थान पर मध्य प्रदेश रहा | राजस्थान पुलिस द्वारा बलात्कार के बढ़ते मामलों को देखते हुए एक आंतरिक अध्ययन करवाया गया था , जिसमे वर्ष २०१४ में नवम्बर माह तक ४५ प्रतिशत बलात्कार के दर्ज मामले झूठे पाए गए थे |
       हालाँकि एस एस पी द्वारा कल्याण चौकी के इन्चार्ज को कोताही बरतने के आरोप में ससपेंड भी कर दिया गया है ,  राजस्थान मानवाधिकार आयोग द्वारा सीकर बालिका दुष्कर्म की जांच के आदेश भी दे दिए गए हैं , परन्तु इस काण्ड को लेकर नागरिकों द्वारा सीकर , पिलानी , झुंझुनू आदि शहरों में किये गए प्रदर्शनों एवं व्यक्त आक्रोश को क्या उपरोक्त कदम शांत करने में काफी हैं ? जब पुलिस को रात्रि में अढाई बजे महिला ने सूचना दे दी थी , तो क्यों नहीं पुलिस अधिकारीयों ने अपने आला अफसरों को तुरंत सूचित किया ? एसएसपी स्वयं  बारह बजे अस्पताल पहुंचते हैं, जबकि महिला कल्याण चौकी तथा सदर थाने  में सुबह छः बजे तक कई बार गुहार लगा चुकी थी | क्या एसएसपी की प्रशासनिक व्यवस्था इतनी लचर है कि नीचे वाले अधिकारी उन्हें इतने बड़े प्रकरण की  सूचना तक देना उपयुक्त नहीं समझते ? या स्वयं एसएसपी द्वारा ही कोई ऐसा वातावरण तैयार कर दिया गया है कि उनके मातहत उन्हें सूचना देने का साहस ही नहीं कर पा  रहे हैं ? कारण कुछ भी हो पुलिस की जानबूझ कर की गयी लापरवाही ने एक मासूम की जिंदगी व इज्जत को सरे आम दांव  पर लगा दिया | अगर सीसीटीवी की फुटेज को सही माना जाये तो पुलिस की त्वरित कारवाई बच्ची को बचा सकती थी | और अपराधी मौके पर ही पकड़ा जा सकता था , क्योंकि  पुलिस द्वारा जारी की गई फुटेज के  अनुसार आरोपित व्यक्ति रात्रि एक बजकर बारह मिनट पर लड़की को ले जाते हुए दिख रहा है तथा सुबह पांच बजकर इक्यावन मिनट पर वापिस आता हुआ नजर आ रहा है और पीडिता को कूड़े के ढेर पर छोड़ देता है | इसी स्थल पर पीडिता सुबह बरामद हुई थी |अगर महिला की मनुहार को मानकर पुलिस महिला द्वारा रात्रि के अढाई बजे  दी गयी सूचना के समय ही हरकत में आ जाती तो बलात्कारी को मौके पर ही पकड़ा जा सकता था |
 मुद्दा सवाल उठाता है कि क्या बालिका को जिंदगी मौत से जूझते  छोड़ अपनी नींद पूरी करने वाले पुलिस कर्मियों व  अधिकारीयों को अपने किये की  सजा मिल पायेगी ? क्या  वे भविष्य में  संवेदन शील  होने  बारे कुछ सोच पाएंगे ? या आगे भी खाकी वर्दी यों ही दागदार होती रहेगी | कहीं ऐसा न हो कि राजस्थान पुलिस दाग अच्छे हैं का नीति वाक्य ही ना अपना ले |   

   
समसामयिक लेख
चुरू ,राजस्थान से                 जग मोहन ठाकन
वोटर कार्ड हाथ में सूची में नाम नदारद
हाल में संपन्न विधान सभा चुनावों में काफी लोग वोटर कार्ड होते हुए भी मतदाता सूची में नाम कटा होने की वजह से मतदान नहीं कर पाए ! अब भारतीय लोकतंत्र के पंचवर्षीय कुम्भ का शुरुआती दौर प्राम्भ हो चुका है ! विभिन्न पार्टियों ने अपने उमीदवारों की सूचियाँ बनाने का कार्य शुरू कर दिया है ! चुनाव आयोग ने भी मतदाता सूचियों का प्रथम जनवरी २०१४ को आधार मानकर प्रकाशन आरम्भ कर दिया है !राजस्थान चुनाव विभाग ने भी १० फरवरी २०१४ को मतदाता सूचियाँ अपनी वेबसाइट पर डाल दी हैं ! पिछले वर्ष हुए विधान सभा चुनाव  को हालाँकि मात्र दो माह ही हुए हैं , परन्तु इसी दो माह के अन्तराल के बाद विभाग द्वारा जारी सूचना के मुताबिक इस संक्षिप्त पुनरीक्षण कार्यक्रम के दौरान राज्य में १८ लाख से अधिक नए मतदाताओं के नाम मतदाता सुची में जोड़े गए हैं ! अब राज्य में कुल ४ करोड़ २५ लाख ४२ हजार मतदाता हो गए हैं  , जिनमे २ करोड़ २४ लाख ५ हजार पुरुष तथा २ करोड़ १ लाख ३७ हजार महिला मतदाता शामिल हैं ! राज्य के जयपुर जिले में सर्वाधिक २ लाख ७७ हजार नए मतदाताओं के नाम जोड़े गए हैं ! सबसे कम १० हजार मतदाता प्रतापगढ़  जिले में  नए बने हैं !
