Tuesday, 12 September 2017
THAKEN JAG MOHAN : lekh on jat arakshan -jag mohan thaken
THAKEN JAG MOHAN : lekh on jat arakshan -jag mohan thaken: http://epaper.divyahimachal.com/1345885#page/8 http://epaper.divyahimachal.com/1345885#page/8
Monday, 11 September 2017
Tuesday, 5 September 2017
Friday, 18 August 2017
punjab sarkar ke gale ki faans karja maafi
http://dastaktimes.org/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%AC-%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%97%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AB%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8/176747
Sunday, 30 July 2017
चट तलाक –पट ब्याह
- July 28, 2017
अबकी बार तो मुझे पक्का भरोसा है , निशा मौसी का नाम जरूर गिनीज बुक में दर्ज होगा . शाम को तलाक , रात होने से पहले सगाई और दिन निकलते ही फेरे . कमाल है मौसी का भी . शाम को तो लोग- बाग़ फूस –फूस कर रहे थे , अब आगे क्या करेगी मौसी ? बनी बनाई पटरानी एक झटके में सिंदूर विहीन हो गयी थी . पर यही बात तो मौसी को औरों से अलग दर्शाती है .मौसी कभी बिना सिंदूर रह सकती है क्या ? पिछले पति का सिंदूर तो ठीक से धुल भी नहीं पाया था, मौसी ने झट नयी सिंदूर दानी मंगाई और सुबह देखो तो नवी –नवेलियों को भी माफ़ कर रही थी . क्या गजब का श्रृंगार किया था मौसी ने . मांग में ताज़ा कटे बकरे के खून की माफिक सिंदूर दमक रहा था . अब कौन सा बकरा मौसी कब काट दे ये तो खुद बकरे को भी पता नहीं चलता .बकरे की बलि चढ़ाना तो मौसी का सगल भी है और मजबूरी भी .
यूं तो मौसी को भी ध्यान नहीं होगा कि कितने लोगों से गलबहियां की होंगी . हाँ अभी ताज़ा मामला तो यह है कि अपने दूसरे पति को अचानक पैर का अंगूठा दिखाकर तीन बार नहीं बल्कि एक ही बार ऐसा तलाक बोला कि बेचारा लाचार हो चुका बूढा पति नंबर दो अपने पूर्व पत्नी से जन्मे बच्चों को लेकर चुपचाप चारपाई पर पसर गया . लोग कहते हैं कि अभी तक सदमा कम नहीं हुआ है और शायद जल्दी सी होने के आसार भी नहीं लगते . मौसी ने कोई धतूरे की घूटी नहीं चटाई है, बल्कि ऐसा इंजेक्शन मारा है कि बूढा कई दिन में आँख खोलेगा , महीनों तक तो दिन रात तारे ही तारे नज़र आयेंगे .
एक अचरज वाली बात यह है कि मौसी ने दोबारा से अपने पूर्व पति नंबर एक से ही निकाह कर लिया . यहाँ सवाल उठता है कि जब पति नंबर एक के साथ ही रहना था तो फिर बूढ़े पति संग क्यों अटखेलियाँ की थी . लोग कहते है ये तो मात्र छलावा था . कुछ लोग यह भी कहते है कि मौसी पटरानी नहीं महा पटरानी बनने के सपने देखने लगी थी और बुढऊ पति की कमर पर चढ़कर अपना यह सपना सच करना चाहती थी . परन्तु अब मौसी को अपनी गलती का अहसास हो गया था कि इस बुढऊ के पल्ले रहकर वह गरीब की जोरू सब की भाभी बन कर रह गयी थी. मौसी को समझ आ गया कि यदि जोरू ही बनना है तो कम कम से किसी ५६ इंची छाती वाले की तो बने . लोग तो सलाम ठोकेंगे , छोटे मोटे सिपहिया तो तंग नहीं करेंगे . और अब वही हुआ भी . बड़े बड़े वर्दी धारी सलाम ठोकने लगे हैं . मौसी के तो अच्छे दिन आ गए , पर बेचारे बुढऊ और उसके दूध मुहे बच्चों के तो बुरे दिन सौ फीसदी आयेंगे ही .
यूं तो मौसी को भी ध्यान नहीं होगा कि कितने लोगों से गलबहियां की होंगी . हाँ अभी ताज़ा मामला तो यह है कि अपने दूसरे पति को अचानक पैर का अंगूठा दिखाकर तीन बार नहीं बल्कि एक ही बार ऐसा तलाक बोला कि बेचारा लाचार हो चुका बूढा पति नंबर दो अपने पूर्व पत्नी से जन्मे बच्चों को लेकर चुपचाप चारपाई पर पसर गया . लोग कहते हैं कि अभी तक सदमा कम नहीं हुआ है और शायद जल्दी सी होने के आसार भी नहीं लगते . मौसी ने कोई धतूरे की घूटी नहीं चटाई है, बल्कि ऐसा इंजेक्शन मारा है कि बूढा कई दिन में आँख खोलेगा , महीनों तक तो दिन रात तारे ही तारे नज़र आयेंगे .
मौसी की टक्कर
हरियाणा के एक गाँव में भी निशा मौसी की तासीर वाली एक मौसी थी . उसकी समस्या याह थी अक मौसी कै साथ जिस किसी के फेरे करवाते वो गाँव छोड़कर भाग जाता . चार बार इसा ए सूत सधा . ईब गाँव के रांडे मौसी नै पल्ला उढाण ( विधवा से विवाह ) तैं नाटण लागगे . गाँव की पंचायत होई , पण्डित बुह्ज्या गया . फैसला होया अक सूण शास्त्र खातिर एक बार मौसी का पल्ला गाँव कै झोटे गेल बांध दो . तीसरे दिन गाँव तैं झोटा नदारद. ईब गाँव मैं समस्या याह आ री सै अक गाँव आले नया झोटा ल्यावें सैं अर तीसरे दिन भाज ज्या सै . नथू का कहना सै अक झोटे की टक्कर ओट्टी जा सकै सै पर मौसी की टक्कर कोन्या उटै .गाँव झोटा विहीन हो ग्या ,मौसी ज्यों की त्यों खुरी करै सै . मामला संगीन लगता है , एक छोटी सी सीबीआई जाँच तो होए जाणी चाहिए .
हरियाणा के एक गाँव में भी निशा मौसी की तासीर वाली एक मौसी थी . उसकी समस्या याह थी अक मौसी कै साथ जिस किसी के फेरे करवाते वो गाँव छोड़कर भाग जाता . चार बार इसा ए सूत सधा . ईब गाँव के रांडे मौसी नै पल्ला उढाण ( विधवा से विवाह ) तैं नाटण लागगे . गाँव की पंचायत होई , पण्डित बुह्ज्या गया . फैसला होया अक सूण शास्त्र खातिर एक बार मौसी का पल्ला गाँव कै झोटे गेल बांध दो . तीसरे दिन गाँव तैं झोटा नदारद. ईब गाँव मैं समस्या याह आ री सै अक गाँव आले नया झोटा ल्यावें सैं अर तीसरे दिन भाज ज्या सै . नथू का कहना सै अक झोटे की टक्कर ओट्टी जा सकै सै पर मौसी की टक्कर कोन्या उटै .गाँव झोटा विहीन हो ग्या ,मौसी ज्यों की त्यों खुरी करै सै . मामला संगीन लगता है , एक छोटी सी सीबीआई जाँच तो होए जाणी चाहिए .
