Friday 13 April 2018

कितना उचित है मीसा बंदियों को पेंशन देना ?


कितना उचित है  मीसा बंदी  राजनीतिक  कार्यकर्ताओं को पेंशन देना ?
                        चंडीगढ़ से जग मोहन ठाकन
क्या  राजनैतिक उदेश्यों के लिए यानि सत्ता प्राप्ति के लिए एक राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ताओं व नेताओं द्वारा किसी दूसरी विरोधी सत्तासीन पार्टी के खिलाफ चलाये गए आन्दोलनों  में सक्रिय भागीदारों को सरकारी खजानों से आर्थिक लाभ पहुँचाना जनहित में सही कदम है ? यह प्रश्न कौंधता है  वर्तमान भाजपा सरकारों द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को पेंशन देने के फैसलों पर . एक तरफ तो केंद्रीय व राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों तथा अपने अधीन बैंक कर्मचारियों की पेंशन बंद कर रहे हैं . केंद्र सरकार द्वारा संचालित  ग्रामीण बैंकों के लगभग तीस हज़ार कर्मचारी / अधिकारी  पेंशन के लिए वर्ष २०१२ से केंद्र सरकार की हठधर्मिता का खामियाजा भुगत रहे हैं और लगभग तीन हज़ार कार्मचारी पेंशन की  इन्तजार करते करते परलोक सिधार चुके हैं  . दूसरी तरफ ये सरकारें अपने कार्यकर्ताओं को भी पेंशन की खैरात बाँट रहे हैं .  
बुधवार,११ अप्रैल ,२०१८  को चंडीगढ़ में  हुई हरियाणा के मुख्यमंत्री  मनोहर लाल  खट्टर की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक में हरियाणा राज्य शुभ्र ज्योत्सना पेंशन तथा अन्य सुविधाएं योजना,२०१८  को स्वीकृति प्रदान की गई जो प्रथम  नवम्बर, २०१७  से लागू होगी। इस योजना के तहत, हरियाणा के ऐसे निवासियों को  दस हज़ार  रुपये मासिक पेंशन दी जाएगी, जिन्होंने २५  जून, १९७५  से  २१  मार्च, १९७७  तक आपातकाल की अवधि के दौरान सक्रिय रूप से भाग लिया और आन्तरिक सुरक्षा रख-रखाव अधिनियम (एमआईएसए), १९७१  और भारत के प्रतिरक्षा अधिनियम, १९६२  के तहत कारावास जाना पड़ा। इसके अतिरिक्त, जो व्यक्ति हरियाणा के अधिवासी नहीं है परन्तु आपातकाल के दौरान हरियाणा से गिरफ्तार हुए और हरियाणा की जेलों में रहे, वे भी इस पेंशन के पात्र होंगे।
एक सरकारी सूचना के अनुसार  इस योजना का लाभ उठाने के लिए हरियाणा के ऐसे निवासी पात्र होंगे, जिन्होंने आपातकाल की अवधि के दौरान संघर्ष किया  तथा चाहे उन्हें एमआईएसए अधिनियम,१९७१  (मीसा )  या भारत के प्रतिरक्षा  अधिनियम, १९६२  तथा इसके तहत बनाए गए नियमों के तहत एक दिन के लिए ही कारावास जाना पड़ा हो। ये नियम ऐसे व्यक्तियों की विधवाओं के लिए भी लागू होंगे। लाभार्थी को इसके लिए सम्बन्धित जेल अधीक्षक द्वारा जारी और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित जेल प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा। यदि कोई व्यक्ति रिकॉर्ड गुम होने या अनुपलब्ध होने के कारण जेल प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं कर सकता, तो वह दो सह-कैदियों से प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर सकता है। सह-कैदियों का ऐसा प्रमाणपत्र संबंधित जिले के विधायक या सांसद द्वारा प्रमाणित होना चाहिए।
 इससे पहले वर्ष २०१४ में   राजस्थान की भाजपा सरकार ने भी एक अधिसूचना जारी कर राज्य में वर्ष १९७५-१९७७ के दौरान मीसा एवं डी आई आर के अंतर्गत राज्य की जेलों में बंदी बनाये गए राज्य के मूल  निवासियों को पेंशन दिए जाने सम्बन्धी  मीसा एवं डी आई आर बंदियों को पेंशन नियम २००८ में कुछ संशोधन कर इसे बहाल किया था  ! भाजपा सरकार ने २००८ के अपने पूर्व के कार्यकाल में मीसा बंदियों को पेंशन  प्रारम्भ की थी , परन्तु कांग्रेस सरकार ने २००९ में सत्ता में आते ही इसे बंद कर दिया था !  राजस्थान  भाजपा  सरकार ने पुनः सत्ता सँभालते ही पेंशन को दोबारा से