       अब प्रश्न यह उठता है कि नए मतदाता के रूप में जुड़ने वालों में एकदम १८ लाख की वृद्धि कैसे हुई है ? क्या प्रदेश में १ जनवरी २०१४ को १८ वर्ष की आयु हासिल करने वालों की तादाद में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है ? या किसी दुसरे प्रान्त से माइग्रेशन हुआ है ? अकेले जयपुर जिले में २ लाख ७७ हजार नए मतदाताओं का नाम जुड़ना क्या संकेत करता है ? जैसा कि राजनितिक पार्टियाँ एक दूसरे पर फर्जी मत बनवाने का आरोप लगाती रहीं हैं  ,क्या इस तथ्य में भी कुछ दम है ? या पिछले चुनाव में सरकार द्वारा चलाये गए मतदाता जागरूकता अभियानों का यह नतीजा है , जिसके कारण मतदान प्रतिशत में भी  काफी वृद्धि  हुई थी ! और हो सकता है कि उसी जागरूकता अभियान का ही असर हो कि लोगों ने अधिक से अधिक मत बनवाने में रूचि ली हो !
        परन्तु एक पक्ष इससे हटकर भी ध्यान आकृष्ट करता है ! गत चुनाव में जगह जगह से समाचार प्राप्त हुए थे कि लोगों के पास फोटो मतदाता पहचानपत्र तो थे , परन्तु  मतदाता सूचियों से उनके नाम नदारद थे ! एक समाचार के अनुसार गत विधान सभा चुनाव में अकेले डेगाना विधान सभा क्षेत्र में लगभग दस हजार ऐसे मतदाता वोट डालने से वंचित रह गए थे , जिनके पास वोटर आईडी कार्ड तो था , परन्तु उनका नाम वोटर लिस्ट से काट दिया गया था ! यह मात्र उदहारण है , लगभग हर विधान सभा क्षेत्र में हजारों लोग वोटर पहचान पत्र हाथ में लिए दिनभर अधिकारियों के पास घूमते रहे ,परन्तु मतदाता सूची में नाम न होने के कारण मतदान से वंचित रह गए !
        चुनाव विभाग पर उपरोक्त उदाहरण सवालिया निशान लगाता है कि आखिर क्यों कट जाते हैं ऐसे मतदाताओं के नाम ? क्या नाम काटे जाने की प्रक्रिया में किसी व्यस्थित सिस्टम का अभाव है ? क्यों नहीं मतदाता पहचान पत्र होने के बावजूद मतदाता सूची से नाम हटाने वाले कर्मचारी व अधिकारियों की जवाबदेही तय करके उनके खिलाफ कारवाई की जाती ? मतदान करना व्यक्ति का अपना पक्ष या विचार अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार है , कैसे कोई  किसी के  मौलिक अधिकार का हनन कर सकता है ? ऐसी व्यस्था की जाये कि जब किसी का नाम मतदाता सूची से हटाया जाये तो बाकायदा उस व्यक्ति को उसके अंतिम ज्ञात निवास पर पंजीकृत नोटिस तथा बूथ लेवल अधिकारी द्वारा व्यक्तिगत तौर पर सूचित करना सुनिश्चित हो ! तथा मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया में किसी राजपत्रित अधिकारी का पुष्टि प्रमाण पत्र अवश्य लिया जाये ! मात्र इतना कहने से  कि बी एल ओ द्वारा घर घर जाकर किये गए सर्वे के आधार पर नाम काटे जाते हैं , पीड़ित मतदाताओं को संतुष्ट नहीं किया जा सकता ! आरोप लगाये जाते रहे हैं कि बी एल ओ केवल विद्यालय या पंचायत घर में बैठकर चंद चहेतों के कहने से वोट काटने या बनाने की प्रक्रिया को अंजाम देते हैं ! वास्तविकता तो यह है कि अधिकतर बी एल ओ न तो घर घर जाते हैं तथा न ही घर घर जाकर मतदाता पर्ची वितरण का काम करते हैं ! एक जानकारी के अनुसार गत विधान सभा चुनाव में राज्य में वोट डालने वाले करीब एक करोड़ से ज्यादा मतदाताओं  तक फोटोयुक्त पर्ची नहीं पहुँच पाई ! विभाग ने इतनी बड़ी कोताही पर दोषी बी एल ओ व चुनाव से जुड़े अन्य कर्मचारियों पर क्या कारवाई की ? सरकार व चुनाव विभाग को समय रहते चेतना होगा ,अन्यथा  लोकतंत्र के २०१४ के पंचवर्षीय कुम्भ में कहीं पुनः इसी समस्या का दोहराव न हो और लोकतंत्र के स्तम्भ मतदाता हाथ में वोटर कार्ड लिए मतदान करने के लिए इधर उधर भटकते रहें तथा पुनः उनका नाम मतदाता सूची से नदारद मिले !
     केवल चुनाव विभाग की वेबसाइट या दीवारों पर नारे लिखने से मतदान का अधिकार नहीं मिल पायेगा ! मतदाताओ को भी जागरूक होना पड़ेगा और उन्हें भी समय समय पर मतदाता सूचियों का अवलोकन कर सुनिश्चित करना होगा कि उनका नाम मतदाता सूची में विद्यमान है , अन्यथा दाग ढूंढते रह जाओगे की तर्ज पर मतदान के समय मतदाता सूची में अपना नाम ढूंढते ही रह जाओगे  !
  जग मोहन ठाकन




   जग मोहन ठाकन , चुरू ,राजस्थान . मोब ==०७६६५२६१९६३ .