MY LEKH-TUM BHOOL NA JAANA-DALIT HO TUM
यह भूल मत जाना कि ‘दलित’ हो तुम
यों तो कांग्रेस द्वारा शुरू की गयी कई योजनाओ को भाजपा भी ज्यों का त्यों या थोड़े परिवर्तन के साथ अपना रही है . चाहे जी एस टी हो, एफ डी आई हो या बैंकों की मनमोहन सरकार द्वारा चलाई गयी नो फ्रिल अकाउंट की तर्ज पर जन धन खाता योजना . हाँ इतना अवश्य है कि जहाँ कांग्रेस योजना शुरू तो करती थी , क्रियान्वयन भी करती थी, परन्तु उनको ढोल नहीं बजाना आता . भाजपा इस वाद्य यंत्र को पीटने में एकदम माहिर है . हरिजनों को लुभाने के लिए राहुल गाँधी ने दलितों के घर भोज की नई पहल की थी . परन्तु यूपी या अन्य चुनाओं में यह पहल कांग्रेस के पक्ष में कोई खास करिश्मा नहीं दिखा पाई . हाल में भाजपा ने इसे ढोल नगाड़ों के साथ अपनाया है . पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जिस भी प्रदेश में जाते हैं वहां दलित के घर का लज़ीज खाना अवश्य खाते हैं . यह खाना कितना दलित के घर में बना होता, इस पर लोग प्रारम्भ से ही सवाल उठाते रहे हैं . मीडिया द्वारा या इन्टरनेट पर जो तस्वीरें परोसी जा रही है वे संदेह ज्यादा पैदा करती हैं कि इतना उम्दा व साफ़ सुथरा तथा नये एवं चमकीले बर्तनों में परोसा जा रहा यह खाना किस गरीब दलित के घर में बनता है ? इतने सुन्दर बर्तन किस गरीब दलित के घर में उपलब्ध हैं? यह एक सामाजिक शोध का विषय है . अगर हमारे देश का गरीब दलित इतना ही सक्षम या समृद्ध है तो फिर उसे क्यों दलित कहा जा रहा है ? मीडिया द्वारा शेयर किये गए चित्रों में बिश्लेरी वाटर की बोतल का पानी किस दलित हरिजन के घर में उपलब्ध है, यह भी विचारणीय है . क्या यह सब ताम झाम स्वप्रायोजित तो नहीं ? लोगों का तो यही मानना है कि सब माल मसाला, बर्तन, पानी और व्यवस्था आने वाले नेता लोग अपने साथ लाते हैं . अगर दलित का कुछ है तो केवल घर, जिसमे पहले से ही एंटी सेप्टिक तरल छिड़क कर साफ़ सुथरा और जीवाणु रहित कर लिया जाता है ताकि आने वाले स्व-मेहमान कम होस्ट किसी छूत –अछूत बीमारी की चपेट में ना आ जाएँ.
दलित का शाब्दिक अर्थ है –दलन किया हुआ . इसमें हर वह व्यक्ति शामिल किया जा सकता है जो शोषित है , पीड़ित है , दबा हुआ है , मसला हुआ है , रौंदा हुआ है, कुचला हुआ है . दलन कम से कम तीन रूप में तो होता ही है – आर्थिक, सामाजिक तथा साइकोलॉजिकल .
विकिपीडिया के अनुसार – दलित हज़ारों वर्षों तक अस्पृश्य या अछूत समझी जाने वाली उन तमाम शोषित जातियों के लिए सामूहिक रूप से प्रयुक्त होता है जो हिन्दू धर्म शास्त्रों द्वारा हिन्दू समाज व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर स्थित की गयी हैं .
किसने रचे ये हिन्दू धर्म शास्त्र ? क्यों किया गया ऐसा अमानवीय वर्गीकरण ? प्रारम्भ से ही सत्ता व सम्पति हेतु संघर्ष होते रहे हैं . चाहे यह आदिम काल हो, चाहे मध्य काल हो जब बाहरी आक्रमण कारी भारत में हमला करने आये या चाहे वर्तमान काल जब चीन जैसे पडोसी देश जो अपने व्यापार व सत्ता को बढाने हेतु भारत को आँखें दिखा रहे हैं . सम्पति व सत्ता पर काबिज लोग ही ज्ञान पर कब्ज़ा धारी होते चले गए . वे ही अपने मालिकाना हक़ को मजबूत करने के मकसद से ऐसे ग्रंथों व धर्म शास्त्रों की रचना करने लगे ताकि आम अज्ञानी , ‘हैव नोट्स’ तथा वंचित तबके को अपने आधीन रखकर उनसे सेवा सुश्रुषा कारवाई जा सके .इन्ही ‘हैव्ज’ ने ‘हैव नोट्स’ को और अधिक कमजोर व असहाय बनाने के लिए इनका हर तरह से शोषण शुरू कर दिया तथा इनको प्रयाप्त मेहनताना भी नहीं दिया ताकि यह वर्ग सदा के लिए इनकी मेहरबानी का मोहताज़ बना रहे .आज भी भारतीय परिवेश में इस व्यवस्था के पोषक पुष्ट बने हुए हैं .
आज भी भले ही कोई दलित जाति का व्यक्ति कितना ही अपना आर्थिक आधार पुष्ट करले , चाहे अपने आर्थिक व ज्ञान अर्जन के आधार पर कितना ही सक्षम हो जाए, परन्तु ये समाज के सत्ता काबिज लोग अभी भी साइकोलॉजिकली उसे बार-बार कदम कदम पर दलित होने का एहसास करवाने से नहीं चूकते. उन्हें पता है कि सभी प्रकार की गुलामी से मानसिक गुलामी अधिक भारी है . यही कारण है कि विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा देश के सर्वोच्च पद पर चुनाव में खड़े किये गए उम्मीदवारों तक को भी बार बार यह एहसास करवाया जाता है कि उनकी पार्टी दलित हितैषी है और इसी लिए एक दलित को इस पद पर चुनाव लडवाया जा रहा है . आज के तकनिकी एवं भौतिक संसाधन प्रमुखता वाले दौर में भले ही कुछ दलित जातियों के व्यक्तियों ने अर्थ के साधनों पर मजबूत पकड़ बनाकर अपने आर्थिक आधार को पुष्ट बना लिया हो, भले ही उन्होंने अपने मजबूत शिक्षा, आर्थिक व बुद्धिबल के आधार पर उच्च जातियों से सामाजिक रिश्ते कायम कर लिए हों, परन्तु अभी भी वो धर्म व समाज के तथाकथित ठेकेदार उन्हें साइकोलॉजिकली इतना डिप्रेस करने का प्रयास करते हैं ताकि वे उनके सामने गर्दन ना उठा सकें . उन्हें हर कदम पर याद दिलाया जाता है –यह मत भूलो कि दलित हो तुम .
