Thursday 22 June 2017

http://dastaktimes.org/archives/166138

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हैलो माइक टेस्टिंग -व्यंग्य -जग मोहन ठाकन

व्यंग्य
जग मोहन ठाकन
हैलो माईक टेस्टिंग , हैलो , हैलो
अभी २१ जून को सुबह सुबह हर रोज की तरह निकट के पार्क में घुसा तो देखा कई नए नए लोग बाकायदा सुंदर सुंदर परिधान पहने पहले से ही पार्क की  ठीक कोमल घास वाली जगह पर आसन जमाये पार्क की सुबह की ताज़ी ओक्सिज़न युक्त प्राणवायु को चूसने की प्रतियोगिता में लीन हैं . अधिकतर युवक युवती आधुनिक परिधान छोटी टी कट व इत्ती ही न्यूनतम संभव लोअर के आवरण में भारत की प्राचीन परम्परा का निर्वहन करते योगी बनने का अभ्यास कर रहे हैं . पता चला आज  लोगों को योग के प्रति जागरूक किया जा रहा है . तभी चौबे जी मिल गए , आते ही बिफर पड़े – सब ढकोसला है ,  जब भी कोई समस्या देश के संचालकों के सामने फन उठाती है ये पब्लिक को दिग्भ्रमित करने के लिए कोई ना कोई मदारी वाली नई डुग डुगी बजाने लगते हैं . बाजीगरों व सपेरों के खेल में अपनी विपदा भूलने वाली देश की भोली- भाली  जनता ताली बजा कर  खुश हो जाती है और ये सपेरे अपने बोरों में काले सांप पालने में कामयाब हो जाते हैं ताकि जरुरत पड़ने पर फिर इन्ही सांपों के सहारे जनता को बहकाया जा सके . कभी ये सफ़ेद पोश  लोग अपने हाथों में इत्तर छिटकी झाड़ू लेकर  सेल्फी खींचकर मीडिया में छा जाते हैं , तो कभी लोगों को बैंकों की लाइनों में लगने को विवश कर बैंक वालों से हाथ दो चार करवा कर खुद पाक साफ़ बन जाते हैं .  ये इन लोगों का जनता की नब्ज चेक करने का हैलो माइक  टेस्टिंग है. 
 पार्क में योगभक्त जन  के चूसने के कारण कम हो चुकी  ओक्सिज़न की वजह से चौबे जी के नथुने भी  साँसों की रफ़्तार को बढ़ते देख  फूलते जा रहे थे .
मैंने बीच में ही टोकना उचित समझा और कहा – चौबे जी चाहे कुछ भी कहो योग से बड़े बड़े पेट वालों का  वजन तो घटता है .  और यही वजन  ही सब रोगों की जड़ है .
चौबे जी मंद मंद मुस्काये , बोले –ठीक पकड़े है . आज की सत्ता के शिखर पर बैठे पुरोधा यही तो चाहते हैं , यही तो इनका एजेंडा है , कि वजन बढे तो केवल उनका , दूसरा कोई इनके समान वजन धारी ना हो जाए .  सुना है कि कुछ ‘शाह’ लोग ज्यादा ही वजनधारी  होने लगे थे , पर  समय रहते हमारे  पारखी ‘ग्रीन टी’  वाले की नजर पड़ गयी  और आज उनका लगभग बीस किलो वजन कम हो गया बताते हैं . वजन कम करने की तकनीक में तो ग्रीन टी का कोई सानी नहीं है . कल तक जिनकी ‘वाणी’ में अदम्य ‘जोश’ था , आज उनका इतना कम वजन हो गया है कि कोई उनका वजन तौलने तक राजी नहीं है . खैर समय समय की बात है . शिखर पर बैठने वाले वजनधारी तो होते ही हैं . परन्तु यह भी सत्य है कि जो   भारी भरकम ग्लेसिअर कल तक हिमालय की चोटी पर बैठकर अकड़ दिखाते थे, वे आज फिसल कर धरातल पर जगह ढूंढ रहे हैं और पत्थरों की ठोकरें उन्हें  चीर चीर कर पानी पानी कर रहीं हैं और वे गन्दला पानी हो चुके तथाकथित ग्लेसिअर गंदे नालों में ठहराव के लिए तरस रहे हैं .