      ( हिसार ,हरियाणा से लौटकर  )
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राजनेताओं के घालमेल की परिणति है संत रामपाल प्रकरण
 हिसार चंडीगढ़ मार्ग पर बरवाला के पास मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित बारह एकड़ का विशाल  आश्रम , जिसके चारों तरफ किलाबंदी किये हुए सैकड़ों हथियार बंद निजी सैनिक , तीन मंजिले बंगले के साथ ही बड़े बड़े हाल , अस्पताल , हथियार व अन्य जखीरों को सहेजे दो कमरे . पानी का विशाल टैंक , चौबीसों घंटे सीसीटीवी की नजर में चाकचौबंद सुरक्षा . ऐशोआराम की सारी सुविधाएँ . जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज दर्शाते चहुँ ओर लगे स्टीकर .
 दो सप्ताह का हाई फाई ड्रामा . चालीस हजार के करीब पुलिस बल की अनवरत परेड . पच्चीस हजार श्रद्धालुओं की अटकती सांसें . एक मामूली जे ई से एक सत्ताधीश , मठाधीश व स्वम्भू भगवान बने बाबा की अपने आप को कानून से ऊपर मानने के अहंकार से उपजी भूल .
   उपरोक्त शब्द चित्र है हरियाणा के हिसार जिले में बरवाला स्थित संत रामपाल के सतलोक आश्रम का . नवम्बर माह  के प्रथम सप्ताह  से तीसरे सप्ताह तक चली इस रस्साकसी में किसका कितना नुकसान हुआ यह तो जाँच के बाद ही चल पायेगा ,परन्तु कोर्ट के आदेश की अनुपालना न करने की संत की हठधर्मिता ने कम से कम छह श्रद्धालुओं की जान तो ले ही ली .
   ताजा घटित इस प्रकरण को समझने के लिए कुछ समय पूर्व भूत काल में जाना होगा . हरियांणा  सरकार में जे ई की नौकरी छोड़कर  संत बने तिरेसठ वर्षीय  रामपाल उस समय प्रकाश में आये जब २००६ में संत के करोंथा आश्रम पर आर्यसमाजियों के साथ विवाद में एक व्यक्ति की मौत हो गयी . उसी मौत का भूत राम पाल का पीछा नहीं छोड़ रहा है .उसी मामले में संत रामपाल के खिलाफ केस चल रहा है .रामपाल को कुछ समय जेल में रहने के बाद कोर्ट से जमानत मिल गयी थी .बाद में इस विवाद क्षेत्र को छोड़कर रामपाल ने बरवाला में डेरा जमा लिया था .संत के हजारों अनुयायिओं का जमावड़ा इसी आश्रम में लगने लगा . हरियाणा के अतिरिक्त, उतरप्रदेश , राजस्थान , मध्यप्रदेश , बिहार तथा नेपाल से भी भक्तजन यहाँ आकर सर्व दुःख हारी नाम ज्ञान लेने को आतुर हो गए . वर्तमान प्रकरण के समय भी लगभग पच्चीस हजार श्रद्धालु आश्रम में रुके हुए थे .
       वर्तमान विवाद तब हुआ जब उपरोक्त मामले में  कोर्ट द्वारा पेश होने की तिथि पर संत ने कोर्ट में जाने से इनकार कर दिया . कोर्ट द्वारा निर्धारित तिथि पर जब रामपाल नहीं पहुंचा तो कोर्ट की  अवमानना स्वरुप कोर्ट ने हरियाणा सरकार को येन केन प्रकरेण २१ नवम्बर से पहले पहले रामपाल को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने के  सख्त आदेश दिए . इसी आदेश की अनुपालना में पुलिस फ़ोर्स के लगभग चालीस हजार जवान एवं अधिकारी तैनात किये गए . परन्तु संत रामपाल के पास भी प्रशिक्षित सुरक्षा बल तैनात थी .पुलिस सूत्रों के अनुसार बाबा समर्थकों ने पुलिस पर पेट्रोल बम,  पत्थर व गोलियां चलाई . पुलिस द्वारा लाठी व आसू गैस का प्रयोग भी किया गया . इस प्रकरण में छह मौतें हुई तथा १०५   पुलिस कर्मियों समेत लगभग तीन सौ व्यक्ति  घायल हुए .परन्तु अंततः १९ नवम्बर की रात पुलिस बाबा को गिरफ्तार करने में कामयाब हो गयी .
    बाबा गिरफ्तार भी कर लिए गए , कोर्ट में पेश भी कर दिया गया , परन्तु इतने बड़े हाई फाई ड्रामा व एक मामूली संत की कानून को चुनौती के लिए आखिर कौन जिम्मेवार है ? इतने बड़े स्तर पर हथियारों के जखीरे , निजी सुरक्षा कर्मियों की पूरी फ़ौज व आश्रम में अन्य घोर अनियमितताओं की क्यों राज्य सरकार , सी आई डी या अन्य गुप्तचर एजेंसीयों को भनक तक नहीं लगी ?  क्यों एक और भिंडर वाला पनपने दिया गया ? यदि जानकारी थी तो किसके इशारे पर समय रहते  कारवाई नहीं की गयी ?क्यों सरकार करोंथा में हुई  एक मौत के बदले बरवाला में छह मौतों की इन्तजार करती रही ? क्यों मीडिया कर्मियों को पीट पीटकर सच्चाई को जनता के सामने आने से रोका गया ?
     उपरोक्त प्रश्नों को सरकार भले ही अनुत्तरित छोड़ दे , परन्तु जनता इन सवालों के जवाब जरूर तलास लेती है . यह पब्लिक है , सब जानती है .
