Friday, 16 June 2023
Wednesday, 14 June 2023
Tuesday, 13 June 2023
file:///C:/Users/thake/Desktop/THE%20SOUTH%20INDIA%20TIMES%20-MSP-%20%2013-6-23%20-JAG%20MOHAN%20THAKEN.pdf
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Monday, 12 June 2023
Sunday, 11 June 2023
Saturday, 10 June 2023
Friday, 9 June 2023
https://www.thefinancialworld.com/msp-why-it-should-be-legalized/ MY ARTICLE-- JAG MOHAN THAKEN
https://www.thefinancialworld.com/msp-why-it-should-be-legalized/
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Wednesday, 7 June 2023
https://www.thenewsagency.in/india/punjab-will-soon-be-a-frontrunner-state-in-power-employment-education-and-health-sectors-cm-mann
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Monday, 5 June 2023
https://www.thenewsagency.in/india/country-in-grip-of-capitalists-om-prakash-chautala
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Sunday, 4 June 2023
MY OLD ARTICLE-2015-- https://beyondheadlines.in/2015/05/farmer-and-trp/
https://beyondheadlines.in/2015/05/farmer-and-trp/
https://beyondheadlines.in/2015/05/farmer-and-trp/
ढ़ोल पीट बाज़ार में, टीआरपी हुआ किसान…

Jagmohan Thaken for BeyondHeadlines
आज हर कोई टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में पड़ा हुआ है. मीडिया चाहता है कि हर पल का लाइव चित्रण परोसा जाये. नेता चाहता है कि हर समय मीडिया व जनता में केवल उसी की चर्चा हो और हर चर्चा में उसी को विजेता घोषित किया जाये. सब को ‘नेम एंड फेम’ की बीमारी लग चुकी है. पर वर्तमान में किसान के संकट के इस दौर में किसान को संकट से उबारने की किसी को कोई चिंता नहीं है. केवल उसे तो किसान में एक माध्यम व साधन दृष्टिगोचर हो रहा है. किसान हर किसी के लिए टीआरपी हो गया है.
दिल्ली में गजेंदर सिंह की मौत के रूप में मीडिया व राजनैतिक पार्टियों के लिए टीआरपी निर्माण का एक ज़बरदस्त अवसर हाथ लग गया है. सभी इस दुखदायी मौत पर इंसानियत को गिद्दों कि तरह नोच रहे हैं. हर चैनल व राजनैतिक पार्टी अपने को गजेंदर सिंह की मौत के रास्ते किसान के दुःख दर्द का सच्चा बांटनहार और हितैषी सिद्ध करने पर तुले हुए हैं.
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कहती हैं कि राजस्थान के भूमि पुत्र की दिल्ली में हुई मौत गजेंदर के साथ हुआ कोई बड़ा षड्यंत्र है.
उपरोक्त बयान से स्पष्ट है कि राजे किसी भी सूरत में गजेंदर की मौत को एक प्राकृतिक आपदा से पीड़ित तथा आर्थिक रूप से मजबूर कमजोर किसान द्वारा की गयी आत्महत्या मानने को तैयार नहीं है. क्योंकि ऐसा करने पर मृत्यु का दोष राजस्थान सरकार पर ही आता है.
दूसरी तरफ दिल्ली की आप सरकार गजेंदर सिंह की फ़सल ख़राब होने के कारण हताशा स्वरुप की गयी आत्महत्या सिद्ध करने पर तुली हुई है, ताकि इस आत्महत्या का दोष राजस्थान की भाजपा सरकार के माथे मढ़ा जा सके.
आप सरकार ने तो गजेंदर के परिवार की मांगों को मानते हुए उसे शहीद किसान का दर्जा देकर भविष्य में फ़सल ख़राब होने पर सरकार द्वारा दिए जाने वाले मुआवजे के पैकेज को गजेंदर सिंह के नाम पर रखने का फैसला भी कर लिया है. गजेंदर की मौत को राजनैतिक तराजुओं में टुकड़े-टुकड़े कर तोला जा रहा है और विभिन्न राजनैतिक दल इस दर्द का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा चन्द खनकदार सिक्कों के बदले अपने लिए खरीदने हेतु बोली लगा रहे हैं. कोई दो लाख, कोई चार लाख, कोई पांच लाख तो कोई दस लाख का पैकेज सहानुभूति प्राप्ति के पलड़े में फेंक रहा है.
