जग मोहन ठाकन, स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक
राजस्थान .
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अनायास
ही नहीं उपजती असहिष्णुता की स्थिति
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कोई सत्ताधारी पार्टी का सांसद यों ही नहीं किसी जाति या वर्ग को भरी सभा में सूअर के बच्चे कहकर अपमानित कर देता | यों ही नहीं कोई
केंद्रीय मंत्री दो मासूमों की दुर्दांत मौत की तुलना किसी कुते की मौत से कर देता
| यों ही नहीं कोई प्रदेश का वरिष्ठ मंत्री जिले की एक महिला
आइ पी एस पुलिस कप्तान को अधिकारियों की मीटिंग में गेट आउट बोल देता |
पच्चीस नवम्बर को भारतीय जनता पार्टी के हरयाणा के कुरुक्षेत्र से सांसद
राजकुमार सैनी ने सोनीपत में पिछड़े वर्ग के समर्थकों को संबोधित करते हुए जाटों का
नाम लिए बिना आपतिजनक एवं असंसदीय भाषा
का प्रयोग किया | बाद में अपनी कथनी में परिवर्तन करते हुए सैनी ने शूरवीर शब्द का
प्रयोग कर अपनी बात की लीपा पोती करने का प्रयास किया | प्राप्त समाचार के अनुसार सांसद सैनी ने अपने पिछड़े वर्ग के समर्थकों से कहा कि भीम राव अंबेडकर ने आपका पक्ष लिया
परन्तु इन [शूर-----] लोगों ने उन्हें
पार्लियामेंट में नहीं जाने दिया | इस वाक्य
के बाद सैनी ने अपना पैंतरा बदला
और कहा कि राम मनोहर लोहिया को भी इन शूरवीरों ने पार्लियामेंट में नहीं जाने दिया
| उल्लेखनीय है कि सांसद सैनी जाटों को आरक्षण देने के खिलाफ पिछड़े वर्ग के लोगों
को लामबंद करने में जुटे हैं | वे समय समय पर जाट आरक्षण के खिलाफ कटु वचन बोलते रहते हैं |
हरयाणा के ही दिल्ली से लगते फरीदाबाद के सुनपेड़ गाँव में एक दलित परिवार के
दो मासूम बच्चों को जिंदा जलाए जाने की घटना पर केंद्रीय मंत्री जनरल वी के सिंह
के बयान को कुत्ते की मौत से तुलना कर विरोधियों ने कड़ी निंदा की थी |
नवम्बर के ही अंतिम सप्ताह में हरयाणा
प्रदेश के ही एक वरिष्ठ मंत्री अनिल विज द्वारा जिला फतेहाबाद में अधिकारियों की
मीटिंग में जिले की पुलिस कप्तान संगीता कालिया को अवैध शराब बिकने की घटना पर
मीटिंग से ही गेट आउट बोल दिया , परन्तु पुलिस कप्तान ने बाहर जाने से मना कर दिया | तब मंत्री महोदय ही खुद उठ कर चले गए
| दूसरे ही दिन पुलिस अधिकारी का तबादला हो गया |
उपरोक्त तीनों ही घटनाओं में सत्ता पक्ष की
असहिष्णुता की झलक स्पष्ट दिखलाई दे रही है | प्रथम दृष्टि में तीनों ही घटनाओं के
पीछे सत्ता के अहम् , मद व मानसिक कलुषिता परिलक्षित होते हैं | कोई व्यक्ति
भावावेश में क्या बोलता है , बिना सोचे समझे क्या कहता है , वह उसकी मानसिक स्थिति
का दर्पण भी है | आवेश में व्यक्ति का
व्क्तव्य उसके मन , विचार एवं वचन की एकरूपता दर्शाता है | सहिष्णुता के अभाव में
व्यक्ति का व्यवहार हमेशा कटु ही रहता है | जाकि रही भावना जैसी , प्रभु मूर्ति
देखि तिन तैसी | हर व्यक्ति के मन में किसी न किसी के प्रति लगाव दुराव तो होता ही
है | वह उसी के अनुसार आचरण करता है |
आकाशीय आवेश एवं धरा के आवेश की मात्रा जितनी अधिक एवं विपरीत होगी उतनी ही
अधिक तीव्रता व वेग के साथ बिजली गिरेगी | वही तथ्य मानवीय व्यवहार में भी लागु
होता है |
परन्तु राजनीतिक पंडितों का मानना है कि भाजपा
के सांसद सैनी का कथित संबोधन एक जाति विशेष के प्रति कलुषित मानसिकता का प्रतीक तो है ही
अपितु यह बयान कोई आवेश में कहा गया वाक्य नहीं है बल्कि भाजपा की सोची समझी
राजनैतिक रणनीति का हिस्सा है | वर्तमान स्थिति में हरयाणा में भाजपा वोटर का जाट गैर जाट का
धुर्विकरण कर गैर जाट मतदाताओं में अपनी पैंठ ज़माना चाहती है | वह एक समय में गैर
जाट राजनीति के पुरोधा रहे पूर्व