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Thursday, 22 June 2017
हैलो माइक टेस्टिंग -व्यंग्य -जग मोहन ठाकन
व्यंग्य
जग मोहन ठाकन
हैलो माईक टेस्टिंग , हैलो , हैलो
अभी २१ जून को सुबह सुबह हर रोज की तरह निकट के पार्क में घुसा तो देखा कई नए
नए लोग बाकायदा सुंदर सुंदर परिधान पहने पहले से ही पार्क की ठीक कोमल घास वाली जगह पर आसन जमाये पार्क की
सुबह की ताज़ी ओक्सिज़न युक्त प्राणवायु को चूसने की प्रतियोगिता में लीन हैं . अधिकतर
युवक युवती आधुनिक परिधान छोटी टी कट व इत्ती ही न्यूनतम संभव लोअर के आवरण में
भारत की प्राचीन परम्परा का निर्वहन करते योगी बनने का अभ्यास कर रहे हैं . पता
चला आज लोगों को योग के प्रति जागरूक किया
जा रहा है . तभी चौबे जी मिल गए , आते ही बिफर पड़े – सब ढकोसला है , जब भी कोई समस्या देश के संचालकों के सामने फन
उठाती है ये पब्लिक को दिग्भ्रमित करने के लिए कोई ना कोई मदारी वाली नई डुग डुगी
बजाने लगते हैं . बाजीगरों व सपेरों के खेल में अपनी विपदा भूलने वाली देश की
भोली- भाली जनता ताली बजा कर खुश हो जाती है और ये सपेरे अपने बोरों में काले
सांप पालने में कामयाब हो जाते हैं ताकि जरुरत पड़ने पर फिर इन्ही सांपों के सहारे
जनता को बहकाया जा सके . कभी ये सफ़ेद पोश
लोग अपने हाथों में इत्तर छिटकी झाड़ू लेकर
सेल्फी खींचकर मीडिया में छा जाते हैं , तो कभी लोगों को बैंकों की लाइनों
में लगने को विवश कर बैंक वालों से हाथ दो चार करवा कर खुद पाक साफ़ बन जाते हैं
. ये इन लोगों का जनता की नब्ज चेक करने
का हैलो माइक टेस्टिंग है.
पार्क में योगभक्त जन के चूसने के कारण कम हो चुकी ओक्सिज़न की वजह से चौबे जी के नथुने भी साँसों की रफ़्तार को बढ़ते देख फूलते जा रहे थे .
मैंने बीच में ही टोकना उचित समझा और कहा – चौबे जी चाहे कुछ भी कहो योग से
बड़े बड़े पेट वालों का वजन तो घटता है
. और यही वजन ही सब रोगों की जड़ है .
चौबे जी मंद मंद मुस्काये , बोले –ठीक पकड़े है . आज की सत्ता के शिखर पर बैठे
पुरोधा यही तो चाहते हैं , यही तो इनका एजेंडा है , कि वजन बढे तो केवल उनका ,
दूसरा कोई इनके समान वजन धारी ना हो जाए .
सुना है कि कुछ ‘शाह’ लोग ज्यादा ही वजनधारी होने लगे थे , पर समय रहते हमारे पारखी ‘ग्रीन टी’ वाले की नजर पड़ गयी और आज उनका लगभग बीस किलो वजन कम हो गया बताते
हैं . वजन कम करने की तकनीक में तो ग्रीन टी का कोई सानी नहीं है . कल तक जिनकी
‘वाणी’ में अदम्य ‘जोश’ था , आज उनका इतना कम वजन हो गया है कि कोई उनका वजन तौलने
तक राजी नहीं है . खैर समय समय की बात है . शिखर पर बैठने वाले वजनधारी तो होते ही
हैं . परन्तु यह भी सत्य है कि जो भारी भरकम
ग्लेसिअर कल तक हिमालय की चोटी पर बैठकर अकड़ दिखाते थे, वे आज फिसल कर धरातल पर
जगह ढूंढ रहे हैं और पत्थरों की ठोकरें उन्हें
चीर चीर कर पानी पानी कर रहीं हैं और वे गन्दला पानी हो चुके तथाकथित
ग्लेसिअर गंदे नालों में ठहराव के लिए तरस रहे हैं .
मुझे तो लगता है चौबे जी की बात में वजन है . परन्तु यदि किसी ग्रीन टी वाले की नजर पड़ गयी तो ---.
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Thursday, 8 June 2017
http://dastaktimes.org/archives/162841-my vyangya lekh-varishth jaad
http://dastaktimes.org/archives/162841
व्यंग्य लेख
वरिष्ठ जाड़ का दर्द
जग मोहन ठाकन
पिछले कुछ दिनों से ‘‘वरिष्ठ जाड़ ’’ की सन्सटीविटी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी । ठण्डा खाओ तो दर्द , गर्म खाओ तो दर्द । इतनी भारी भरकम गर्मी में शरीर कहता है कि कुछ ठण्डा पिया जाये वर्ना डिहाइडरेसन का खतरा बढ़ जाता है । जीभ कहती है कि कुछ कूल-कूल हो जाये । विवाह शादियों का मौसम है . मुश्किल से ऐसे हालात बने हैं कि लोग निमंत्रण देने लगे हैं .
वैसे भी कहा जाता है कि ना जाने घोड़े और आदमी के कब दिन फिर जाएँ. कब राजभवन में पग फेरा हो जाए . जाड़ की किस्मत का भी यही हाल है . पता नहीं लगता कब नत्थू चाय वाले के पत्थर से सख्त लड्डू खाने पड़ जाएँ और कब राजभवन से दावत आ जाये .
और हाल में तो एक बहुत बड़ी दावत मिलने के आसार भी दिख रहे हैं . अन्य जाड़ें किसी भी हालत में इस दावत से वंचित नहीं होना चाहती . सहयोगी जाड़ें चाहती हैं कि इस दावत में कोई ठण्डा मीठा रसगुल्ला सा चबा लिया जाये । पर निगौड़ी ‘‘वरिष्ठ जाड़” है कि ठण्डे के नाम पर ही बिदकती है । ना जाने क्यों वह अन्य जाड़ों से जलन महसूस कर रही है . अन्य जाड़ें वरिष्ठ जाड़ को समय समय पर आभास भी करा रही हैं कि वह अब खोखली व बेकार हो चुकी है .पर खास बात यह है कि वरिष्ठ जाड यह मानने को भी तैयार नहीं है कि वह खोखली हो गयी है और अब मुंह में वह अवांछित हो चुकी है. वह अब भी वरिष्ठता के नाम पर अहम् पद पाना चाहती है . जैसे ही कोई अहम् खाद्य दिखता है , यह जाड़ जीभ को लार टपकाने को बाध्य कर देती है . हालाँकि वरिष्ठ जाड़ को बार बार यह अहसास भी कराया जा रहा है कि वह अब और स्वादिष्ट व्यंजनों का लोभ ना करे और चुप चाप एक कोने में बैठकर अन्य जाड़ों को व्यंजनों का स्वाद लेने दे .
