Wednesday 19 October 2016

केजरी के गाँव से
               जग मोहन ठाकन की रिपोर्ट
सिवानी केजरी की हिन्द केसरी को पटकनी
 दस फरवरी को ज्यों ज्यों दिल्ली विधान सभा के चुनावी नतीजे टीवी चैनलों पर आगे बढ़ते जा रहे थे ,त्यों त्यों हरियाणा के अन्तिम छोर पर राजस्थान की सीमा से मात्र आठ किलोमीटर की दूरी पर भिवानी जिले के  शुष्क क्षेत्र का क़स्बा सिवानी खुशियों एवं जश्न से रंगीन होता जा रहा था . हर कहीं मिठाईयां खिलाई जा रहीं थी , नाच गाकर शहर के मार्गों पर जश्न मनाया जा रहा था . होली दिवाली दोनों त्योहारों का आलम एक ही दिन उमड़ पड़ा था .
      सिवानी क़स्बे से भिवानी मार्ग पर केवल पांच किलोमीटर की दूरी पर बसे गाँव सिवानी खेडा में भी यही दृश्य  था .यहाँ के बासिन्दे भी ख़ुशी का इजहार करते हुए जुलुस की शक्ल में गाँव के एक पुराने खंडहरनुमा मकान तथा कुवें के सामने एकत्रित हो रहे थे .अवसर था दिल्ली में आप पार्टी की असीम जीत का .जश्न  का कारण था कि गाँव खेड़ा के मंगलचंद के पोते अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली के दंगल में एकतरफा जीत हासिल कर ली थी . खेड़ा के लोगों को केजरीवाल में अपने गाँव के पोते की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही थी .प्यार से इस गाँव के लोग केजरीवाल को केजरी कह रहे थे  . ग्रामीण कह रहे थे कि खेड़ा के छोरे केजरी नै हिन्द केसरी ( मोदी ) के गोडे रगड़वा दिए अर इसी पटकनी दे दी अक ईब कोये तावला सा घमंड करण की हिम्मत नहीं करैगा.
  उल्लेखनीय है कि केजरीवाल के दादा मंगलचंद गाँव खेड़ा के निवासी थे तथा बाद में साथ लगते क़स्बा सिवानी में मंडी में जाकर बस गए थे . वहीँ सिवानी मंडी में ही मकान नंबर ३० में १६ अगस्त , १९६८ को अरविन्द केजरीवाल का जन्म हुआ था .उस समय दादा मंगलचंद ने सपने में  भी नहीं सोचा होगा कि एक साधारण से बनिया परिवार का यह पुत्र कभी दिल्ली में राज करेगा .पुत्र जन्म के कुछ समय बाद ही केजरीवाल के पिता गोबिंद राम हिसार चले गए . अब इस ऐतिहासिक जन्म गृह  में केजरीवाल की चचेरी बहन रह रही है . हालाँकि अरविन्द अपने पिता के साथ ही अलग अलग स्थानों पर शिक्षा ग्रहण करते रहे , परन्तु आठवीं व नौवीं कक्षा की पढाई सिवानी से बीस किलोमीटर दूर राजस्थान के चूरू जिले के गाँव न्यांगल में की तथा दसवीं से बारहवीं  तक हिसार में पढ़े और उसके बाद आई आई टी  खड़गपुर से इंजीनियरिंग की पढाई कर इंजिनियर बने .