मुखमंत्री भजन लाल के रास्ते को पुनः अख्त्यार कर गैर जाट के सहारे हरयाणा में
कुर्सी की लम्बी पारी खेलना चाहती है | यह
नहीं हो सकता कि भाजपा सांसद बिना पार्टी
लाइन को विश्वास में लिए अकेले अपने ही दम पर
इतना बड़ा फैसला कर लें कि एक जाति विशेष की दुश्मनी मोल ले लें | सांसद
द्वारा बार बार जाट आरक्षण का तीव्र विरोध
एवं कटुतापूर्ण बयानबाजी का भाजपा के
शीर्ष नेताओं द्वारा अनदेखा करना तथा
मुख्य मंत्री एवं प्रधान मंत्री की चुप्पी मौन स्वीकृति एवं पार्टी लाइन की सहमति
का द्योतक नजर आ रहा है | इससे भाजपा की जाटों को दिए गए आरक्षण के प्रति सोच एवं
असहिष्णुता साफ़ झलकती है | क्योंकि हरयाणा में जाटों की विचारधारा भाजपा की
धार्मिक असहिष्णुता की विचारधारा से मेल नहीं खाती है | जाट भले ही हिन्दू हैं
परन्तु कट्टर हिन्दू पंथी नहीं हैं , उनका मुस्लिम समुदाय से भी कोई दुराव या
शत्रुता का भाव नहीं है | राजनैतिक विचारको का मत है कि जाटों का मुस्लिम समुदाय
से दुराव न होना ही भाजपा को अखरता है | इसीलिए भाजपा एक सोची समझी रणनीति के तहत
समाज में जाटों के प्रति असहिष्णुता का माहौल पैदा कर जाटों व मुस्लिमों को सत्ता में आने से रोकने के लिए
गैर जाटों को गले लगाना चाहती है |भाजपा मुस्लिम समुदाय को कांग्रेस का वोट बैंक
मान रही है , परन्तु यह भूल रही है कि बिहार में मुस्लिम यादव गठबंधन की तर्ज पर
अगर हरयाणा में भी जाट मुस्लिम का गठबंधन
हो गया तो भाजपा कहाँ ठहर पायेगी | भाजपा की जाटों व मुस्लिमों के प्रति
असहिष्णुता भाजपा को ही ले बैठेगी |
भाजपा भले ही कितनी ही दलित हितेषी होने का प्रचार करती रहे , कितना ही
अम्बेडकर का नाम संसद व बाहर उठाती रहे ,
दलितों को अपनी और भाजपा खींच पाएगी इसमें
अभी संदेह ही नजर आता है | यह सही है कि भाजपा दलितों को लुभाने के लिए अम्बेडकर के
नाम को अपना वैतरणी तारक नाम बनाना चाहती है | सांसद सैनी का बैकवर्ड सम्मलेन में
अपने सोनीपत के संबोधन में यह कहना कि
भीम राव अंबेडकर ने आपका पक्ष लिया परन्तु इन [शूर-----] लोगों ने उन्हें पार्लियामेंट में नहीं जाने दिया
,अनायास ही नहीं है | इस बयान के जरिये
भाजपा का सैनी के माध्यम से दलितों को अपनी तरफ लुभाने का एक तीर है
,जो द्विधारी है जो एक तरफ जाटों को घायल
करता है तो दूसरी तरफ पिछड़ों को दबंग बनाने की चेष्टा करता है |
छब्बीस नवम्बर , २०१५ को भाजपा सरकार में
गृहमंत्री राज नाथ सिंह द्वारा संसद
में यह कहना कि अपमान के बाद भी अम्बेडकर
ने कभी देश छोड़ने की बात नहीं की , क्या
दलितों एवं मुस्लिमों को यह संकेत नहीं देता कि अपमान सहते रहो परन्तु अपनी
आवाज़ मत उठाओ , देश छोड़ने की बात मत करो ,जुल्म सहने की आदत डालकर सहिष्णु बनों ?
गृह मंत्री ने कहा –“ दलित होने के
कारण डॉक्टर अम्बेडकर ने तिरस्कार और अपमान सहा , लेकिन कभी देश छोड़कर जाने की बात
नहीं कही |”
विचारणीय विषय है कि किसने किया अम्बेडकर का
तिरस्कार ? इसका जवाब हर दलित जानता है कि भारतीय संस्कृति के तथाकथित ठेकेदारों
तथा कट्टर हिन्दुवाद के मठाधीशों ने न केवल अम्बेडकर अपितु हर दलित को सदैव
तिरष्कृत ही किया है , उन्हें हिन्दू धर्म से तो हमेशा अछूत ही माना गया है | आज संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द का विरोध कर हिंदुत्व के
एजेंडे को प्रथम स्थान पर रखने
वाली वर्तमान भाजपा सरकार क्या देश को पुनः कट्टर
धर्मान्धता की तरफ तो नहीं धकेलना चाहती है ? अनायास ही तो नहीं उपजा है यह
अम्बेडकर प्रेम | बिल्ली चूहे को कांशी ले जाने का सपना परोस रही है तो जरूर कोई
बात है |
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