पर क्या करें वरिष्ठ जाड़ के अड़ियल रवैये के कारण सब परेशान हैं, मगर वरिष्ठता के आगे सभी नमन करते हैं। कोई पहल नहीं करना चाहता । आखिर कुछ भी ना खा पाने के कारण शरीर की हालत पतली होती जा रही है । जीभ की अध्यक्षता में सभी दांतों व जाड़ों की मिटिंग बुलाई गई । चर्चा छिड़ी कि यदि कुछ भी ना खाया पिया गया तो शरीर समाप्त हो जायेगा और जब शरीर ही नहीं रहेगा तो हम कहां रहेंगें। हमारा अस्तित्व तो शरीर से ही जुड़ा है । जिस दिन शरीर समाप्त , उसी दिन लोग तो राम नाम सत्य बोलकर शरीर को अग्नि की भेंट चढ़ा देंगें और साथ ही हो जायेगा हमारा भी होलिका दहन ।
आखिर शरीर को बचाना जरूरी था, इसलिए फैसला लिया गया कि दर्द वाली वरिष्ठ जाड़ को निकलवा दिया जाये । शरीर ने डाक्टर से सलाह ली । दन्त चिकित्सक ने बताया कि वैसे तो वरिष्ठ जाड़ को कई दिन से पायरिया ने घेर रखा है , पर हाल में तो एक खतरनाक ‘ बाबरी’ कीड़ा भी वरिष्ठ जाड़ को खोखली कर रहा है . डॉक्टर ने आगाह किया कि शरीर हित में वरिष्ठ जाड़ निकलवाना ही श्रेयष्कर है। इस पर सहयोगी जाड़ों ने शंका जाहिर की कि वरिष्ठ जाड़ को निकालने पर शरीर को तो दर्द होगा ही , खून भी बह सकता है । और फिर जो खाली जगह बन जायेगी वो भी भद्दी लगेगी । वरिष्ठ जाड़ का खालीपन भी अखरेगा । डॉक्टर ने सहयोगी जाड़ों की चिंता भांपकर तुरन्त कहा -तुम निश्चिंत रहो । मैं ऐसी मसालेदार जाड़ सैट कर दूंगा कि किसी को भी फर्क पता तक नहीं चलेगा । भोजन को ऐसे कुतरेगी कि बाकी सहयोगी जाड़ें भी तरसने लगेंगी । जहां तक खून बहने की बात है वो भी निराधार है। इतनी पुरानी व अन्दर से खोखली हो चुकी जाड़ को निकालने में ना कोई खून बहता है ना कोई दर्द होता है । बस दो दिन की दिक्कत है। फिर से शरीर को पुष्ट भोजन मिलने लगेगा और जीभ को नव-स्वाद । दो दिन बाद सब सामान्य हो जायेगा । सभी जाड़- दांतों व जीभ ने शरीर हित में निर्णय ले लिया । ‘‘ वरिष्ठ जाड़” डाक्टर के कचरादान में पड़ी सोच रही थी कहां चूक हो गई । नवीनतम घटनाक्रम के अनुसार चिकित्सक के सहायक ने वरिष्ठ जाड़ की वरिष्ठता पर तरस खाते हुए जाड़ को कचरे से उठाकर डॉक्टर के टेबल के पास लगी श्योकेस में एक जार में रख दिया है । अब वरिष्ठ जाड़ खुश है कि अब वो भी समय आने पर अन्य खोखली जाड़ों को निकलते देख सकेगी ।
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राजस्थान के अलवर में गौ रक्षा के नाम पर हत्या
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जग मोहन ठाकन
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पहलू खां की मौत –आखिर क्या है सी एम की चुप्पी का राज ?
राजस्थान की दबंग एवं सर्वाधिक मुखर मानी जाने वाली मुख्य मंत्री वसुंधरा राजे आखिर पहलू खान की हत्या पर चुप क्यों है ? यह प्रश्न आज प्रदेश एवं बाहर के उन सभी लोगों को उद्वेलित कर रहा है, जो राजे के स्वभाव को अच्छी तरह से जानते हैं . एक महिला मुख्यमंत्री को क्यों नहीं सुनाई पड़ रहा पहलू की विलापती माँ का रुदन ? समाज के जागरूक नागरिकों का आक्रोश , पीड़ित परिजनों का वेदन एवं विपक्ष का विधान सभा तथा संसद में हंगामा कैसे सी एम राजे के कानों के पर्दों के पार जाने में असरहीन हो रहा है ? २४ अप्रैल को विधान सभा के अन्दर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के प्रतिनिधियों द्वारा उठाया गया पहलू खां का मुद्दा तथा विधान सभा के ठीक सामने वाम दलों एवं पीपल्स फॉर सिविल लिबर्टीज
यूनियन द्वारा इसी दिन से आयोजित तीन दिवसीय धरना पता नहीं क्यों सी एम राजे को उद्वेलित करने में नाकाम रहा है ?
प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में प्रदेश के राज्यपाल कल्याण सिंह को भी पहलू खां के मामले में २१ अप्रैल को कांग्रेस पार्टी की तरफ से एक ज्ञापन दिया गया था , जिसमे पूरे प्रकरण की सीबीआई से जांच कराने की मांग की गयी है . पायलट ने सवाल उठाया है कि जब पहलु खान एवं उसके साथियों ने सरकार द्वारा अधिकृत पशु मेले से पशु खरीदे और वहां सक्षम अधिकारियों से खरीद –फरोख्त की रसीद ली गयी , तो कैसे इन पशुओं को तस्करी से जोड़ा जा रहा है ? पायलट पूछते हैं कि आखिर कौन है , जो हत्या के दोषियों को बचा रहा है ? पुलिस की अब तक की कारवाई पर संदेह व्यक्त करते हुए पायलट कहते हैं कि पुलिस की अभी तक की कारवाई तथा राज्य के गृह मंत्री के बयानों से तो ऐसा लगता है कि दोषियों को बचाने के प्रयास किये जा रहे हैं . उल्लेखनीय है कि राज्य के गृह मंत्री ने अलवर हत्या प्रकरण पर जो बयान दिया था उस पर भी काफी बवाल मचा था. पायलट प्रश्न खड़ा करते हैं कि २० दिन से अधिक का समय गुजर चुका है , पर न जाने क्यों राज्य की मुख्यमंत्री अभी तक राज्य के नागरिकों तथा पीड़ितों के परिवारों को न्याय का भरोसा दिला पाने में नाकाम रही हैं ?
यहाँ यह बता देना प्रासंगिक है कि अप्रैल की पहली ही तिथि को कुछ तथाकथित गौरक्षकों ने गौ वंशीय पशुओं को ले जा रहे वाहनों पर धावा बोलकर पशु ले जा रहे व्यक्तियों के साथ मारपीट की थी , जिसमे एक व्यक्ति पहलू खान चोट की वजह से दो दिन बाद चल बसा था . गौरक्षक पशु ले जा रहे व्यक्तियों को गौ तस्कर बता रहे थे , जबकि पहलू के परिजन कहते हैं कि वे पशु पालक हैं तथा कृषि के साथ साथ दुग्ध व्यवसाय भी करते हैं .
