Wednesday 19 October 2016

जगमोहन ठाकन
दयालु सरकार नथ्थू खुश

जब से नमो ने बचपन में चाय की दुकान पर काम करने की बात स्वीकारी है तभी से नथ्थू की दुकान पर छुटभैये राजनितिक आशान्वितों की गर्मागर्म बैठकें बढ़ गयी हैं. हाल में सरकार द्वारा गैस सिलेंडर के दाम साढ़े बारह सौ रूपये तक बढाकर पुनः एक सौ सात रुपए की कमी करके नथ्थू भाई जैसे चाय वालों को खुश करने का प्रयास किया है. सरकार ६-९-१२ की चक्करघिन्नी में उलझा कर सब्सिडी वाले असीमित सिलेंडरों की संख्या १२ पर रोक कर खुश है कि उसने सब्सिडी सिलेंडरों में जहाँ  कटौती भी कर दी है वहीँ गरीब उपभोक्ताओं में दयालु सरकार का टैग भी हासिल कर लिया है. नथ्थू की दुकान पर चाय की चुस्कियां लेते दुकान पर चल रहे टीवी पर पर सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या नौ से बढ़कर १२ की खबर को देखकर रलदू रिक्शा वाला खुश है कि उसका काम तो नौ सिलेंडर में ही चल जाता है , अब ऊपर के तीन सिलेंडर को वह ब्लैक में बेचकर कमाई कर लेगा. नथ्थू खुश है कि अब रोजमर्रा की जरुरत के लिए उसे ब्लैक में मिलने वाला सिलेंडर कम से कम सौ रुपए तो सस्ता मिलेगा ही. अब नथ्थू की ये ख़ुशी कम से कम एक साल तक तो उसकी नसों में दौड़ती ही रहेगी तब तक नथ्थू को कोई न कोई ख़ुशी का और मौका भी मिल ही जाएगा.
        नथ्थू पिछली साल भी एक छोटी सरकार की दयालुता पर खुश हुआ था . पिछले वर्ष एक छुटभैये ठेकेदार से नथ्थू की चाय के पैसे के लेन देन को लेकर मारपीट हो गयी थी , मामला थाने में चला गया था . नथ्थू को थाने की एक कोठरी में रोक दिया गया था . थानेदार साहब ने नथ्थू को दोषी मानकर हवलदार को बुलाकर सात बैंत मारने का हुकुम दिया था. हवलदार साहब जब कोठरी की तरफ जाने लगे तो रास्ते में ठेकेदार ने पूछा कि क्या सजा मिली ? तो हवलदार ने बताया कि पांच बैंत. ठेकेदार ने दौ सौ रुपए हवालदार की जेब में डालकर अनुरोध किया कि दो बैंत उसके नाम की भी लगाई जाएँ. अन्दर कोठरी में जाकर हवलदार ने सिपाही को आदेश दिया कि नौ बैंत लगाई जाएँ. इस पर नथ्थू गिरगिराया और अपने पायजामे की जेब में मुड़े तुड़े सौ सौ के दो नोट हवलदार साहब को देते हुए हाथ जोड़कर बोला सरकार आप बड़े दयालु हैं कुछ तो रहम कीजिये. इस पर हवालदार ने दो बैंत की छूट देकर सात बैंत लगाने का आदेश दे दिया . थानेदार साहब खुश थे कि उनका सात बैंत लगाने का हुकुम अक्षरशः लागू हुआ . ठेकेदार खुश था कि उसने नथ्थू को दो बैंत एक्स्ट्रा लगवाए. हवलदार खुश था कि हुकुम भी हो गया और रकम भी, और नथ्थू खुश था कि दयालु सरकार ने उसे दो बैंत कम लगाये. परन्तु जिस दिन दयालु सरकार की असलियत नथ्थू को पता लग जायेगी तो क्या होगा उस बेचारे की खुशियों का ?


जगमोहन ठाकन, 

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