मुझे तो लगता है चौबे जी की बात में वजन है . परन्तु यदि किसी  ग्रीन टी वाले की नजर पड़ गयी तो ---.
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Thursday 8 June 2017

http://dastaktimes.org/archives/162841-my vyangya lekh-varishth jaad

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व्यंग्य लेख वरिष्ठ जाड़ का दर्द जग मोहन ठाकन पिछले कुछ दिनों से ‘‘वरिष्ठ जाड़ ’’ की सन्सटीविटी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी । ठण्डा खाओ तो दर्द , गर्म खाओ तो दर्द । इतनी भारी भरकम गर्मी में शरीर कहता है कि कुछ ठण्डा पिया जाये वर्ना डिहाइडरेसन का खतरा बढ़ जाता है । जीभ कहती है कि कुछ कूल-कूल हो जाये । विवाह शादियों का मौसम है . मुश्किल से ऐसे हालात बने हैं कि लोग निमंत्रण देने लगे हैं . वैसे भी कहा जाता है कि ना जाने घोड़े और आदमी के कब दिन फिर जाएँ. कब राजभवन में पग फेरा हो जाए . जाड़ की किस्मत का भी यही हाल है . पता नहीं लगता कब नत्थू चाय वाले के पत्थर से सख्त लड्डू खाने पड़ जाएँ और कब राजभवन से दावत आ जाये . और हाल में तो एक बहुत बड़ी दावत मिलने के आसार भी दिख रहे हैं . अन्य जाड़ें किसी भी हालत में इस दावत से वंचित नहीं होना चाहती . सहयोगी जाड़ें चाहती हैं कि इस दावत में कोई ठण्डा मीठा रसगुल्ला सा चबा लिया जाये । पर निगौड़ी ‘‘वरिष्ठ जाड़” है कि ठण्डे के नाम पर ही बिदकती है । ना जाने क्यों वह अन्य जाड़ों से जलन महसूस कर रही है . अन्य जाड़ें वरिष्ठ जाड़ को समय समय पर आभास भी करा रही हैं कि वह अब खोखली व बेकार हो चुकी है .पर खास बात यह है कि वरिष्ठ जाड यह मानने को भी तैयार नहीं है कि वह खोखली हो गयी है और अब मुंह में वह अवांछित हो चुकी है. वह अब भी वरिष्ठता के नाम पर अहम् पद पाना चाहती है . जैसे ही कोई अहम् खाद्य दिखता है , यह जाड़ जीभ को लार टपकाने को बाध्य कर देती है . हालाँकि वरिष्ठ जाड़ को बार बार यह अहसास भी कराया जा रहा है कि वह अब और स्वादिष्ट व्यंजनों का लोभ ना करे और चुप चाप एक कोने में बैठकर अन्य जाड़ों को व्यंजनों का स्वाद लेने दे . पर क्या करें वरिष्ठ जाड़ के अड़ियल रवैये के कारण सब परेशान हैं, मगर वरिष्ठता के आगे सभी नमन करते हैं। कोई पहल नहीं करना चाहता । आखिर कुछ भी ना खा पाने के कारण शरीर की हालत पतली होती जा रही है । जीभ की अध्यक्षता में सभी दांतों व जाड़ों की मिटिंग बुलाई गई । चर्चा छिड़ी कि यदि कुछ भी ना खाया पिया गया तो शरीर समाप्त हो जायेगा और जब शरीर ही नहीं रहेगा तो हम कहां रहेंगें। हमारा अस्तित्व तो शरीर से ही जुड़ा है । जिस दिन शरीर समाप्त , उसी दिन लोग तो राम नाम सत्य बोलकर शरीर को अग्नि की भेंट चढ़ा देंगें और साथ ही हो जायेगा हमारा भी होलिका दहन । आखिर शरीर को बचाना जरूरी था, इसलिए फैसला लिया गया कि दर्द वाली वरिष्ठ जाड़ को निकलवा दिया जाये । शरीर ने डाक्टर से सलाह ली । दन्त चिकित्सक ने बताया कि वैसे तो वरिष्ठ जाड़ को कई दिन से पायरिया ने घेर रखा है , पर हाल में तो एक खतरनाक ‘ बाबरी’ कीड़ा भी वरिष्ठ जाड़ को खोखली कर रहा है . डॉक्टर ने आगाह किया कि शरीर हित में वरिष्ठ जाड़ निकलवाना ही श्रेयष्कर