अप्रैल का शुरुआती दिन ही हरियाणा के मेवात क्षेत्र के इन पांच गौ क्रेताओं के लिए संकट का पहाड़ सिद्ध हुआ . उन्हें क्या पता था कि जयपुर के पशु मेले से खरीदे गए गौवंशीय पशु उनके एक साथी पहलु खां की मौत का पैगाम लेकर आये हैं .
समाचारों के अनुसार पुलिस ने छः ज्ञात व २०० अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ धारा ३०२ के तहत मामला दर्ज कर लिया है . मृतक के परिवार वालों का कहना है कि व्यापारियों ने मेले से नियमानुसार पशुओं की खरीद की थी . परन्तु प्रशासन व पुलिस राज्य में लागु १९९५ के कानून ( गौओं को हत्या के उद्देश्य से ले जाना ) के तहत इसे अपराध मान रही है . प्रदेश या देश में गौरक्षकों द्वारा हमले की यह कोई पहली घटना नहीं है . ऐसी ही कुछ घटनाओं से विक्षुब्ध होकर देश के प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ा था कि अधिकतर गौरक्षक असामाजिक तत्व हैं . प्रधानमंत्री का इतना कहने के बावजूद ऐसी कौन सी ताकत है जिसके बल पर गौरक्षक कानून को अपने हाथ में लेकर ऐसी कारवाई अभी भी जारी रखे हुए हैं . कौन है जो गौरक्षकों को अभी भी शह दे रहा है ?
मीडिया में अलवर में वितरित किये गए कथित पम्फ्लेट्स के समाचार भी छपे हैं , जिनमे पहलू खां व साथियों पर किये गए हमले में शामिल लोगों को सामाजिक कार्यकर्ता बताया गया है . एक स्वम्भू गौ रक्षक साध्वी कमल के एक सोशल मीडिया पर विडियो का जिक्र भी मीडिया की सुर्खियाँ बना है , जिसमे साध्वी ने मुस्लिम डेरी किसानों पहलू खान व अन्य साथियों पर हमला करने वाले कथित गौरक्षकों की तुलना क्रांतिकारी भगत सिंह , चन्द्रशेखर आज़ाद तथा सुखदेव से की है .
पहलु खान हत्या मामले में आरोपित एक अन्य व्यक्ति विपिन यादव की भी साध्वी ने भगवान श्रीकृष्ण से बराबरी की है .
प्राप्त सूचना के अनुसार राजस्थान में जनवरी २००९ से फरवरी २०१६ तक सात वर्ष में गौ तस्करी के मामलों में लगभग ६४०० व्यक्ति गिरफ्तार किये गए तथा गौ तस्करी के ३००० केस दर्ज हुए , इन में से २५०० मामलों में कोर्ट में चालान प्रस्तुत किये गए . लगभग २७०० वाहन गौ तस्करी के आरोप में जब्त किये गए . वर्तमान में गौ तस्करी के औसतन ५०० मामले प्रतिवर्ष दर्ज हो रहे हैं .
यहाँ प्रश्न यह नहीं है कि गौ वंश को वैध रूप से ले जाया जा रहा है या अवैध रूप से . प्रश्न यह है कि क्या किसी भी व्यक्ति को कानून को एक तरफ रखकर अपने स्तर पर ही सजा देने का अधिकार है ? क्या कथित गौरक्षकों को यह अधिकार है कि वे अपने ही स्तर पर फैसला ले लें और व्यापारियों पर हमला बोल दें ? गौ रक्षकों को किसने यह अधिकार दिया है कि वे स्वयं बिना पुलिस व प्रशासन को सूचित किये ही तथा बिना उनका सहयोग लिए ही अपने स्तर पर चेकिंग करें और पिटाई करें ? क्या राज्य सरकार की मशीनरी इतनी पंगु हो गयी है कि गौरक्षकों को अवैध व्यापार की रोक थाम के लिए स्वयं ड्यूटी देनी पड़े . ?
कानून व्यवस्था के अप्रभावी होने के मामले में मोटे रूप में तीन परिस्थितियां नजर आती हैं. प्रथम तो वह स्थिति है जहाँ कानून , प्रशासन व राजनैतिक सत्ता इतनी लचर हो जाती है कि लोगों को उस पर विश्वास ही नहीं रहता और वे अपने स्तर पर ही कानून की व्याख्या करते हैं . दूसरे परिवेश में लोग इतने उदण्ड हो जाते हैं कि उन्हें कानून , प्रशासन व राजनैतिक सत्ता का कोई भय नहीं रहता और वे स्वयं को इन सबसे ऊपर मानने लग जाते हैं . तीसरी वह स्थिति हो सकती है जब सत्ता व प्रशासन , जिन पर कानून का राज कायम करने की जिम्मेदारी है , तथा कानून तोड़ने वाले आपस में दूध में पानी की तरह मिल जाते हैं और सब कुछ दूधिया रंग का हो जाता है .
आखिर कथित गौरक्षकों का उद्देश्य क्या है ? क्या वे वास्तव में गौरक्षा के लिए इतने चिंतिंत हैं कि वे सारे होश हवास व कानून कायदे भूलकर जान की बाजी लगाकर अगले पक्ष की जान भी लेने से नहीं कतराते ? यदि हाँ , तो क्यों नहीं सारे दिन गलियों व कूड़े के ढेर पर पॉलिथीन में अपनी क्षुधा शांत करने हेतु मुह मारती ये लाचार गायें इन भक्तों को दिखाई देती ? क्यों नहीं इन आवारा गायों को ये गौ भक्त अपने घरों में आसरा दे देते ? हिंदुत्व को प्रमुख एजेंडा मानने वाली व गौओं के लिए सर्वाधिक चिंता जताने वाली सरकारे क्यों नहीं अपने ही राजकीय कोष से सहयाता प्राप्त गौशालाओं में भूख व ख़राब वातावरण के कारण मरने वाली सैंकड़ों गायो की जिंदगी बचा पाती हैं ? क्यों नहीं होती है इन मौतों की जांच व कारवाई ?
प्रश्न पूछे जा रहे हैं कि कहीं कथित गौ चिन्तक गौरक्षा के नाम पर किसी “हिडन” राजनैतिक एजेंडा के तहत समाज का धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण तो नहीं करना चाहते हैं ? देश में आज के दिन राज करने वाली पार्टी भाजपा दोहरे मानदंड अपना कर क्या सिद्ध करना चाहती है ? एक तरफ तो अपने शाषित प्रदेशों में गौरक्षा को अपना प्रमुख एजेंडा बनाये हुए है, दूसरी तरफ उसके ही कुछ नेता पूर्वोत्तर राज्यों में गौवध की छूट का अलग ही राग अलाप रहे है . आशंका जताई जा रही है कि चुनाव पूर्व भाषणों में जम्मू कश्मीर से धारा ३७० को हटाने की पक्षधर भाजपा कहीं अपने ही दोहरे आचरण की वजह से पूर्वोत्तर राज्यों को भी कोई विशेष धारा से न जोड़ दे ? उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व के एजेंडा को आगे रखकर भारी जीत हासिल करने वाली भाजपा को यह तो ध्यान रखना ही होगा कि देश हित व मानव हित सर्वोपरि हैं . कहीं हम इनकी उल्लंघना तो नहीं कर रहे हैं ?