    जब सत्ता लोलुप राजनेता येन केन प्रकरेण मात्र कुर्सी प्राप्ति ही उद्देश्य रखकर इन ढोंगी बाबाओं के दरबार में  हाथ जोड़े दंडवत चरण स्पर्श करते रहेंगे तो कैसे ऐसे संतों की गैर कानूनी गतिविधियों पर अंकुश लग पायेगा ? हरियाणा के हाल के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के चालीस प्रत्याशियों द्वारा सिरसा के एक डेरा संत से आशीर्वाद लेकर चुनाव जीतने की मंशा पालना क्या राजनेताओं का संतों संग  घाल मेल का खेल नहीं है ? क्या ऐसे नेता इन संतों की अवैध एवं गैर कानूनी गतिविधियों के खिलाफ मुंह खोल पाएंगे ? जो पार्टियाँ इन संतों के आशीर्वाद स्वरुप ही सत्ता सुख भोग रहीं हैं , क्या वे सरकारी मशीनरी को इनके खिलाफ कुछ करने देंगी ? कदापि नहीं . कोई एक पार्टी किसी संत के चरण छूती है तो दूसरी किसी अन्य संत से वोट का प्रसाद लेने हेतु दंडवत होती है . समाचार सुर्ख़ियों में इसी संत रामपाल के सतलोक आश्रम की ट्रस्टी के रूप में एक भूत पूर्व मुख्यमंत्री  की पत्नी का नाम आया है . जब तक इस प्रकार के इन ढोंगी संतों को राजनेताओं का आश्रय मिलता रहेगा , ये बरवाला प्रकरण घटित होते रहेंगें . राजनेताओं की घाल मेल की ही परिणति  है बरवाला प्रकरण .आखिर माननीय कोर्ट अकेले कब तक प्रशासन चलाते  रहेंगे ? कुछ तो सरकारों को भी अपनी पहल से कार्रवाई करनी ही होगी .क्या सरकारें ऐसा कर पाएंगी ?(जग मोहन ठाकन )
  

    
व्यंग्य लेख [ प्रथम अक्टूबर वृद्ध दिवस पर विशेष ]
   
 वरिष्ठ जाड़ का दर्द
 जग मोहन ठाकन
पिछले कुछ दिनों से ‘‘वरिष्ठ जाड़ ’’ की सन्सटीविटी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी । ठण्डा खाओ तो दर्द,गर्म खाओ तो दर्द । इतनी भारी भरकम गर्मी में शरीर कहता है कि कुछ ठण्डा पिया जाये वर्ना डिहाइडरेसन का खतरा बढ़ जाता है । जीभ कहती है कि कुछ कूल-कूल हो जाये । पर निगौड़ी ‘‘वरिष्ठ जाड़ ‘‘ है कि ठण्डे के नाम पर ही बिदकती है । आस-पास वाली सहयोगी जाड़ें भी चाहती हैं कि कोई ठण्डा मीठा रसगुल्ला सा चबा लिया जाये । पर क्या करें वरिष्ठ जाड़ के अड़ियल रवैये के कारण सब परेशान हैं, मगर वरिष्ठता के आगे सभी नमन करते हैं। कोई पहल नहीं करना चाहता । आखिर कुछ भी ना खा पाने के कारण शरीर की हालत पतली होती जा रही थी । जीभ की अध्यक्षता में सभी दांतों व जाड़ों की मिटिंग बुलाई गई । चर्चा छिड़ी कि यदि कुछ भी ना खाया पिया गया तो शरीर समाप्त हो जायेगा और जब शरीर ही नहीं रहेगा तो हम कहां रहेंगें। हमारा अस्तित्व तो शरीर से ही जुड़ा है । जिस दिन शरीर समाप्त , उसी दिन लोग तो राम नाम सत्य बोलकर शरीर को अग्नि की भेंट चढ़ा देंगें और साथ ही हो जायेगा हमारा भी होलिका दहन ।
आखिर शरीर को बचाना जरूरी था, इसलिए फैसला लिया गया कि दर्द वाली वरिष्ठ जाड़ को निकलवा दिया जाये । शरीर ने डाक्टर से सलाह ली । डॉक्टर ने आश्वस्त किया कि शरीर हित में वरिष्ठ जाड़ निकलवाना ही श्रेयष्कर है। इस पर सहयोगी जाड़ों ने शंका जाहिर की कि वरिष्ठ जाड़ को निकालने पर शरीर को तो दर्द होगा ही , खून भी बह सकता है । और फिर जो खाली जगह बन जायेगी वो भी भद्दी लगेगी । वरिष्ठ जाड़ का खालीपन भी अखरेगा । डॉक्टर ने सहयोगी जाड़ों की चिंता भांपकर तुरन्त कहा -तुम निश्चिंत रहो । मैं ऐसी मसालेदार जाड़ सैट कर दूंगा कि किसी को भी फर्क पता तक नहीं चलेगा । भोजन को ऐसे कुतरेगी कि बाकी सहयोगी जाड़ें भी तरसने लगेंगी । जहां तक खून बहने की बात है वो भी निराधार है। इतनी पुरानी व अन्दर से  खोखली हो चुकी जाड़ को निकालने में ना कोई खून बहता है ना कोई दर्द होता है । बस दो दिन की दिक्कत है। फिर से शरीर को पुष्ट भोजन मिलने लगेगा और जीभ को नव-स्वाद । दो दिन बाद सब सामान्य हो जायेगा । सभी जाड़- दांतों व जीभ ने शरीर हित में निर्णय ले लिया । ‘‘ वरिष्ठ जाड़ डाक्टर के कचरादान में पड़ी सोच रही थी कहां चूक हो गई । नवीनतम घटनाक्रम के अनुसार चिकित्सक के सहायक ने वरिष्ठ जाड़ की वरिष्ठता पर तरस खाते हुए जाड़ को कचरे से उठाकर डॉक्टर के टेबल के पास लगी श्योकेस में एक जार में रख दिया है । अब वरिष्ठ जाड़ खुश  है कि अब वो भी समय आने पर अन्य खोखली जाड़ों को निकलते देख सकेगी ।


  जग मोहन ठाकन , चुरू , राजस्थान . मोब . ०७६६५२६१९६३
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   है प्रिये क्यों आधार सखी ? ( आधार कार्ड पर लेख )
   केंद्र की  कांग्रेस सरकार द्वारा लागू की जा रही योजनाओं  को ढोल पीट पीट कर जन विरोधी बताने वाली भाजपा भी अपनी पुरानी चाल को भूलकर सरकार में आते ही आधार कार्ड योजना को पुनः संचालित  करने पर उतारू हो गयी है .कांग्रेसी सरकार की तर्ज पर ही वर्तमान केंद्रीय भाजपा सरकार भी आधार कार्ड को ही सभी योजनाओं का आधार बनाना चाहती है .हजारों करोड़ खर्च वाली इस योजना को जनता अभी हाल में हुए चुनावों में सिरे से नकार चुकी है .