है। इस पर सहयोगी जाड़ों ने शंका जाहिर की कि वरिष्ठ जाड़ को निकालने पर शरीर को तो दर्द होगा ही , खून भी बह सकता है । और फिर जो खाली जगह बन जायेगी वो भी भद्दी लगेगी । वरिष्ठ जाड़ का खालीपन भी अखरेगा । डॉक्टर ने सहयोगी जाड़ों की चिंता भांपकर तुरन्त कहा -तुम निश्चिंत रहो । मैं ऐसी मसालेदार जाड़ सैट कर दूंगा कि किसी को भी फर्क पता तक नहीं चलेगा । भोजन को ऐसे कुतरेगी कि बाकी सहयोगी जाड़ें भी तरसने लगेंगी । जहां तक खून बहने की बात है वो भी निराधार है। इतनी पुरानी व अन्दर से खोखली हो चुकी जाड़ को निकालने में ना कोई खून बहता है ना कोई दर्द होता है । बस दो दिन की दिक्कत है। फिर से शरीर को पुष्ट भोजन मिलने लगेगा और जीभ को नव-स्वाद । दो दिन बाद सब सामान्य हो जायेगा । सभी जाड़- दांतों व जीभ ने शरीर हित में निर्णय ले लिया । ‘‘ वरिष्ठ जाड़” डाक्टर के कचरादान में पड़ी सोच रही थी कहां चूक हो गई । नवीनतम घटनाक्रम के अनुसार चिकित्सक के सहायक ने वरिष्ठ जाड़ की वरिष्ठता पर तरस खाते हुए जाड़ को कचरे से उठाकर डॉक्टर के टेबल के पास लगी श्योकेस में एक जार में रख दिया है । अब वरिष्ठ जाड़ खुश है कि अब वो भी समय आने पर अन्य खोखली जाड़ों को निकलते देख सकेगी । ======
राजस्थान के अलवर में गौ रक्षा के नाम पर हत्या --------------------------------------------------- जग मोहन ठाकन ================================== पहलू खां की मौत –आखिर क्या है सी एम की चुप्पी का राज ? राजस्थान की दबंग एवं सर्वाधिक मुखर मानी जाने वाली मुख्य मंत्री वसुंधरा राजे आखिर पहलू खान की हत्या पर चुप क्यों है ? यह प्रश्न आज प्रदेश एवं बाहर के उन सभी लोगों को उद्वेलित कर रहा है, जो राजे के स्वभाव को अच्छी तरह से जानते हैं . एक महिला मुख्यमंत्री को क्यों नहीं सुनाई पड़ रहा पहलू की विलापती माँ का रुदन ? समाज के जागरूक नागरिकों का आक्रोश , पीड़ित परिजनों का वेदन एवं विपक्ष का विधान सभा तथा संसद में हंगामा कैसे सी एम राजे के कानों के पर्दों के पार जाने में असरहीन हो रहा है ? २४ अप्रैल को विधान सभा के अन्दर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के प्रतिनिधियों द्वारा उठाया गया पहलू खां का मुद्दा तथा विधान सभा के ठीक सामने वाम दलों एवं पीपल्स फॉर सिविल लिबर्टीज यूनियन द्वारा इसी दिन से आयोजित तीन दिवसीय धरना पता नहीं क्यों सी एम राजे को उद्वेलित करने में नाकाम रहा है ? प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में प्रदेश के राज्यपाल कल्याण सिंह को भी पहलू खां के मामले में २१ अप्रैल को कांग्रेस पार्टी की तरफ से एक ज्ञापन दिया गया था , जिसमे पूरे प्रकरण की सीबीआई से जांच कराने की मांग की गयी है . पायलट ने सवाल उठाया है कि जब पहलु खान एवं उसके साथियों ने सरकार द्वारा अधिकृत पशु मेले से पशु खरीदे और वहां सक्षम अधिकारियों से खरीद –फरोख्त की रसीद ली गयी , तो कैसे इन पशुओं को तस्करी से जोड़ा जा रहा है ? पायलट पूछते हैं कि आखिर कौन है , जो हत्या के दोषियों को बचा रहा है ? पुलिस की अब तक की कारवाई पर संदेह व्यक्त करते हुए पायलट कहते हैं कि पुलिस की अभी तक की कारवाई तथा राज्य के गृह