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Sunday, 7 May 2017
Thursday, 4 May 2017
ऋषि मुनियों के देश में , अब अऋषि रहे ना कोय
व्यंग्य लेख – जग मोहन ठाकन
ऋषि मुनियों के देश में , अब अऋषि रहे
ना कोय
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बाबा रामदेव जी महाराज को आप चाहे योग गुरु कहें या संयोग गुरु ; उनके “ गुरु” होने में कोई संदेह नहीं
रह गया है .बल्कि महागुरू का ताज भी उनके मस्तक पर छोटा प्रतीत
होता है . हाँ , इतना भी निश्चित मानिये
कि वो समय की नजाकत और नब्ज को टटोलते हुए ही बिलकुल सटीक कर्म –वचन –प्रवचन करते
हैं . वे चाहे लंगोट धारण करें , चाहे नारी वस्त्र . वे मूल भारतीय संस्कृति के संवाहक हैं और पुनर्जागरण के पुरोधा भी . उन द्वारा किये जा रहे योग प्रयोगों तथा आयुर्वेदिक जड़ी –बूटियों को वर्तमान भौतिक युग में भी आंग्ल चिकित्सा
पद्धति के साथ प्रतियोगिता में आगे बढाने
के प्रयास करना और प्राचीन भारतीय
संस्कृति को पुनर्जीवित करना उनका न केवल
लक्ष्य है , अपितु कर्म –धर्म भी बन गया
है .
हरिद्वार में पतंजलि आयुर्वेदिक
रिसर्च इंस्टिट्यूट का देश के
प्रधान मंत्री माननीय मोदी जी द्वारा उदघाटन के
समय उन्होंने सिद्ध कर दिया कि वे वास्तव में “गुरू” हैं और उन्होंने गुरू के पद के अनुसार ही आचरण करते
हुए मोदी जी को “राष्ट्र ऋषि” की समय की मांग के अनुसार ‘सही समय पर सही उपाधि’ देकर
भारतीय प्राचीन परम्परा का सही निर्वहन किया है . आने वाला इतिहास उन्हें
हमेशा याद करेगा .
केवल एक योग्य गुरु ही तो यह प्रमाणित
कर सकता है कि कौन सा शिष्य किस उपाधि के
लिए पात्र है . उन्होंने देशवासियों को यह कह कर कृतार्थ कर दिया कि –मोदी देश को
एक वरदान के रूप में मिले हैं , उनका राष्ट्र ऋषि के रूप में सम्मान होना चाहिए .
बाबा रामदेव ने यह भी कहा कि आज पूरी
दुनिया भारत का लोहा मान रही है . ( भले ही पड़ौसी प्लास्टिक भी ना मानते हों
.) प्रकाण्ड विद्वान् व गुरुजन किस भाषा
में बात करते हैं , यह तो अभी शोध का विषय ही रहेगा . हम तो हमेशा से ही यही सुनते आये हैं – खग की भाषा खग ही जाने .
बाबा जी ने मोदी जी को राष्ट्र ऋषि घोषित कर “उपाधियों” का एक नया मार्ग प्रशस्त किया है . अब उन्होंने पदम भूषण
, पदम विभूषण ,पदम श्री की तर्ज पर
राष्ट्र ऋषि , प्रधान ऋषि , मुख्य ऋषि , राज ऋषि , प्रान्त ऋषि , जिला ऋषि , तहसील
ऋषि , गाँव ऋषि , कृषि ऋषि , उद्योग ऋषि , राष्ट्र गुरू , महा गुरू ,विश्व गुरू
आदि अनेकों उपाधियों का श्री गणेश किया है . अब सरकार या जो भी स्वयंभू गुरु जब
चाहे किसी को उपरोक्त “ऋषि या गुरू” उपाधियों से सुशोभित कर
सकेगा . इसे कहते हैं नवाचार . अगर किसी राष्ट्र जन को आपत्ति ना हो तो मैं भी स्वयं को राष्ट्रीय व्यंग्य गुरु या व्यंग्य ऋषि घोषित करने का दु:साहस
कर लूँ .
बाबा रामदेव की प्रधान मंत्री को
उपाधि प्रदान करने की उदारता को देखते हुए
अब सरकार को भी चाहिए कि योग (योग्य ) गुरू को तुरंत प्रमुख परामर्श ऋषि या
राष्ट्र गुरु के पद पर नियुक्त कर उपरोक्त
सभी उपाधियों के लागु करण की प्रक्रिया को
शीघ्रातिशीघ्र प्रारम्भ करे .
प्राचीन भारतीय ऋषि मुनि गृहस्थ आश्रम
की परम्परा को निभाते हुए भी महर्षि के पद
सोपान तक पहुँच गए थे .कईयों ने इस परम्परा से थोड़ा हटकर परिवार –पत्नी व राजपाट को छोड़कर भी महात्मा बुद्ध की तरह
ऋषित्व का निर्वहन किया है . हालाँकि वर्तमान समय में (“आईडिया थोड़ा चेंज”) परिवार –पत्नी को छोड़ पाना तो आसान है , परन्तु राजपाट को छोड़ना थोड़ा कष्ट
साध्य कार्य दिख रहा है . बल्कि पूर्व में जो व्यक्ति साधू ,साध्वी या महंत –योगी
रह चुके हैं वो भी आज राज ऋषि बन रहे हैं,
राज-काज चला रहे हैं . यह एक नई प्रवृति पनप रही है . नई पहल है या यों कहें
नवाचार (मोदी जी का प्रमुख लक्ष्य ) है . वास्तव में वे बेचारे समाज व देश हित में
कितना बड़ा त्याग कर रहे हैं , आप तो शायद सोच भी नहीं सकते . जी करता है बलिहारी जाऊं मैं
तो उनके इस बलिदान पर .
भारतीय मान्यताओं की जहाँ तक मुझे समझ है , जब कोई व्यक्ति बिना किसी बाह्य
लाग लपेट के, दुःख –सुख को समान स्थिति
मानते हुए , अपने शरीर –मन –विचार पर नियंत्रण कर लेता है, तो वो ऋषि बन जाता है .
भारतीय ऋषियों की कठोर तपस्या सदैव
उदाहरणीय रही है . यहाँ तो ऐसे ऋषियों के उदाहरण भी उद्धरित किये जाते हैं कि वे
तपस्या –समाधि में इतने लीन हो जाते थे कि
उनके शरीर के चहुँ ओर दीमक ने मिट्टी का आवरण चढ़ा दिया था . भारत के ऋषि तपस्या को अत्यधिक महत्त्व देते रहे हैं .