इसी सिक्का फेंक प्रतिस्पर्धा से क्षुब्द हो गजेंदर के पिता का यह कहना कि –“केजरीवाल ने दस लाख रूपए देकर पिंड छूटा लिया है. पैसों से क्या होता है? किसी नेता का बेटा यूँ मर जाता तो भी क्या केजरीवाल यूँ ही कीमत लगाते?” क्या इन राजनेताओं को शर्मसार नहीं करता?
गजेंदर सिंह के भाई का कथन –“हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी है. फसल बर्बादी का मुआवजा न भी मिले तो फर्क नहीं पड़ता. मैं नहीं मानता कि मेरे बड़े भाई गजेंदर ने इसके लिए खुदकशी की है.” बिल्कुल स्पष्ट कर देता है कि गजेंदर कोई प्राकृतिक विपदा का मारा ग़रीब व पिछड़ा किसान नहीं था. उसकी आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक पृष्ठभूमि सुदृढ़ रही है. वह एक महत्वाकांक्षी राजनैतिक कार्यकर्ता रहा है. उसकी सोच समाज में परिवर्तन का मार्ग बनाने की रही है.
आज भी उसका परिवार राजनैतिक रूप से जागरूक व अगुआ है. वह अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को तृप्त करने के लिए कुछ नया करना चाहता था. पेड़ पर चढ़कर वह रैली में अलग दिखना चाहता था ताकि मीडिया व राजनेताओं का ध्यान आकृष्ट कर सके. खैर गजेंदर की मौत एक महत्वाकांक्षा का गला तो घोंट ही गयी. इस मौत का राज व असली कारण तो विभिन्न जांचों से ही सामने आ पायेगा. परन्तु इतना तो स्पष्ट है कि यह एक पीड़ित व फ़सल ख़राबे के मारे किसान की मौत नहीं थी, अपितु एक कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखने वाले इंसान की मौत हो सकती है.
दुःख की बात है कि हर राजनैतिक दल इसे एक दूसरे की कमीज़ को ज्यादा मैला सिद्ध करने के चक्कर में इंसानियत की इस मौत को घुमा फिराकर अपनी टीआरपी बढाने के साधन के रूप में प्रयोग कर रहा है.
वास्तव में देखा जाए तो इन नेताओं का पीड़ित व प्राकृतिक आपदा से चोटिल किसान से कोई सरोकार नहीं है . गजेंदर की ही मौत के दिन राजस्थान में ही किसान आत्महत्या की दो अन्य घटनाएं सामने आई हैं. अलवर जिले के एक गरीब किसान हरसुख लाल जाटव, हरिजन ने ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. दूसरी और भरतपुर जिले के संतरुक गाँव के किसान टीटो सिंह ने अपनी गेहूं की फ़सल ख़राब होने पर अपने ही घर में पंखे से लटक कर आत्महत्या को गले लगा लिया.
परन्तु दुखद बात यह है कि इन दोनों ही मौतों पर किसी राष्ट्रीय मीडिया चैनल तथा राजनितिक दल ने आंसू नहीं बहाए और न ही किसी पार्टी ने गजेंदर की मौत पर बरसाई गई सहायता की तरह कोई आर्थिक मदद की. क्योंकि राजनेताओं को वास्तव में इन ग़रीब किसानों का कोई वोट बैंक पर प्रभाव नहीं दिखलाई दिया.
क्या कोई पार्टी इनको भी गजेंदर सिंह जितना महत्व देगी? क्या दिल्ली सरकार की तर्ज पर राजस्थान सरकार एक दलित हरिजन किसान हरसुख लाल जाटव के नाम पर किसान राहत योजनाओं का नामकरण करेगी और उसे भी शहीद किसान का दर्जा देगी? या फिर अन्य किसान मौतों की तरह इसे भी एक हादसा दिखाकर फाइल बंद कर देगी?
Saturday, 3 June 2023
Friday, 2 June 2023
https://www.thenewsagency.in/india/haryana-has-no-right-to-river-water-from-himachal-pradesh-sukhbir-singh-badal
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