मंत्री के बयानों से तो ऐसा लगता है कि दोषियों को बचाने के प्रयास किये जा रहे हैं . उल्लेखनीय है कि राज्य के गृह मंत्री ने अलवर हत्या प्रकरण पर जो बयान दिया था उस पर भी काफी बवाल मचा था. पायलट प्रश्न खड़ा करते हैं कि २० दिन से अधिक का समय गुजर चुका है , पर न जाने क्यों राज्य की मुख्यमंत्री अभी तक राज्य के नागरिकों तथा पीड़ितों के परिवारों को न्याय का भरोसा दिला पाने में नाकाम रही हैं ? यहाँ यह बता देना प्रासंगिक है कि अप्रैल की पहली ही तिथि को कुछ तथाकथित गौरक्षकों ने गौ वंशीय पशुओं को ले जा रहे वाहनों पर धावा बोलकर पशु ले जा रहे व्यक्तियों के साथ मारपीट की थी , जिसमे एक व्यक्ति पहलू खान चोट की वजह से दो दिन बाद चल बसा था . गौरक्षक पशु ले जा रहे व्यक्तियों को गौ तस्कर बता रहे थे , जबकि पहलू के परिजन कहते हैं कि वे पशु पालक हैं तथा कृषि के साथ साथ दुग्ध व्यवसाय भी करते हैं . अप्रैल का शुरुआती दिन ही हरियाणा के मेवात क्षेत्र के इन पांच गौ क्रेताओं के लिए संकट का पहाड़ सिद्ध हुआ . उन्हें क्या पता था कि जयपुर के पशु मेले से खरीदे गए गौवंशीय पशु उनके एक साथी पहलु खां की मौत का पैगाम लेकर आये हैं . समाचारों के अनुसार पुलिस ने छः ज्ञात व २०० अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ धारा ३०२ के तहत मामला दर्ज कर लिया है . मृतक के परिवार वालों का कहना है कि व्यापारियों ने मेले से नियमानुसार पशुओं की खरीद की थी . परन्तु प्रशासन व पुलिस राज्य में लागु १९९५ के कानून ( गौओं को हत्या के उद्देश्य से ले जाना ) के तहत इसे अपराध मान रही है . प्रदेश या देश में गौरक्षकों द्वारा हमले की यह कोई पहली घटना नहीं है . ऐसी ही कुछ घटनाओं से विक्षुब्ध होकर देश के प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ा था कि अधिकतर गौरक्षक असामाजिक तत्व हैं . प्रधानमंत्री का इतना कहने के बावजूद ऐसी कौन सी ताकत है जिसके बल पर गौरक्षक कानून को अपने हाथ में लेकर ऐसी कारवाई अभी भी जारी रखे हुए हैं . कौन है जो गौरक्षकों को अभी भी शह दे रहा है ? मीडिया में अलवर में वितरित किये गए कथित पम्फ्लेट्स के समाचार भी छपे हैं , जिनमे पहलू खां व साथियों पर किये गए हमले में शामिल लोगों को सामाजिक कार्यकर्ता बताया गया है . एक स्वम्भू गौ रक्षक साध्वी कमल के एक सोशल मीडिया पर विडियो का जिक्र भी मीडिया की सुर्खियाँ बना है , जिसमे साध्वी ने मुस्लिम डेरी किसानों पहलू खान व अन्य साथियों पर हमला करने वाले कथित गौरक्षकों की तुलना क्रांतिकारी भगत सिंह , चन्द्रशेखर आज़ाद तथा सुखदेव से की है . पहलु खान हत्या मामले में आरोपित एक अन्य व्यक्ति विपिन यादव की भी साध्वी ने भगवान श्रीकृष्ण से बराबरी की है . प्राप्त सूचना के अनुसार राजस्थान में जनवरी २००९ से फरवरी २०१६ तक सात वर्ष में गौ तस्करी के मामलों में लगभग ६४०० व्यक्ति गिरफ्तार किये गए तथा गौ तस्करी के ३००० केस दर्ज हुए , इन में से २५०० मामलों में कोर्ट में चालान प्रस्तुत किये गए . लगभग २७०० वाहन गौ तस्करी के आरोप में जब्त किये गए . वर्तमान में गौ तस्करी के औसतन ५०० मामले प्रतिवर्ष दर्ज हो रहे हैं . यहाँ प्रश्न यह नहीं है कि गौ वंश को वैध रूप से ले जाया जा रहा है या अवैध रूप से . प्रश्न यह है कि क्या किसी भी व्यक्ति को कानून को एक तरफ रखकर अपने स्तर पर ही सजा देने का अधिकार है ? क्या कथित गौरक्षकों को यह अधिकार है कि वे अपने ही स्तर पर फैसला ले लें और व्यापारियों पर हमला बोल दें ? गौ रक्षकों को किसने यह अधिकार दिया है कि वे स्वयं बिना पुलिस व प्रशासन को सूचित किये ही तथा बिना उनका सहयोग लिए ही अपने स्तर पर चेकिंग करें और पिटाई करें ? क्या राज्य सरकार की मशीनरी इतनी पंगु हो गयी है कि गौरक्षकों को अवैध व्यापार की रोक थाम के लिए स्वयं ड्यूटी देनी पड़े . ? कानून व्यवस्था के अप्रभावी होने के मामले में मोटे रूप में तीन परिस्थितियां नजर आती हैं. प्रथम तो वह स्थिति है जहाँ कानून , प्रशासन व राजनैतिक सत्ता इतनी लचर हो जाती है कि लोगों को उस पर विश्वास ही नहीं रहता और वे अपने स्तर पर ही कानून की व्याख्या करते हैं . दूसरे परिवेश में लोग इतने उदण्ड हो जाते हैं कि उन्हें कानून , प्रशासन व राजनैतिक सत्ता का कोई भय नहीं रहता और वे स्वयं को इन सबसे ऊपर मानने लग जाते हैं . तीसरी वह स्थिति हो सकती है जब सत्ता व प्रशासन , जिन पर कानून का राज कायम करने की जिम्मेदारी है , तथा कानून तोड़ने वाले आपस में दूध में पानी की तरह मिल जाते हैं और सब कुछ दूधिया रंग का हो जाता है . आखिर कथित गौरक्षकों का उद्देश्य क्या है ? क्या वे वास्तव में गौरक्षा के लिए इतने चिंतिंत हैं कि वे सारे होश हवास व कानून कायदे भूलकर जान की बाजी लगाकर अगले पक्ष की जान भी लेने से नहीं कतराते ? यदि हाँ , तो क्यों नहीं सारे दिन गलियों व कूड़े के ढेर पर पॉलिथीन में अपनी क्षुधा शांत करने हेतु मुह मारती ये लाचार गायें इन भक्तों को दिखाई देती ? क्यों नहीं इन आवारा गायों को ये गौ भक्त अपने घरों में आसरा दे देते ? हिंदुत्व को प्रमुख एजेंडा मानने वाली व गौओं के लिए सर्वाधिक चिंता जताने वाली सरकारे क्यों नहीं अपने ही राजकीय कोष से सहयाता प्राप्त गौशालाओं में भूख व ख़राब वातावरण के कारण मरने वाली सैंकड़ों गायो की जिंदगी बचा पाती हैं ? क्यों नहीं होती है इन मौतों की जांच व कारवाई ? प्रश्न पूछे जा रहे हैं कि कहीं कथित गौ चिन्तक गौरक्षा के नाम पर किसी “हिडन” राजनैतिक एजेंडा के तहत समाज का धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण तो नहीं करना चाहते हैं ? देश में आज के दिन राज करने वाली पार्टी भाजपा दोहरे मानदंड अपना कर क्या सिद्ध करना चाहती है ? एक तरफ तो अपने शाषित प्रदेशों में गौरक्षा को अपना प्रमुख एजेंडा बनाये हुए है, दूसरी तरफ उसके ही कुछ नेता पूर्वोत्तर राज्यों में गौवध की छूट का अलग ही राग अलाप रहे है . आशंका जताई जा रही है कि चुनाव पूर्व भाषणों में जम्मू कश्मीर से धारा ३७० को हटाने की पक्षधर भाजपा कहीं अपने ही दोहरे आचरण की वजह से पूर्वोत्तर राज्यों को भी कोई विशेष धारा से न जोड़ दे ? उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व के एजेंडा को आगे रखकर भारी जीत हासिल करने वाली भाजपा को यह तो ध्यान रखना ही होगा कि देश हित व मानव हित सर्वोपरि हैं . कहीं हम इनकी उल्लंघना तो नहीं कर रहे हैं ? ======