और वे अपने शरीर , परिवेश , स्वजन , स्वहित – परहित सब कुछ भूल कर केवल और केवल उस शक्ति को पाने हेतु प्रयासरत रहते रहे हैं . और जब व्यक्ति उस परम
शक्ति को पा लेता है तो ब्रह्मलीन होकर
ब्रह्म ऋषि हो जाता है या यों भी कह सकते
हैं कि वह पूरे ब्रह्माण्ड की सत्ता पर काबिज हो जाता है . जब तक वह राष्ट्र की
सत्ता पर काबिज रहता है तब तक वह राष्ट्र ऋषि ही कहलाता है . हमारे प्रधान मंत्री
मोदी जी में मुझे ब्रह्म ऋषि बनने की पूरी सम्भावनाये नजर आती हैं . शायद इसीलिए
अब वे अपनी भगवा पताका को यू पी जैसे जातिगत प्रदेश में फहराकर “योगी” त्रिशूल गाड़कर
अश्वमेघ के रास्ते पर चले हैं .देखते हैं “राम” के इस अश्वमेघ के घोड़े को
रोकने वाला कोई लव –कुश मिलता भी है या नहीं ?
मोदी जी अभी तक तो राष्ट्र पताका फहराने का लक्ष्य लेकर निकले थे , परन्तु
लगातार मिलती जा रही इस अखंड जीत से प्रफुल्लित हो शायद वे
विश्व पताका को ही हाथ में न उठा लें .
खैर यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है , परन्तु इतना तो आभास हो ही रहा है
कि सब कुछ भगवा करण करने के चक्कर में कहीं ऐसा ना हो कि ऋषि मुनियों के इस
देश में अऋषि रहे ना कोय .
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Friday, 7 April 2017
THAKEN JAG MOHAN : किसकी शह पर बढ़ रहे हैं गौरक्षकों के होंसले ?
THAKEN JAG MOHAN : किसकी शह पर बढ़ रहे हैं गौरक्षकों के होंसले ?: जग मोहन ठाकन --------------------------------- किसकी शह पर कर रहे हैं गौरक्षक प्रहार ? २०१७ के अप्रैल माह के पहले ही द...
किसकी शह पर बढ़ रहे हैं गौरक्षकों के होंसले ?
जग मोहन ठाकन
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किसकी शह पर कर रहे हैं गौरक्षक प्रहार ?
२०१७ के अप्रैल माह के पहले ही दिन कुछ अति उत्साही गौरक्षकों द्वारा राजस्थान
के अलवर जिले में कुछ वाहनों में भरकर ले
जाये जा रहे गौ वंश को मुक्त कराने के उद्देश्य से मुस्लिम व्यापारियों पर हमले की घटना उस समय
अधिक तूल पकड़ गयी जब चोटिल व्यापारियों में से एक व्यक्ति पहलु खान ने सोमवार तीन
अप्रैल को अस्पताल में दम तोड़ दिया . समाचारों के अनुसार पुलिस ने छः ज्ञात व २००
अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ धारा ३०२ के तहत मामला दर्ज कर लिया है . मृतक के
परिवार वालों का कहना है कि व्यापारियों ने मेले से नियमानुसार पशुओं की खरीद की थी . परन्तु प्रशासन राज्य में लागु
१९९५ के कानून ( गौओं को हत्या के उद्देश्य से ले जाना ) के
तहत इसे अपराध मान रही है . प्रदेश या देश
में गौरक्षकों द्वारा हमले की यह कोई पहली घटना नहीं है . ऐसी ही कुछ घटनाओं
से विक्षुब्ध होकर देश के प्रधानमंत्री को
यह कहना पड़ा था कि अधिकतर गौरक्षक असामाजिक तत्व हैं . प्रधानमंत्री का इतना कहने
के बावजूद ऐसी कौन सी ताकत है जिसके बल पर गौरक्षक कानून को अपने हाथ में लेकर ऐसी
कारवाई अभी भी जारी रखे हुए हैं . कौन है
जो गौरक्षकों को अभी भी शह दे रहा है ?
यहाँ प्रश्न यह नहीं है कि गौ वंश को वैध रूप से ले जाया जा रहा था या अवैध
रूप से . प्रश्न यह है कि क्या किसी भी व्यक्ति को कानून को एक तरफ रखकर अपने स्तर
पर ही सजा देने का अधिकार है ? क्या
गौरक्षकों को यह अधिकार है कि वे अपने ही स्तर पर फैसला ले लें और व्यापारियों पर
हमला बोल दें ? गौ रक्षकों को किसने यह अधिकार दिया है कि वे स्वयं बिना पुलिस व प्रशासन को सूचित
किये ही तथा बिना उनका सहयोग लिए ही अपने स्तर पर चेकिंग करें और पिटाई करें ? क्या
राज्य सरकार की मशीनरी इतनी पंगु हो गयी है कि गौरक्षकों को अवैध व्यापार की रोक
थाम के लिए स्वयं ड्यूटी देनी पड़े . ?
कानून व्यवस्था के अप्रभावी
होने के मामले में मुझे मोटे रूप
में तीन परिस्थितियां नजर आती हैं.
प्रथम तो वह स्थिति है जहाँ कानून , प्रशासन
व राजनैतिक सत्ता इतनी लचर हो जाती है कि लोगों को उस पर विश्वास ही नहीं
रहता . और वे अपने स्तर पर ही कानून की व्याख्या करते हैं . दूसरे परिवेश में लोग इतने उदण्ड हो जाते हैं कि
उन्हें कानून , प्रशासन व राजनैतिक सत्ता का कोई भय नहीं रहता और वे स्वयं को इन सबसे ऊपर
मानने लग जाते हैं . तीसरी वह स्थिति हो सकती है जब सत्ता व प्रशासन , जिन
पर कानून का राज कायम करने की जिम्मेदारी है , तथा कानून तोड़ने वाले आपस में दूध
में पानी की तरह मिल जाते हैं और सब कुछ दूधिया रंग का हो जाता है . जित देखूं तित
लाल . खैर हमारे यहाँ कौन सी परिस्थिति है , पाठक ही निश्चित करें तो अच्छा .
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Sunday, 2 April 2017
Friday, 24 March 2017
कुछ दिन तो गुजारो गुजरात माडल में - जग मोहन ठाकन
व्यंग्य लेख
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जग मोहन ठाकन
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कुछ दिन तो गुजारो ; गुजरात ( माडल ) में
कांग्रेस की तरह हर बार परीक्षा में फ़ेल
होकर मुँह लटकाकर घर में चोरी छुप्पे घुसने वाला मेरा होनहार इस बार की
अर्धवार्षिक परीक्षा में पाँच विषयों में
से केवल एक में ही उतीर्ण होकर जब घर आया तो उसके चेहरे पर उदासी नहीं बल्कि आक्रोश था । एक पेपर में तो उसके कई साल से न
जाने क्यों अंक 10 % से ऊपर नहीं चढ़ पा रहे हैं ? एक अन्य पेपर , जिसमे वह पिछली
परीक्षा में पास था, उसमे भी अबकी बार वह धराशाही हो गया । मुझे इस परीक्षा
प्रणाली पर भी संदेह होने लगा है । मेरा होनहार दो विषयों में कक्षा मे सबसे अधिक
नंबर लेने के बावजूद परीक्षकों द्वारा फ़ेल
घोषित कर दिया गया। और अजीब बात यह कि कक्षा के मेरे होनहार से कम नंबरों वाले दो
दो तीन तीन छात्रों के अंकों को मिलाकर उन्हें सामूहिक रूप से उतीर्ण घोषित कर
इनाम भी दे दिया गया । खैर इतना सब कुछ होने के बाद आक्रोशित होना उसका हक है ।
परंतु जब उसने आते ही मुझसे 1900 रुपये एक
पेन खरीदने के लिए मांगे, तो मैं हैरान रह गया । मैंने आंखे तरेरी और पूछा – क्या
बात करते हो ? पेन और 1900 रुपये ? अर्रे , पेन तो पाँच –दस में ही आ जाता है ?