   किसी भी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल उसकी जन मानस पर लागू की जा रही या न लागू की जा रही योजनाओं से ही बनता है .कांग्रेस सरकार द्वारा बार बार थोपी जा रही आधार कार्ड योजना से जनता तंग आ चुकी थी .चाहे गैस लेनी हो , बैंक में खाता खोलना हो या अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ लेना हो , सरकार ने आधार कार्ड को मूल दस्तावेज बनाकर सभी योजनाओं से लिंक करवाना एक लक्ष्य बना लिया था . आम गरीब किसान व मजदूर अपना पूरे दिन का काम छोड़कर आधार कार्ड के चक्कर में ही इधर से उधर घूमने में ही अपना कीमती समय जाया कर देता था .अगर आधार कार्ड का फोटो खिंच भी गया तो महीनों तक सम्बंधित व्यक्ति को आधार कार्ड  नहीं मिलता था .समाचारों में ऐसी खबरों की भी भरमार रहती थी कि हजारों आधार कार्ड कूड़ा स्थल पर मिले .
  जिस आधार कार्ड को पूर्ण  विश्वनीयता एवं एक मात्र आधार दस्तावेज दर्शाया जा रहा था , उसकी विश्वनीयता की पोल तो बजरंग बलि हनुमान श्री के आधार कार्ड ने ही खोल दी .अगर सरकार पहले से ही चलन में पहचान दस्तावेजों यथा - वोटर कार्ड ,आई डी कार्ड , पैन कार्ड , राशन कार्ड , ड्राइविंग लाइसेंस आदि को आधार मानने में शंका कर रही है तो इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर बनने वाले आधार कार्ड को कैसे खरा सिक्का मान रही है ? क्यों नहीं वोटर कार्ड को ही मूल पहचान दस्तावेज मान लिया जाये . इससे एक तो हर वोट योग्य व्यक्ति अपना वोट अवश्य बनवा लेगा , जिससे लोक तंत्र का आधार मजबूत होगा , दूसरा आधार कार्ड जैसी नई  निराधार योजनाओं पर हजारों करोड़ रुपये बर्बाद नहीं होंगे .
       जब बैंकों में सी बी एस प्रणाली लागु की गयी तो खाता धारकों के पुराने खातों  को चौदह या सोलह अंकों का स्वरुप देकर तथा आई एफ एस सी कोड का प्रयोग करके एक राष्ट्रीय पहचान दे दी गयी . जिसमें न हींग लगी, न फिटकरी और रंग भी चोखा आया .  खाताधारक को किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं हुई और किसी भी बैंक से किसी भी अन्य शाखा या बैंक में राशि का अंतरण संभव व सुलभ हो गया .ए टी एम की सुविधा मिली वो अलग से .इसी प्रकार वोटर कार्ड की संख्या को भी राष्ट्रीय स्तर पर एक विशिष्ठ कोड ( इसमें पिन कोड का प्रयोग भी किया जा सकता है ) देकर सर्व स्थल पर मान्य दस्तावेज बनाया जा सकता है .इससे वर्तमान केंद्रीय  भाजपा सरकार का डिजिटल इंडिया का सपना व लक्ष्य दोनों  ही पूरे भी  हो जायेंगे . परिवार में अठारह वर्ष से कम आयु के सदस्यों को परिवार के मुखिया की वोटर कार्ड की विशिष्ठ संख्या से लिंक किया जा सकता है .
     कानूनी धरातल पर भी आधार कार्ड योजना अपना आधार सिद्ध नहीं कर पाई . सुप्रीम कोर्ट तक ने आधार कार्ड  की बाध्यता को सिरे से नकार दिया .परन्तु न जाने क्यों ----
  कोई हो सरकार सखी ,

है प्रिये, क्यों आधार सखी ? .
     राजस्थान से जग मोहन ठाकन
 सिंघवी खान घोटाला
    राजस्थान रिसर्जेंट पर पड़ सकती है ग्रहण की छाया
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अभी ललित मोदी काण्ड की स्याही  ठीक से धुल ही नहीं पायी थी  कि राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एक बार पुनः एक खान घोटाले की लपेट में आ गयी हैं | जहाँ वसुंधरा राजे अपनी ललित मोदी मामले से धूमिल हुई छवि को साफ़ करने के लिए अपने एक अति उत्साही निवेश   प्रोग्राम राजस्थान रिसर्जेंट  को लेकर दिन रात एक किये हुए थी कि अचानक सिंघवी खान घोटाले के बादल बरस पड़े , जिसने इस बहु प्रचारित कार्यक्रम को संदेह के घेरे में ले लिया है | उन्नीस एवं बीस नवम्बर , २०१५ को होने वाले राजस्थान रिसर्जेंट समिट के माध्यम से दुनियां भर के निवेशकों के  जयपुर में होने वाले  सम्मलेन से वसुंधरा ने लगभग तीन लाख करोड़ का निवेश पाने का लक्ष्य रखा था | परन्तु  अब विश्लेषकों को लगता  है कि  गत माह के  सिंघवी खान घोटाले ने इस पर ग्रहण की कालिमा फेर दी है | हालाँकि वसुंधरा राजे ने अभी भी अपनी अति उत्साही योजना को सफल बनाने में कोई हार नहीं मानी है और लगातार प्रयत्न जारी हैं | अभी १६ अक्टूबर को राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री राजे , केंद्रीय खनन एवं इस्पात मंत्री नरेंदर सिंह तोमर तथा केन्द्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री पीयुष गोयल की  हाजिरी में  विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों तथा निजी कंपनियों के साथ प्रदेश में खनन एवं ऊर्जा क्षेत्र में पचास हज़ार करोड़ से अधिक के तेरह एम ओ यू  हस्ताक्षरित किये हैं | इससे पूर्व तेरह अक्टूबर को भी केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकेटा नायडू की  उपस्तिथि में बारह हज़ार करोड़ के एम् ओ यू साइन किये थे | बार बार केंद्रीय नेताओं की उपस्तिथि स्पष्ट दर्शाती है कि राजे अपनी छवि सुधारने को  कितनी आतुर है | परन्तु सिंघवी खान घोटाले की छाया के कारण सरकार को दस बड़ी कंपनियों के साथ खनन क्षेत्र में करार करने से हाथ खींचना पड़ा है ,ताकि खान घोटाले के ग्रहण से राजस्थान रिसर्जेंट समिट  को कुछ हद तक बचाया जा सके | नतीजन सरकार को दस हज़ार करोड़  रुपये कम के एम ओ यू साइन करने पड़े | उल्लेखनीय है कि श्री सीमेंट , इमामी सीमेंट , वंडर सीमेंट तथा लाफार्ज सीमेंट कंपनियों को दिसम्बर ,२०१४ में खान आबंटित की गयी थी , जिसके कारण ये कंपनिया  शक के  दायरे में आ गयी हैं | इनके इलावा छः अन्य कंपनियों के साथ भी एम ओ यू नहीं हो पाया जिनकी केंद्र सरकार से अभी अनुमति नहीं आ पाई है | इसलिए इस मुद्दे के जानकार लोगों का मानना है कि सिंघवी खान घोटाले का असर राजस्थान रिसर्जेंट की सफलता पर अवश्य ही पड़ेगा |
 क्या  है  सिंघवी खान घोटाला ?
सोने के अंडे देने वाली खान आबंटन प्रणाली पर राज्य की भ्रष्टाचार विरोधी विभाग की टीम की अंदरखाने चल रही निगरानी का ही नतीजा था कि लगभग बीस करोड़ की रिश्वतखोरी का भंडाफोड़ हो पाया |विभाग को १६ सितम्बर को खनन विभाग के अतिरिक्त निदेशक पंकज गहलोत की कॉल रिकॉर्डिंग के जरिए इस महा रिश्वत काण्ड का सुराख़ लगा , जिसके  सहारे खान घोटाले के कथित  मगरमच्छ खान विभाग के प्रमुख सचिव आई ए एस  अशोक सिंघवी पकड़ में आ पाए |  प्राप्त जानकारी के अनुसार कॉल रिकॉर्डिंग के आधार पर सबसे  पहले  कथित बीस करोड़ की रिश्वत की प्रथम किश्त के   अढाई  करोड़  की राशी   लेते  हुए पंकज गहलोत को हिरासत में लिया गया | गहलोत की हिरासत के बाद एंटी करप्शन ब्यूरो के डायरेक्टर जनरल नवदीप सिंह तथा आई जी पुलिस दिनेश एम एन ने मुख्यमंत्री को गोपनीय जानकारी  देकर अशोक सिंघवी को गिरफ्तार करने की अनुमति लेकर हिरासत में ले लिया |
   आरोप है कि मात्र ७२  दिनों के भीतर ०१ नवम्बर ,२०१४ से लेकर १२ जनवरी , २०१५ के मध्य पहले आओ पहले पाओ के आधार पर  केंद्र  सरकार के निर्देशों के विपरीत खान विभाग के प्रमुख सचिव  अशोक सिंघवी के कार्यकाल में एक लाख बीघा की बहुमूल्य  ६५३ खान निजी व्यक्तियों व कंपनियों को बन्दर बाँट कर दी गयी | हालाँकि  राजे सरकार ने विपक्ष के हो हल्ले के बाद १७ अक्टूबर को पहले आओ पहले पाओ के आधार पर आबंटित ६०१ खनन पट्टों को निरस्त कर दिया है तथा राज्यपाल से सिफारिश करके लोकायुक्त से जाँच के आदेश  भी करवा लिए हैं |
परन्तु प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस इस से संतुष्ट नहीं है और वह सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर से मिलकर सी बी आई की जाँच की मांग कर चुकी है |
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलेट का कहना है कि  सरकार द्वारा ६०१ खानों के आबंटन को रद्द करना स्पष्ट दर्शाता है कि खानों का आबंटन गलत था | उन्होंने आरोप लगाया है कि वसुंधरा सरकार ने  इस आबंटन के जरिये केंद्र  
के निर्देशों के विरुद्ध अपने चहेतों को ६५३ खान  आबंटन करके प्रदेश को पेंतालिस हज़ार करोड़  रुपये की चपत लगाईं है | पायलेट ने इस पूरे  खान आबंटन प्रकरण की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सी बी आई जाँच की मांग की है और कहा है कि मुख्यमंत्री राजे को तुरंत नैतिक आधार पर त्यागपत्र दे देना चाहिये |
   उधर भारतीय जनता पार्टी के राज्य अध्यक्ष अशोक परनामी ने सरकार का बचाव करते हुए कहा है कि हमें नहीं पता कांग्रेस किन ६५३ खानों की बात कर रही है , हमने सभी ६०१  आबंटित खानो की लीज रद्द कर दी है तथा लोकायुक्त को जाँच सौंप दी है |उन्होंने कांग्रेस पर भी डबल स्टैण्डर्ड अपनाने का आरोप लगाया है | परनामी का कहना है कि कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी अपने मुख्यमंत्री काल में  जोधपुर स्टोन पार्क में अपने भाई भतीजों को एक एक हेक्टेयर की सैंड स्टोन खाने  बांटी थी , जो बाद में विधान सभा में विवाद उठाने के कारण रद्द करनी पड़ी थी | परनामी ने गहलोत पर  अशोक सिंघवी को बचाने  का आरोप भी लगाया है | उन्होंने कहा है कि हिंदुस्तान जिंक को गलत तरीके से खान आबंटन प्रकरण में राज्य के भ्रष्टाचार विरोधी विभाग ने वर्ष २०११ में  अशोक सिंघवी के खिलाफ जाँच की थी |जाँच में ए सी बी  ने इस मामले में सरकार को ६०० करोड़ रुपये के नुक्सान पहुँचाने के आरोप सिंघवी पर लगाए थे परन्तु गहलोत सरकार ने उस समय ए सी बी जांच को दबाकर इसे विभागीय जाँच के दायरे में रख दिया था |
                उठते सवाल ?