शुरू करने का फैसला लिया था ! संशोधन के अनुसार  पेंशन नियम २००८ के पैरा १०( क ) में वर्णित सभी मीसा व डी आई आर बंदियों एवं बंदियों की पत्नी या पति को अब हर महीने राजस्थान सरकार की तरफ से १२ हजार रुपये मासिक पेंशन दी जाएगी ! साथ ही सभी पेंशनर को पेंशन के साथ एक हजार दो सौ रुपये प्रतिमाह चिकित्सा सहायता भी नगद दी जाएगी , जिसके लिए किसी भी प्रकार का बिल प्रस्तुत नहीं करना होगा ! यह सुविधा १ जनवरी,२०१४ से लागु होगी !
   विचारणीय प्रश्न यह है की क्या किसी राजनितिक पार्टी द्वारा अपने राजनैतिक हित के लिए सरकारी खजाने से अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं को पेंशन दिया जाना या कोई आर्थिक लाभ पहुँचाना जनहित में उचित है ? पर इस प्रश्न पर विचार करने से पहले यह जानना भी उचित रहेगा कि आखिर मीसा बंदी हैं कौन ? १९७५ में जब इंदिरा गाँधी की कांग्रेस सरकार द्वारा जबरन नसबंदी व अन्य जन दमनकारी नीतियों के विरोध में  जनता में आक्रोश प्रस्फुटित होने लगा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री  इंदिरा गाँधी ने इस आक्रोश से साधारण तरीकों से निपटने में असफलता के बाद देश में आपातकाल की घोषणा कर दी तथा आंतरिक सुरक्षा के नाम पर मेंटेनेंस आफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट यानि मीसा लागु कर दिया ! जिसके तहत सरकार के खिलाफ जनता को आन्दोलन के लिए प्रेरित करने वाले विभिन्न राजनैतिक नेताओं व कार्यकर्ताओं को जेलों में बंद कर दिया गया ! लगभग सभी विरोधी पार्टियों के बड़े नेता मीसा में बंदी बनाये गए थे ! लोगों ने मीसा ( MISA ) को मेंटेनेंस आफ इंदिरा संजय एक्ट नाम देकर खूब नारे बाजी की थी ! जबरन नसबंदी के खिलाफ भी खूब  विरोध पनपा था और  --नसबंदी के तीन दलाल , संजय , शुक्ला , बंसीलाल  का नारा जन जन की जुबान पर चढ़ गया था !
    १९ माह तक जेल की रोटियां खाने के बाद १९७७ में कांग्रेस विरोधी जबरदस्त लहर के चलते विभिन्न राजनितिक पार्टियों के जमावड़े के रूप में जनता पार्टी की सरकार बनी ! वर्तमान भाजपा के भी  अधिकतर बुजुर्ग नेता उस समय के आन्दोलनों में किसी न किसी दल के साथ भाग ले रहे थे ! भले ही कांग्रेस सरकार के खिलाफ जनाक्रोश चरम पर था , परन्तु राजनैतिक नेताओं का आन्दोलन कांग्रेस को हरा कर सत्ता प्राप्ति मुख्य  ध्येय था ! वर्तमान भारतीय जनता पार्टी , राष्ट्रीय  स्वम् सेवक संघ तथा पुराने जनसंघ के अधिकतर सक्रिय कर्येकर्ता व नेता कांग्रेस विरोधी आन्दोलनों में शामिल रहते थे !
        परन्तु क्या  राजनैतिक उदेश्यों के लिए यानि सत्ता प्राप्ति के लिए एक राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ताओं व नेताओं द्वारा किसी दूसरी विरोधी सत्तासीन पार्टी के खिलाफ चलाये गए आन्दोलनों  में सक्रिय भागीदारों को सरकारी खजानों से आर्थिक लाभ पहुँचाना जनहित में सही कदम है ? क्या जनता से वसूले गए टैक्स व जनधन से ,अपनी पार्टी के कार्यकर्तायों व नेताओं को मात्र इस आधार पर कि उन्होंने विरोधी पार्टी को सत्ताच्युत करके अपनी पार्टी की सरकार बनवाने में अहम भूमिका अदा की है . सरकारी खजाने से बंदरबांट करना उचित है ?
      सरकार चाहे कितने ही बहुमत से क्यों न बनी हो वो सरकारी धन की कस्टोडियन है मालिक नहीं ! और कस्टोडियन अपने या स्वजनों के स्वार्थ साधने  के लिए जनधन का दुरूपयोग करे , कदापि सही कदम नहीं हो सकता ! पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ताओं को सम्मान देना किसी भी पार्टी का अधिकार भी है और कर्तव्य भी ! परन्तु ऐसा पार्टी के अपने फण्ड से किया जाये तो ही जनता में अच्छा सन्देश जाता है ! चिंता की बात तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकारों द्वारा डाली गई यह पेंशन की लीक कहीं भविष्य में खजाना लूट की परम्परा न बन जाये !  अत जरुरत है पुनर्चिन्तन की तथा दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखते हुए फैसले करने की !

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