     दादा से आया दबंगई का गुण
खेड़ा के ग्रामीण बताते हैं कि केजरीवाल के दादा मंगलचंद बड़े दबंग थे . गाँव के पंच बलबीर सिंह राजपूत बताते हैं कि खेड़ा में आज़ादी से पहले राजपूतों एवं रांगड़  मुसलमानो का दबदबा था . गाँव में बनियों के दो चार घर ही थे , परन्तु इन दबंगों के बीच रहकर अरविन्द के दादा मंगलचंद भी दबंग हो गए . वे किसी से नहीं डरते थे अरविन्द में भी दादा के गुण आ गए हैं .
     जब आपातकाल से त्रस्त दबी हुई जनता कांग्रेस सरकार व बंसीलाल के खिलाफ कोई शब्द तक बोलने को तैयार नहीं थी , उस समय १९७७ के लोकसभा चुनावों में बंसीलाल के विरुद्ध जनता पार्टी की उम्मीदवार चन्द्रावती को अरविन्द के दादा मंगलचंद ने ही सर्वप्रथम खुला समर्थन दिया था .
       पूर्व प्रिंसिपल एवं उत्तरी भारत के एक प्रमुख समाचार पत्र के सिवानी प्रतिनिधि अशोक अरोड़ा का कहना है कि वर्ष १९७७ के चुनावों में जब बंसीलाल के खिलाफ मुह खोलने से भी लोग कतराते थे , उस समय सिवानी क्षेत्र में केजरीवाल के दादा मंगलचंद का एकमात्र पहला परिवार था जिन्होंने सिवानी में पुराने बस स्टैंड पर राम चंदर सारस्वत के मकान में बंसीलाल की धुर विरोधी उम्मीदवार चन्द्रावती को  पूरा समर्थन देकर चुनाव कार्यालय खुलवाया था .
समाजसेवा में भी अग्रणी थे अरविन्द के पूर्वज
खेड़ा के ग्रामीणों ने बताया कि केजरीवाल के पूर्वज समाजसेवा  में भी अग्रणी थे . आज़ादी के आसपास जब गाँव के लोग पीने के पानी की समस्या से जूझ रहे थे तो अरविन्द के दादा मंगलचंद ने अपने खर्चे से एक कुआँ बनवाया था , जिस पर पानी की टोंटियाँ लगवाई गयी थी . हर समय कुवे पर बनी टंकी तथा पशुओं के लिए खेल को पानी से लबालब रखा जाता था . न केवल गाँव खेड़ा बल्कि आसपास के गांवों के लोग भी यहाँ से पीने का पानी लेकर जाते थे .हालाँकि बाद में  मंगलचंद का परिवार सिवानी क़स्बे में बस गया था , परन्तु ग्रामीण बताते हैं कि अरविन्द का चाचा मुरारीलाल हर रोज सिवानी से पांच किलोमीटर पैदल आकर कुवें की मोटर चलाकर पानी की टंकी व खेल भरकर जाता था .यदि कोई टूटी ख़राब हो जाती थी तो मुरारीलाल उसे तुरंत बदल देता था .
खंडहर हो चूका है  पूर्वजों का मकान
 गाँव खेड़ा में अरविन्द के पूर्वजों का मकान और कुआँ  आज भी जीर्ण शीर्ण अवस्था में मौजूद है , परन्तु कोई भी ग्रामीण यहाँ से ईंट वगैरह नहीं उठाता . गाँव वाले इस मकान और कुवें को आज भी अरविन्द के पूर्वजों की धरोहर मानते हैं .गाँव खेड़ा के निवासियों की इच्छा है कि कभी अरविन्द इस गाँव की गलियों में आयें और अपने पूर्वजों के स्मृति प्रतीकों को देखें तथा इनकी मरम्मत भी करवाएं ताकि गाँव में इन ऐतिहासिक हो चुके स्मारकों को भविष्य के वंशज भी देख सकें . ग्रामीणों को मलाल है कि केजरीवाल कभी पूर्वजों के गाँव में नहीं आये हैं . गत वर्ष चाचा मुरारीलाल के देहांत पर केजरीवाल सिवानी  में अपने पुराने आवास पर आये थे . थोड़ी देर परिवार के सदस्यों  से मिलने के  तुरंत बाद  ही वापिस दिल्ली चले गए . अब खेड़ा के निवासियों को आस है कि केजरीवाल शीघ्र ही अपने पूर्वजों के गाँव आयेंगें तथा अपनी कुलदेवी माता मनसा देवी के मंदिर में धोक अवश्य लगायेंगे . देखते हैं खेड़ा वासियों की यह मुराद पूरी होती है या यों ही आस ही बनी रहती है .




       

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