होनहार बोला – पापा आपका नेट काम नहीं
करता क्या ?
अब उसे क्या बताऊँ कि हमारी सोच के नेट तो उसी दिन से काम करना छोड़ गए थे , जिस
दिन विद्या बालन ने कहना शुरू किया था –“जहां सोच -वहाँ शौचालय”।
होनहार ने एक इश्तिहार मेरे सामने रख
दिया जो उसने कहीं नेट की किसी साइट से डाउनलोड किया था। गुजराती भाषा में छपे इस पर्चे में एक
गुजराती मंदिर ने दावा किया बताया है कि
मंदिर द्वारा 1900 रुपये की कीमत पर बेची जा रही एक विशेष कलम (पेन) द्वारा दी गई
परीक्षा में विद्यार्थी कभी फ़ेल नहीं होता । मंदिर ने तो यहाँ तक दावा किया है कि
यदि इस कलम का प्रयोग करने के बावजूद भी परीक्षार्थी पास नहीं होता है, तो पैसे वापस कर दिये जाएंगे ।
मेरे दिमाग के ढीले पड़ चुके नेट कुछ थरथराने लगे
। गत वर्ष हरियाणा से राज्यसभा चुनाव
में भी एक विशेष प्रकार की पेन का
इस्तेमाल किया गया था। अब मुझे कुछ कुछ यकीन होने लगा है कि वो गुजराती करामाती
कलम ही रही होगी , जिसके सहारे कम वोटों के आसरे भी चुनाव लड़ने वाले बहुमत पा सके और चुनाव
जीत कर धन्य हो गए । धन्य है गुजराती कलम , धन्य है गुजराती
माडल । मित्रों , अब तो अमिताभ बच्चन का कहा मानकर कुछ दिन तो गुजारो गुजरात
(माडल) में । हाँ , पर चीख चीख कर यू पी चुनाव में ई वी एम मशीन पर सवाल उठाने वाली मायावती जी की बात भी सुन
लो, कहीं वहाँ भी गुजराती माडल का प्रयोग तो नहीं किया गया है । क्योकि गुजराती
माडल देता है परीक्षा में 100 % सफलता की गारंटी ।
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Thursday, 2 March 2017
गाजर मूली के साथ धनिया मिर्ची फ्री - जग मोहन ठाकन
व्यंग्य - जग मोहन ठाकन
गाजर मूली के साथ
धनिया मिर्ची फ्री
गली में कई दिनों बाद नत्थू सब्जी वाले
की आवाज़ सुनाई दी । देखा तो सामने नत्थू ही अपनी गधा-रेहड़ी पर सब्जी लादे आवाज़ लगा रहा है । मैंने पूछा – अरे नत्थू ! सब कुशल तो है ? कहीं चले गए थे क्या ?
नहीं साहब , हम कहाँ जा सकते हैं । बस अपने इस गधे को अपने एक रिश्तेदार के वहाँ यूपी में
भेज दिया था । यहाँ तो कोई खास धंधा था नहीं , यू पी में गधों
की कुछ ज्यादा ही डिमांड बढ़ गई थी । वैसे भी वहाँ श्मशान घाट और
कब्रिस्तान दोनों का काम ज़ोरों पर चल रहा था , सो इसे वहीं अपने एक रिश्तेदार के पास भेज दिया
था । साहब ,जहां दो आने बचें, वहीं तो काम करना चाहिये ।
मैंने यों ही पूछ लिया - यू पी में कुछ ज्यादा ही काम की मारा मारी रही
होगी , बेचारा गधा भी काफी कमजोर और थका थका सा लग रहा है । लगता है तेरे इस गधे
को यू पी की हवा रास नहीं आई ।
अरे साहब , कुछ दिन यहाँ की आबो हवा में
रहेगा , फिर ठीक हो जाएगा - नत्थू बोला ।
मैंने सलाह दी – अरे नत्थू , तू गुजरात से कोई मोटा ताज़ा गधा क्यों नहीं ले आता
? दिखने में भी सुंदर व स्मार्ट लगेगा और
काम भी ज्यादा करेगा ।
अरे साहब , भगवान बचाए
गुजरात के गधों से तो । हाथी के दाँत
खाने के और दिखाने के और । साहब गुजराती गधे ग्राहक मार होते हैं । दिखने
में तो बड़े स्मार्ट और खड़े कान वाले दिखते हैं , पर काम के मामले
में , बस पूरे काम चोर । फली तक नहीं फोड़ते ।
हाँ , ढिंचू ढिंचू करने, लंगड़ी मारने और उछल कूदकर
कान उठाकर चलने में तो एकदम माहिर होते हैं गुजराती गधे । नत्थू ने अपनी विशेषज्ञता दर्शाई ।
खैर छोड़ नत्थू गधों की बात, ताज़ा सब्जी कौन कौन सी है आज तेरे पास ? मैंने बात का रुख बदला ।
साहब , गाजर है , मूली है , आलू है , टमाटर है , गोभी है ,हरी मिर्ची है , हरा धनिया है , सारी हैं साहब ।
कुछ भी ले लो ।
पर मिर्ची और हरा धनिया तो गाजर मूली के साथ फ्री
में ही देते होगे ? मैंने मोलभाव का रवैया अपनाया ।
अरे साहब , फ्री काहे की , हर सब्जी की अपनी
अपनी कीमत है । मिर्ची और धनिया के तो अब सबसे ज्यादा अच्छे दिन आए हुए हैं ,ये तो सभी दूसरी
सब्जियों से ज्यादा महंगी हैं ।
नहीं भाई नत्थू ,यह नहीं हो सकता । हमारे देश के प्रधान मंत्री स्वयं कह रहे हैं कि अन्य
सब्जियों के साथ हरी मिर्ची तथा हरा धनिया तो गिफ्ट के तौर पर फ्री में ही मिलता
है । अभी अभी तो यू पी के चुनाव में बोला है । उन्होने एक चुनाव सभा
में कहा है कि पाँच चरण के चुनाव में तो यू पी के मतदाताओं ने उन्हें खूब वोट दिये
हैं और शेष दो चरणों में भी अपने वोट बोनस के रूप में सब्जी बेचने वाले की तरह ही
धनिया और हरी मिर्ची की तरह फ्री में देंगे ।
मेरी बात सुनते ही नत्थू ने आँखेँ तरेरी । बोला –तो बाबूजी अब शेष दो चरणों की सब्जी धनिया व हरी
मिर्ची की तरह फ्री में मांगी जा रही है , क्या पहले वाले
पाँच चरणों की सब्जी खरीद की गई है ?
मैं सोच नहीं पा रहा हूँ , क्या जवाब दूँ । क्या आपके पास है
नत्थू के इस सवाल का जवाब ?
जग मोहन ठाकन
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