अशोक सिंघवी  पिछली राजे  सरकार में भी खान सचिव रहे हैं तथा इस कार्यकाल में भी भाजपा सरकार की वापसी के बाद फिर खान विभाग में  प्रमुख सचिव बना दिया गया | आखिर क्यों ? जब भाजपा के अध्यक्ष परनामी यह आरोप लगाते  हैं कि  भाजपा के इन दोनों कार्यकालों के बीच की अवधि में   वर्ष २०११ में कांग्रेस के कार्यकाल में सिंघवी ने सरकार को ६०० करोड़ का कथित  नुकसान पहुँचाया था तथा अशोक गहलोत ने ए सी बी की जाँच को विभागीय जाँच में तब्दील कर दिया था ,तो क्यों भाजपा सरकार संदिग्ध कार्यशैली के अधिकारी को महत्वपूर्ण पद पर बार बार  लगाती रही है ?आखिर किस का वृहद हस्त है सिंघवी के सर पर ? यदि भाजपा सरकार व उसकी मुख्य मंत्री व मंत्री बेक़सूर हैं तो क्यों सरकार कांग्रेस की सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में सी बी आई जाँच की मांग को स्वीकार नहीं कर लेती ? क्यों नहीं भाजपा सरकार  अपने दोनों कार्यकालों तथा बीच के कांग्रेस सरकार  के कार्यकाल के दौरान हुई सभी खान आबंटन की अनियमितताओं की सी बी आई से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच कराकर कांग्रेस को भी कटघरे में खड़ा कर देती ?  क्यों नहीं होने देती दूध का दूध ,पानी का पानी ?

संपर्क -७६६५२६१९६३


राजस्थान
चुरू , राजस्थान से जग मोहन ठाकन
 महिला मुख्यमंत्री के राज में ,
                    बस चलती रही रेप होता रहा
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देश के बहुचर्चित निर्भया बलात्कार काण्ड को अभी तक लोग भूल भी नहीं पाए थे कि राजस्थान राज्य के झुंझुनू जिले में पिलानी गैंग रेप की घटना ने महिला सुरक्षा पर फिर सवालिया निशान  लगा दिया है . पिलानी से लोहारू जा रही एक प्राइवेट यात्री बस में अकेली महिला सवारी को झूठ बोलकर बैठाने वाले बस स्टाफ ने चलती बस में विवश महिला के साथ बलात्कार कर राज्य में महिला सुरक्षा के दावों की पोल खोल कर रख दी है . पुलिस द्वारा बताई गयी  घटना विवरण के अनुसार हरियाणा राज्य के जिला भिवानी के बाढ़ड़ा थाने के तहत गाँव कारी तोखा की रहने वाली एक छतीस वर्षीया विधवा बुधवार गुरुवार ( २९ जनवरी २०१५ ) की मध्यरात्रि को जयपुर से बस द्वारा  चलकर सुबह झुंझुनू पहुंची . वहां से पिलानी जाने वाली बस द्वारा वह अन्य सवारियों के साथ पिलानी पहुँच कर बस से उतर ली . झुंझुनू एस पी सुरेंदर गुप्ता के मुताबिक बाद में बस नंबर आर जे १८ पी बी ०८८८ के  स्टाफ के कहने पर वह महिला लोहारू जाने के लिए बस में  सवार हो गयी . बस लोहारू , हरियाणा की तरफ दौड़ पड़ी , परन्तु बस में अन्य कोई सवारी नहीं होने का फायदा उठाकर परिचालक एवं खलासी  ने चलती बस में बारी बारी एक मात्र  महिला यात्री से बलात्कार किया .
 महिला सहायता के लिए  चिल्लाती  रही , बस निर्बाध दौड़ती रही , चालक बस चलाता रहा और अपने साथियों द्वारा किये जा रहे गैंग रेप का आनंद ले ठहाके मारता रहा . मानवता एक बार फिर दानवता का नंगा नाच करती रही . बलात्कार के बाद महिला को पिलानी लोहारू के बीच डुलानियाँ गाँव के पास उतार कर बस लोहारु की तरफ रवाना हो गयी .  पीड़ित महिला  दूसरी बस से लोहारू पहुंची तथा लोहारु थाणे में अपनी आप बीती पुलिस को बताई . लोहारु पुलिस से सूचना पाकर पिलानी  पुलिस पीड़ित महिला को पिलानी लेकर आई तथा महिला से पूछ ताछ कर पीडिता की रिपोर्ट पर मामला दर्ज कर लिया गया  .
 पिलानी थानाध्यक्ष डिप्टी एस पी भीष्म राज आर्य के अनुसार गुरुवार ( २९ जनवरी ,२०१५ ) को बस ड्राईवर , परिचालक तथा खलासी को गिरफ्तार कर लिया गया   . शनिवार को न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पीडिता के ब्यान दर्ज करवाए गए तथा इसके बाद आरोपियों की शिनाख्ती परेड भी कराई गई .
पुलिस के मुताबिक़ महिला की मेडिकल रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि भी हो गयी है .
     पुलिस ने आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार भी कर लिया है , मामला  न्यायिक प्रक्रिया पर भी चल पड़ा है , परन्तु सुशासन व राम राज्य  का नारा देकर सत्ता में आने वाली एक महिला मुख्य मंत्री के राज में अगर कोई  महिला दिन में भी सुरक्षित नहीं है तो क्या महिलायें  घर से  बाहर  निकलना बंद कर दें ? क्या बराबरी का दर्जा पाने को प्रयासरत महिलाएं केवल चूल्हा चौके तक ही अपने को सीमित कर लें ?
    राजस्थान सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग की वेबसाइट पर  अगर नजर डालें तो साफ़ हो जाता है कि राज्य सरकार महिला सुरक्षा को लेकर कितनी चिंतित है . राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष २००९-२०१० में महिला सशक्तिकरण हेतु मुख्यमंत्री के सात सूत्री कार्यक्रम की शुरुवात की गयी थी ,जिसमे  महिलाओं को सुरक्षित एवं भय मुक्त वातावरण प्रदान करने  की जिम्मेदारी राज्य के महिला एवं बाल विकास विभाग  तथा गृह विभाग   को सौंपी गयी थी .इस प्रयोजन हेतु राज्य में चालीस पुलिस जिलों में महिला थानों या चयनित थानों के साथ महिला सुरक्षा एवं सलाह केंद्र सञ्चालन के लिए चयनित गैर शासकीय सदस्यों को अधिकृत किया गया है .वर्ष २०१४ -२०१५ की बजट घोषणा के मुताबिक महिला सुरक्षा केन्द्रों को  "ए " एवं "बी " श्रेणियों में बांटा गया है .प्रतिमाह बीस व उससे अधिक परिवाद प्राप्त होने वाले जिलों में सत्रह केंद्र तथा बीस से कम परिवाद वाले जिलों में तेईस केंद्र गठित किये जाने थे . परन्तु बारह केंद्र या तो बंद हो चुके हैं या अभी चयन प्रक्रिया को ही पूरा नहीं कर पाए हैं .  वर्तमान गैंग रेप का भुक्तभोगी जिला झुंझुनू भी वेबसाइट के मुताबिक महिला सुरक्षा एवं सलाह केंद्र का गठन नहीं कर पाया है . इन चालीस केन्द्रों के वर्ष भर तक सञ्चालन हेतु मात्र एक करोड़ पैंतीस लाख रुपये का बजट निर्धारित किया गया है . क्या ऊंट के मुंह में जीरे के समान चारा डाल देनें  से महिला सुरक्षा पुख्ता हो पायेगी ?. या यों ही महिलाओं को निर्भय गैंग रेपों से दो चार होते रहना होगा ? सवाल जवाब मांगता है.
  क्या आप पार्टी के संयोजक एवं दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा लगाये गए आरोपों को सत्तासीन भाजपा चुनौती मान कर महिला सुरक्षा की ओर कोई ठोस कदम उठायेगी ?
उल्लेखनीय है की अभी हाल के दिल्ली विधान सभा चुनावी दंगल   में केजरीवाल ने आरोप लगाया  है कि भाजपा के केंद्र में सत्तासीन  होने के सात माह के समय में प्रधान मंत्री नरेंदर मोदी के कार्यकाल में दुष्कर्म के मामले तीस प्रतिशत बढे हैं . उन्होंने आंकड़े देकर बताया कि वर्ष २०१३ में रेप की १५७१ घटनाएँ हुई थी , जबकि २०१४ में सात माह में ही २०६९ घटनाएँ हो चुकी हैं .
क्या कहती है पीड़ित महिला
मै रात्रि दो बजकर पंद्रह मिनट पर जयपुर से बस से रवाना होकर झुंझुनू आई तथा वहां से बस बदलकर बस नंबर आर जे १८ पी बी ०८८८ में बैठकर अपने गाँव कारी तोखा जा रही थी तो पिलानी से आगे रास्ते  में बस के स्टाफ में से दो व्यक्तियों ने मेरे साथ जबरदस्ती बलात्कार किया और डुलानिया , थाना  पिलानी के पास बस से उतार दिया |
क्या कहती है पुलिस
  पीडिता की रिपोर्ट पर मुक़दमा नंबर ३३/१५ धारा ३७६ डी भारतीय दण्ड संहिंता में दर्ज कर लिया गया है .तफतीस थानाधिकारी पिलानी भीष्म राज आर्य को सौंप दी गयी है .बस स्टाफ के तीन आरोपियों को हिरासत में ले  कर कोर्ट में पेश  कर दिया गया है . रिपोर्ट में उल्लेखित  बस जब्त कर ली गयी है . कानूनी प्रक्रिया जारी है .
 सुरेंदर गुप्ता , एस पी झुंझुनू .



 संलग्न सामाजिक  सशक्तिकरण बारे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की फोटो